Difference between revisions of "सिराजुद्दौला"

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सिराजुद्दौला अप्रैल 1753 ई0 से जून 1757 ई0 तक [[अखण्डित बंगाल|बंगाल]] का नवाब था। वह [[अलीवर्दी ख़ाँ]] का प्रिय दोहता तथा उत्तराधिकारी था, किन्तु नाना की गद्दी पर उसके दाबे का उसके चचेरे भाई शौकतजंग ने जो उन दिनों पूर्णिया का सूबेदार था, विरोध किया। सिंहासनासीन होने के समय सिराजुद्दौला की उम्र केवल 20 वर्ष की थी। उसकी बुद्धि अपरिपक्व थी। चरित्र भी निष्कलंक न था तथा उसे स्वार्थी, महात्वाकांक्षी और षड़यंत्रकारी दरबारी घेरे रहते थे। तो भी [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] द्वारा उसे जैसा क्रूर तथा दुश्चरित्र चित्रित किया गया है, वैसा वह कदापि नहीं था। वह बंगाल की स्वाधीनता को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए मर मिटने वाले देश भक्तों में न था, जैसा कि कुछ राष्ट्रवादी इतिहासकारों ने सिद्ध करने का प्रयत्न किया है।
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सिराजुद्दौला अप्रैल 1753 ई. से जून 1757 ई. तक [[अखण्डित बंगाल|बंगाल]] का नवाब था। वह [[अलीवर्दी ख़ाँ]] का प्रिय दोहता तथा उत्तराधिकारी था, किन्तु नाना की गद्दी पर उसके दाबे का उसके चचेरे भाई शौकतजंग ने जो उन दिनों पूर्णिया का सूबेदार था, विरोध किया। सिंहासनासीन होने के समय सिराजुद्दौला की उम्र केवल 20 वर्ष की थी। उसकी बुद्धि अपरिपक्व थी। चरित्र भी निष्कलंक न था तथा उसे स्वार्थी, महात्वाकांक्षी और षड़यंत्रकारी दरबारी घेरे रहते थे। तो भी [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] द्वारा उसे जैसा क्रूर तथा दुश्चरित्र चित्रित किया गया है, वैसा वह कदापि नहीं था। वह बंगाल की स्वाधीनता को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए मर मिटने वाले देश भक्तों में न था, जैसा कि कुछ राष्ट्रवादी इतिहासकारों ने सिद्ध करने का प्रयत्न किया है।
 
==अंग्रेज़ों से अप्रसन्न==
 
==अंग्रेज़ों से अप्रसन्न==
सिराजुद्दौला का उद्यम अपने व्यक्तिगत हितों की रक्षा था, किन्तु चारित्रिक दृढ़ता के अभाव में उसे लक्ष्य प्राप्ति में असफलता मिली। वास्तव में वह न तो क़ायर था और न ही युद्धों से घबराता ही था। अपने मौसेरे भाई शौकतजंग से युद्ध में निर्णायक सफलता मिली और इसी युद्ध में शौकतजंग मारा गया। उसके अंग्रेज़ों से अप्रसन्न रहने के यथेष्ट कारण थे, क्योंकि अंग्रेज़ों ने उसकी आज्ञा के बिना [[कलकत्ता]] के दुर्ग की क़िलेबन्दी कर ली थी और उसके न्याय दण्ड के भय से भागे हुए राजा [[राजवल्लभ सेन]] के पुत्र कृष्णदास को शरण दे रखी थी। कलकत्ता पर उसका आक्रमण पूर्णतः नियोजित रूप में हुआ। फलतः केवल चार दिनों के घेरे (16 जून से 20 जून, 1726 ई0) के उपरान्त ही कलकत्ता पर उसका अधिकार हो गया।
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सिराजुद्दौला का उद्यम अपने व्यक्तिगत हितों की रक्षा था, किन्तु चारित्रिक दृढ़ता के अभाव में उसे लक्ष्य प्राप्ति में असफलता मिली। वास्तव में वह न तो क़ायर था और न ही युद्धों से घबराता ही था। अपने मौसेरे भाई शौकतजंग से युद्ध में निर्णायक सफलता मिली और इसी युद्ध में शौकतजंग मारा गया। उसके अंग्रेज़ों से अप्रसन्न रहने के यथेष्ट कारण थे, क्योंकि अंग्रेज़ों ने उसकी आज्ञा के बिना [[कलकत्ता]] के दुर्ग की क़िलेबन्दी कर ली थी और उसके न्याय दण्ड के भय से भागे हुए राजा [[राजवल्लभ सेन]] के पुत्र कृष्णदास को शरण दे रखी थी। कलकत्ता पर उसका आक्रमण पूर्णतः नियोजित रूप में हुआ। फलतः केवल चार दिनों के घेरे (16 जून से 20 जून, 1726 ई.) के उपरान्त ही कलकत्ता पर उसका अधिकार हो गया।
  
 
==कालकोठरी==
 
==कालकोठरी==
 
{{main|कलकत्ता की काल कोठरी}}
 
{{main|कलकत्ता की काल कोठरी}}
कलकत्ता स्थित अधिकांश अंग्रेज़ जहाज़ों द्वारा नदी के मार्ग से इसके पूर्व ही भाग चुके थे और जो थोड़े से भागने में असफल रहे, बन्दी बना लिये गये। उन्हें क़िले के भीतर ही एक कोठरी में रखा गया, जो [[कलकत्ता की कालकोठरी|कालकोठरी]] नाम से विख्यात है और जिसके विषय में नवाब पूर्णतया अनभिज्ञ था। कालकोठरी से जिन्दा निकले अंग्रेज़ बन्दियों को सिराजुद्दौला ने मुक्त कर दिया। किन्तु कलकत्ता पर अधिकार करने के बाद से उसकी सफलताओं का अन्त हो गया। वह फाल्टा की ओर भागने वाले अंग्रेज़ों का पीछा करने और उनका वहीं पर नाश कर देने के महत्त्व को न समझ सका। साथ ही उसने कलकत्ता की रक्षा के लिए उपयुक्त प्रबन्ध नहीं किया, ताकि अंग्रेज़ उस पर दुबारा अधिकार न कर सकें। परिणाम यह हुआ कि क्लाइब और वाटसन ने नवाब की फ़ौज की ओर से बिना किसी विरोध के कलकत्ता पर जनवरी, 1757 ई0 में पुनः अधिकार कर लिया।
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कलकत्ता स्थित अधिकांश अंग्रेज़ जहाज़ों द्वारा नदी के मार्ग से इसके पूर्व ही भाग चुके थे और जो थोड़े से भागने में असफल रहे, बन्दी बना लिये गये। उन्हें क़िले के भीतर ही एक कोठरी में रखा गया, जो [[कलकत्ता की कालकोठरी|कालकोठरी]] नाम से विख्यात है और जिसके विषय में नवाब पूर्णतया अनभिज्ञ था। कालकोठरी से जिन्दा निकले अंग्रेज़ बन्दियों को सिराजुद्दौला ने मुक्त कर दिया। किन्तु कलकत्ता पर अधिकार करने के बाद से उसकी सफलताओं का अन्त हो गया। वह फाल्टा की ओर भागने वाले अंग्रेज़ों का पीछा करने और उनका वहीं पर नाश कर देने के महत्त्व को न समझ सका। साथ ही उसने कलकत्ता की रक्षा के लिए उपयुक्त प्रबन्ध नहीं किया, ताकि अंग्रेज़ उस पर दुबारा अधिकार न कर सकें। परिणाम यह हुआ कि क्लाइब और वाटसन ने नवाब की फ़ौज की ओर से बिना किसी विरोध के कलकत्ता पर जनवरी, 1757 ई. में पुनः अधिकार कर लिया।
  
 
==अंग्रेज़ों से समझौता==
 
==अंग्रेज़ों से समझौता==
सिराजुद्दौला ने अंग्रेज़ों से समझौते की वार्ता प्रारम्भ की, पर अंग्रेज़ों ने मार्च 1757 ई0 में उसकी सार्वभौम सत्ता की उपेक्षा की, और [[चन्द्रनगर]], जहाँ [[फ़्राँसीसी|फ़्राँसीसियों]] का अधिकार था, आक्रमण करके अपना अधिकार कर लिया। सिराजुद्दौला ने अंग्रेज़ों के इस कुकृत्य पर कोई ध्यान नहीं दिया। उसने अंग्रेज़ों के साथ अलीनगर की सन्धि भी कर ली, किन्तु अंग्रेज़ों ने इस सन्धि की पूर्ण अवहेलना करके नवाब के विरुद्ध उसके असंतुष्ट दरबारियों से मिलकर षड़यंत्र रचना प्रारम्भ कर दिया और 12 जून को क्लाइब के नेतृत्व में एक सेना भेजी।
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सिराजुद्दौला ने अंग्रेज़ों से समझौते की वार्ता प्रारम्भ की, पर अंग्रेज़ों ने मार्च 1757 ई. में उसकी सार्वभौम सत्ता की उपेक्षा की, और [[चन्द्रनगर]], जहाँ [[फ़्राँसीसी|फ़्राँसीसियों]] का अधिकार था, आक्रमण करके अपना अधिकार कर लिया। सिराजुद्दौला ने अंग्रेज़ों के इस कुकृत्य पर कोई ध्यान नहीं दिया। उसने अंग्रेज़ों के साथ अलीनगर की सन्धि भी कर ली, किन्तु अंग्रेज़ों ने इस सन्धि की पूर्ण अवहेलना करके नवाब के विरुद्ध उसके असंतुष्ट दरबारियों से मिलकर षड़यंत्र रचना प्रारम्भ कर दिया और 12 जून को क्लाइब के नेतृत्व में एक सेना भेजी।
 
==प्लासी का युद्ध==
 
==प्लासी का युद्ध==
 
{{Main|प्लासी युद्ध}}
 
{{Main|प्लासी युद्ध}}
सिराजुद्दौला ने भी सेना एकत्र करके अंग्रेज़ों का मार्ग रोकने का प्रयास किया, किन्तु 23 जून, 1757 ई0 को प्लासी के युद्ध में अपने मुसलमान और हिन्दू सेनानायकों के विश्वासघात के फलस्वरूप वह पराजित हुआ। [[प्लासी]] से वह राजधानी [[मुर्शिदाबाद]] को भागा और वहाँ पर भी किसी ने उसके रक्षार्थ शस्त्र न उठाया। वह पुनः भागने पर विवश हुआ, पर शीघ्र ही पकड़ा गया और उसका वध कर दिया गया। सिराजुद्दौला का पतन अवश्य हुआ किन्तु उसने क्लाइब, वाटसन, मीरजाफ़र और [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] की भाँति, जो उसके पतन के षड़यंत्रों में सम्मिलित थे, न तो अपने किसी मित्र को ही कभी दिया और न ही अपने किसी शत्रु को।
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सिराजुद्दौला ने भी सेना एकत्र करके अंग्रेज़ों का मार्ग रोकने का प्रयास किया, किन्तु 23 जून, 1757 ई. को प्लासी के युद्ध में अपने मुसलमान और हिन्दू सेनानायकों के विश्वासघात के फलस्वरूप वह पराजित हुआ। [[प्लासी]] से वह राजधानी [[मुर्शिदाबाद]] को भागा और वहाँ पर भी किसी ने उसके रक्षार्थ शस्त्र न उठाया। वह पुनः भागने पर विवश हुआ, पर शीघ्र ही पकड़ा गया और उसका वध कर दिया गया। सिराजुद्दौला का पतन अवश्य हुआ किन्तु उसने क्लाइब, वाटसन, मीरजाफ़र और [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] की भाँति, जो उसके पतन के षड़यंत्रों में सम्मिलित थे, न तो अपने किसी मित्र को ही कभी दिया और न ही अपने किसी शत्रु को।
  
  

Revision as of 12:04, 22 March 2011

sirajuddaula aprail 1753 ee. se joon 1757 ee. tak bangal ka navab tha. vah alivardi khaan ka priy dohata tatha uttaradhikari tha, kintu nana ki gaddi par usake dabe ka usake chachere bhaee shaukatajang ne jo un dinoan poorniya ka soobedar tha, virodh kiya. sianhasanasin hone ke samay sirajuddaula ki umr keval 20 varsh ki thi. usaki buddhi aparipakv thi. charitr bhi nishkalank n tha tatha use svarthi, mahatvakaankshi aur sh dayantrakari darabari ghere rahate the. to bhi aangrezoan dvara use jaisa kroor tatha dushcharitr chitrit kiya gaya hai, vaisa vah kadapi nahian tha. vah bangal ki svadhinata ko akshunn banaye rakhane ke lie mar mitane vale desh bhaktoan mean n tha, jaisa ki kuchh rashtravadi itihasakaroan ne siddh karane ka prayatn kiya hai.

aangrezoan se aprasann

sirajuddaula ka udyam apane vyaktigat hitoan ki raksha tha, kintu charitrik dridhata ke abhav mean use lakshy prapti mean asaphalata mili. vastav mean vah n to qayar tha aur n hi yuddhoan se ghabarata hi tha. apane mausere bhaee shaukatajang se yuddh mean nirnayak saphalata mili aur isi yuddh mean shaukatajang mara gaya. usake aangrezoan se aprasann rahane ke yathesht karan the, kyoanki aangrezoan ne usaki ajna ke bina kalakatta ke durg ki qilebandi kar li thi aur usake nyay dand ke bhay se bhage hue raja rajavallabh sen ke putr krishnadas ko sharan de rakhi thi. kalakatta par usaka akraman poornatah niyojit roop mean hua. phalatah keval char dinoan ke ghere (16 joon se 20 joon, 1726 ee.) ke uparant hi kalakatta par usaka adhikar ho gaya.

kalakothari

  1. REDIRECTsaancha:mukhy

kalakatta sthit adhikaansh aangrez jahazoan dvara nadi ke marg se isake poorv hi bhag chuke the aur jo tho de se bhagane mean asaphal rahe, bandi bana liye gaye. unhean qile ke bhitar hi ek kothari mean rakha gaya, jo kalakothari nam se vikhyat hai aur jisake vishay mean navab poornataya anabhijn tha. kalakothari se jinda nikale aangrez bandiyoan ko sirajuddaula ne mukt kar diya. kintu kalakatta par adhikar karane ke bad se usaki saphalataoan ka ant ho gaya. vah phalta ki or bhagane vale aangrezoan ka pichha karane aur unaka vahian par nash kar dene ke mahattv ko n samajh saka. sath hi usane kalakatta ki raksha ke lie upayukt prabandh nahian kiya, taki aangrez us par dubara adhikar n kar sakean. parinam yah hua ki klaib aur vatasan ne navab ki fauj ki or se bina kisi virodh ke kalakatta par janavari, 1757 ee. mean punah adhikar kar liya.

aangrezoan se samajhauta

sirajuddaula ne aangrezoan se samajhaute ki varta prarambh ki, par aangrezoan ne march 1757 ee. mean usaki sarvabhaum satta ki upeksha ki, aur chandranagar, jahaan fraansisiyoan ka adhikar tha, akraman karake apana adhikar kar liya. sirajuddaula ne aangrezoan ke is kukrity par koee dhyan nahian diya. usane aangrezoan ke sath alinagar ki sandhi bhi kar li, kintu aangrezoan ne is sandhi ki poorn avahelana karake navab ke viruddh usake asantusht darabariyoan se milakar sh dayantr rachana prarambh kar diya aur 12 joon ko klaib ke netritv mean ek sena bheji.

plasi ka yuddh

  1. REDIRECTsaancha:mukhy

sirajuddaula ne bhi sena ekatr karake aangrezoan ka marg rokane ka prayas kiya, kintu 23 joon, 1757 ee. ko plasi ke yuddh mean apane musalaman aur hindoo senanayakoan ke vishvasaghat ke phalasvaroop vah parajit hua. plasi se vah rajadhani murshidabad ko bhaga aur vahaan par bhi kisi ne usake raksharth shastr n uthaya. vah punah bhagane par vivash hua, par shighr hi pak da gaya aur usaka vadh kar diya gaya. sirajuddaula ka patan avashy hua kintu usane klaib, vatasan, mirajafar aur eest indiya kampani ki bhaanti, jo usake patan ke sh dayantroan mean sammilit the, n to apane kisi mitr ko hi kabhi diya aur n hi apane kisi shatru ko.



panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

sanbandhit lekh

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