Difference between revisions of "होली"

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होली [[भारत]] के प्रमुख चार त्योहारों ([[दीपावली]], [[रक्षाबंधन]], होली और [[दशहरा]]) में से एक है।  
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होली [[भारत]] के प्रमुख चार त्योहारों ([[दीपावली]], [[रक्षाबंधन]], होली और [[दशहरा]]) में से एक है। होली जहाँ एक ओर सामाजिक एवं धार्मिक है, वहीं [[रंग|रंगों]] का भी त्योहार है। आवाल वृद्ध, नर- नारी सभी  इसे बड़े उत्साह से मनाते हैं। इसमें जातिभेद-वर्णभेद का कोई स्थान नहीं है। इस अवसर पर लकड़ियों तथा कंडों आदि का ढेर लगाकर होलिकापूजन किया जाता है। फिर उसमें आग लगायी जाती है। पूजन के समय मंत्र उच्चारण किया जाता है।
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==होलिकोत्सव==
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इस पर्व को नवान्नेष्टि यज्ञपर्व भी कहा जाता है, क्योंकि खेत से आये नवीन अन्न को इसदिन यज्ञ में हवन करके प्रसाद लेने की परम्परा भी है। उस अन्न को होला कहते है। इसी से इसका नाम ''होलिकोत्सव'' पड़ा। होली का समय अपने आप में अनूठा ही है। [[फ़रवरी]]- [[मार्च]] में जब होली मनाई जाती है, तब सब ओर चिंतामुक्त वातावरण होता है- किसान फ़सल कटने के बाद आश्वस्त होता है। पशुचारा तो संगृहित किया जा चुका होता है। शीत ऋतु अपने समापन पर होती है। दिन न तो बहुत गर्म, न ही रातें बहुत ठंडी होती हैं। होली फाल्गुन मास में पूर्ण चंद्रमा के दिन मनाई जाती है। यद्यपि यह उत्तर भारत में एक सप्ताह व मणिपुर में छह दिन तक मनाई जाती है। होली वर्ष का अंतिम तथा जनसामान्य का सबसे बड़ा त्योहार है। सभी लोग आपसी भेदभाव को भुलाकर इसे हर्ष व उल्लास के साथ मनाते हैं। होली पारस्परिक सौमनस्य एकता और समानता को बल देती है। विभिन्न देशों में इसके अलग-अलग नाम और रूप हैं। होलिका की अग्नि में पुराना वर्ष 'जो होली' के रूप में जल जाता है और नया वर्ष नयी आशाएँ, आकांक्षाएँ लेकर प्रकट होता है। मानव जीवन में नई ऊर्जा, नई स्फूर्ति का विकास होता है। यह हिन्दुओं का नववर्षोत्सव है।
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==इतिहास==
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प्रचलित मान्यता के अनुसार यह त्योहार [[हिरण्यकशिपु]] की बहन होलिका के मारे जाने की स्मृति में भी मनाया जाता है। [[पुराणों]] में वर्णित है कि हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका वरदान के प्रभाव से नित्य अग्निस्नान करती और जलती नहीं थी हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका से [[प्रह्लाद]] को गोद में लेकर अग्निस्नान करने को कहा। उसने समझा कि ऐसा करने से प्रह्लाद अग्नि में जल जाएगा तथा होलिका बच जाएगी। होलिका ने ऐसा ही किया, किंतु होलिका जल गयी, प्रह्लाद बच गये। होलिका को यह स्मरण ही नहीं रहा कि अग्नि स्नान वह अकेले ही कर सकती है। तभी से इस त्योहार के मनाने की प्रथा चल पड़ी।
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====आरम्भिक शब्दरूप====
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यह बहुत प्राचीन उत्सव है। इसका आरम्भिक शब्दरूप होलाका था।<ref>जैमिनि, 1।3।15-16)</ref>  [[भारत]] में पूर्वी भागों में यह शब्द प्रचलित था। [[जैमिनि]] एवं [[शबर]] का कथन है कि होला का सभी [[आर्य|आर्यो]] द्वारा सम्पादित होना चाहिए। [[काठकगृह्य]]<ref>73,1</ref> में एक सूत्र है 'राका होला के', जिसकी व्याख्या टीकाकार देवपाल ने यों की है-'होला एक कर्म-विशेष है जो स्त्रियों के सौभाग्य के लिए सम्पादित होता है, उस कृत्य में राका (पूर्णचन्द्र) देवता है।'<ref>राका होलाके। काठकगृह्य (73।1)। इस पर देवपाल की टीकायों है: 'होला कर्मविशेष: सौभाग्याय स्त्रीणां प्रातरनुष्ठीयते। तत्र होला के राका देवता। यास्ते राके सुभतय इत्यादि।'</ref> अन्य टीकाकारों ने इसकी व्याख्या अन्य रूपों में की है। होला का उन बीस क्रीड़ाओं में एक है जो सम्पूर्ण [[भारत]] में प्रचलित हैं। इसका उल्लेख [[वात्स्यायन]] के कामसूत्र<ref>कामसूत्र, 1।4।42</ref> में भी हुआ है जिसका अर्थ टीकाकार जयमंगल ने किया है। फाल्गुन की पूर्णिमा पर लोग श्रृंग से एक-दूसरे पर रंगीन जल छोड़ते हैं और सुगंधित चूर्ण बिखेरते हैं। [[हेमाद्रि]]<ref>काल, पृ. 106</ref> ने बृहद्यम का एक श्लोक उद्भृत किया है।  जिसमें होलिका-पूर्णिमा को हुताशनी (आलकज की भाँति) कहा गया है। [[लिंग पुराण]] में आया है- 'फाल्गुन पूर्णिमा को 'फाल्गुनिका' कहा जाता है, यह बाल-क्रीड़ाओं से पूर्ण है और लोगों को विभूति (ऐश्वर्य) देने वाली है।' [[वराह पुराण]] में आया है कि यह 'पटवास-विलासिनी' (चूर्ण से युक्त क्रीड़ाओं वाली) है। <ref>लिंगपुराणे। फाल्गुने पौर्णमासी च सदा बालविकासिनी। ज्ञेया फाल्गुनिका सा च ज्ञेया लोकर्विभूतये।। वाराहपुराणे। फाल्गुने पौर्णिमास्यां तु पटवासविलासिनी। ज्ञेया सा फाल्गुनी लोके कार्या लोकसमृद्धये॥ हे. (काल, पृ. 642)। इसमें प्रथम का.वि. (पृ. 352) में भी आया है जिसका अर्थ इस प्रकार है-बालवज्जनविलासिन्यामित्यर्थ: </ref>
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====शताब्दियों पूर्व से होलिका उत्सव====
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[[जैमिनि]] एवं काठकगृह्य में वर्णित होने के कारण यह कहा जा सकता है कि ईसा की कई शताब्दियों पूर्व से होलाका का उत्सव प्रचलित था।  कामसूत्र एवं [[भविष्य पुराण|भविष्योत्तर पुराण]] इसे [[वसन्त]] से संयुक्त करते हैं, अत: यह उत्सव पूर्णिमान्त गणना के अनुसार वर्ष के अन्त में होता था। अत: होलिका हेमन्त या पतझड़ के अन्त की सूचक है और वसन्त की कामप्रेममय लीलाओं की द्योतक है। मस्तीभरे गाने, नृत्य एवं संगीत वसन्तागमन के उल्लासपूर्ण क्षणों के परिचायक हैं। वसन्त की आनन्दाभिव्यक्ति रंगीन जल एवं लाल रंग, अबीर-गुलाल के पारस्परिक आदान-प्रदान से प्रकट होती है। कुछ प्रदेशों में यह रंग युक्त वातावरण होलिका के दिन ही होता है, किन्तु दक्षिण में यह होलिका के पाँचवें दिन (रंग-पंचमी) मनायी जाती है। कहीं-कहीं रंगों के खेल पहले से आरम्भ कर दिये जाते हैं और बहुत दिनों तक चलते रहते हैं; होलिका के पूर्व ही 'पहुनई' में आये हुए लोग एक-दूसरे पर पंक (कीचड़) भी फेंकते हैं। <ref>वर्षकृत्यदीपक (पृ0 301) में निम्न श्लोक आये हैं- <br />
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'प्रभाते बिमले जाते ह्यंगे भस्म च कारयेत्।  सर्वागे च ललाटे च क्रीडितव्यं पिशाचवत्॥<br />
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सिन्दरै: कुंकुमैश्चैव धूलिभिर्धूसरो भवेत्।  गीतं वाद्यं च नृत्यं च कृर्याद्रथ्योपसर्पणम् ॥ <br />
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ब्राह्मणै: क्षत्रियैर्वैश्यै: शूद्रैश्चान्यैश्च जातिभि:।  एकीभूय प्रकर्तव्या क्रीडा या फाल्गुने सदा।  बालकै: वह गन्तव्यं फाल्गुन्यां च युधिष्ठिर ॥'</ref> कही-कहीं दो-तीन दिनों तक मिट्टी, पंक, रंग, गान आदि से लोग मतवाले होकर दल बना कर होली का हुड़दंग मचाते हैं, सड़कें लाल हो जाती हैं। कहीं-कहीं लोग भद्दे मजाकों, अश्लील गानों से अपनी कामेच्छाओं की बाह्य तृप्ति करते हैं। वास्तव में यह उत्सव प्रेम करने से सम्बन्धित है, किन्तु शिष्ट जनों की नारियाँ इन दिनों बाहर नहीं निकल पातीं, क्योंकि उन्हें भय रहता है कि लोग भद्दी गालियाँ न दे बैठें। श्री गुप्ते ने अपने लेख<ref>हिन्दू हालीडेज एवं सेरीमनीज'(पृ. 92)</ref> में प्रकट किया है कि यह उत्सव ईजिप्ट ([[मिस्र]]) या ग्रीस (यूनान) से लिया गया है। किन्तु यह भ्रामक दृष्टिकोण है। लगता है, उन्होंने भारतीय प्राचीन ग्रन्थों का अवलोकन नहीं किया है, दूसरे, वे इस विषय में भी निश्चित नहीं हैं कि इस उत्सव का उद्गम मिस्त्र से है या यूनान से। उनकी धारणा को गम्भीरता से नहीं लेना चाहिए।
 
==फाग उत्सव==
 
==फाग उत्सव==
 
[[चित्र:Holi Phalen Mathura.jpg|250px|right|thumb|फालैन गांव में तेज़ जलती हुई होली में से नंगे बदन और नंगे पांव निकलता पण्डा]]
 
[[चित्र:Holi Phalen Mathura.jpg|250px|right|thumb|फालैन गांव में तेज़ जलती हुई होली में से नंगे बदन और नंगे पांव निकलता पण्डा]]
 
[[फाल्गुन]] के माह [[रंगभरनी एकादशी]] से सभी मन्दिरों में फाग उत्सव प्रारम्भ होते हैं जो [[दौज]] तक चलते हैं। दौज को [[बलदेव मथुरा|बल्देव (दाऊजी)]] में [[हुरंगा]] होता है। [[बरसाना]], [[नन्दगाँव|नन्दगांव]], [[जावट ग्राम|जाव]], [[बठैन]], [[जतीपुरा गोवर्धन|जतीपुरा]], [[आन्यौर]] आदि में भी होली खेली जाती है । यह [[ब्रज]] विशेष त्योहार है यों तो [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार इसका सम्बन्ध पुराणकथाओं से है और ब्रज में भी होली इसी दिन जलाई जाती है। इसमें [[यज्ञ]] रूप में नवीन अन्न की बालें भूनी जाती है। [[प्रह्लाद]] की कथा की प्रेरणा इससे मिलती हैं।  होली दहन के दिन [[कोसी]] के निकट [[फालैन]] गांव में [[प्रह्लाद कुण्ड]] के पास भक्त प्रह्लाद का मेला लगता है। यहाँ तेज़ जलती हुई होली में से नंगे बदन और नंगे पांव पण्डा निकलता है।
 
[[फाल्गुन]] के माह [[रंगभरनी एकादशी]] से सभी मन्दिरों में फाग उत्सव प्रारम्भ होते हैं जो [[दौज]] तक चलते हैं। दौज को [[बलदेव मथुरा|बल्देव (दाऊजी)]] में [[हुरंगा]] होता है। [[बरसाना]], [[नन्दगाँव|नन्दगांव]], [[जावट ग्राम|जाव]], [[बठैन]], [[जतीपुरा गोवर्धन|जतीपुरा]], [[आन्यौर]] आदि में भी होली खेली जाती है । यह [[ब्रज]] विशेष त्योहार है यों तो [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार इसका सम्बन्ध पुराणकथाओं से है और ब्रज में भी होली इसी दिन जलाई जाती है। इसमें [[यज्ञ]] रूप में नवीन अन्न की बालें भूनी जाती है। [[प्रह्लाद]] की कथा की प्रेरणा इससे मिलती हैं।  होली दहन के दिन [[कोसी]] के निकट [[फालैन]] गांव में [[प्रह्लाद कुण्ड]] के पास भक्त प्रह्लाद का मेला लगता है। यहाँ तेज़ जलती हुई होली में से नंगे बदन और नंगे पांव पण्डा निकलता है।
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[[चित्र:Holi Barsana Mathura 1.jpg|लट्ठामार होली, [[बरसाना]] <br /> Lathmar Holi, Barsana|thumb|250px|left]]
 
[[चित्र:Holi Barsana Mathura 1.jpg|लट्ठामार होली, [[बरसाना]] <br /> Lathmar Holi, Barsana|thumb|250px|left]]
 
[[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] [[राधा]] और [[गोपि|गोपियों]]–ग्वालों के बीच की होली के रूप में [[गुलाल]], रंग [[केसर]] की [[पिचकारी]] से ख़ूब खेलते हैं। होली का आरम्भ फाल्गुन [[शुक्ल]] 9 [[बरसाना]] से होता है। वहां की [[होली बरसाना विडियो 1|लठामार होली]] जग प्रसिद्ध है। दसवीं को ऐसी ही होली [[नन्दगांव]] में होती है। इसी के साथ पूरे ब्रज में होली की धूम मचती है। [[धूलेंड़ी]] को प्राय: होली पूर्ण हो जाती है, इसके बाद [[हुरंगे]] चलते हैं, जिनमें महिलायें रंगों के साथ [[लाठियों]], [[कोड़ों]] आदि से पुरुषों को घेरती हैं। यह सब धार्मिक वातावरण होता है।
 
[[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] [[राधा]] और [[गोपि|गोपियों]]–ग्वालों के बीच की होली के रूप में [[गुलाल]], रंग [[केसर]] की [[पिचकारी]] से ख़ूब खेलते हैं। होली का आरम्भ फाल्गुन [[शुक्ल]] 9 [[बरसाना]] से होता है। वहां की [[होली बरसाना विडियो 1|लठामार होली]] जग प्रसिद्ध है। दसवीं को ऐसी ही होली [[नन्दगांव]] में होती है। इसी के साथ पूरे ब्रज में होली की धूम मचती है। [[धूलेंड़ी]] को प्राय: होली पूर्ण हो जाती है, इसके बाद [[हुरंगे]] चलते हैं, जिनमें महिलायें रंगों के साथ [[लाठियों]], [[कोड़ों]] आदि से पुरुषों को घेरती हैं। यह सब धार्मिक वातावरण होता है।
 
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होली या होलिका आनन्द एवं उल्लास का ऐसा उत्सव है जो सम्पूर्ण देश में मनाया जाता है। उत्सव मनाने के ढंग में कहीं-कहीं अन्तर पाया जाता है। बंगाल को छोड़कर [[होलिका-दहन]] सर्वत्र देखा जाता है। [[पश्चिम बंगाल|बंगाल]] में फाल्गुन [[पूर्णिमा]] पर कृष्ण-प्रतिमा का [[झूला]] प्रचलित है किन्तु यह [[भारत]] के अधिकांश स्थानों में नहीं दिखाई पड़ता। इस उत्सव की अवधि विभिन्न प्रान्तों में विभिन्न है। इस अवसर पर लोग बाँस या धातु की पिचकारी से रंगीन जल छोड़ते हैं या अबीर-गुलाल लगाते हैं। कहीं-कहीं अश्लील गाने गाये जाते हैं। इसमें जो धार्मिक तत्त्व है वह है बंगाल में कृष्ण-पूजा करना तथा कुछ प्रदेशों में पुरोहित द्वारा होलिका की पूजा करवाना। लोग होलिका दहन के समय परिक्रमा करते हैं, अग्नि में नारियल फेंकते हैं, गेहूँ, [[जौ]] आदि के डंठल फेंकते हैं और इनके अधजले अंश का प्रसाद बनाते हैं। कहीं-कहीं लोग हथेली से मुख-स्वर उत्पन्न करते हैं।
 
होली या होलिका आनन्द एवं उल्लास का ऐसा उत्सव है जो सम्पूर्ण देश में मनाया जाता है। उत्सव मनाने के ढंग में कहीं-कहीं अन्तर पाया जाता है। बंगाल को छोड़कर [[होलिका-दहन]] सर्वत्र देखा जाता है। [[पश्चिम बंगाल|बंगाल]] में फाल्गुन [[पूर्णिमा]] पर कृष्ण-प्रतिमा का [[झूला]] प्रचलित है किन्तु यह [[भारत]] के अधिकांश स्थानों में नहीं दिखाई पड़ता। इस उत्सव की अवधि विभिन्न प्रान्तों में विभिन्न है। इस अवसर पर लोग बाँस या धातु की पिचकारी से रंगीन जल छोड़ते हैं या अबीर-गुलाल लगाते हैं। कहीं-कहीं अश्लील गाने गाये जाते हैं। इसमें जो धार्मिक तत्त्व है वह है बंगाल में कृष्ण-पूजा करना तथा कुछ प्रदेशों में पुरोहित द्वारा होलिका की पूजा करवाना। लोग होलिका दहन के समय परिक्रमा करते हैं, अग्नि में नारियल फेंकते हैं, गेहूँ, [[जौ]] आदि के डंठल फेंकते हैं और इनके अधजले अंश का प्रसाद बनाते हैं। कहीं-कहीं लोग हथेली से मुख-स्वर उत्पन्न करते हैं।
 
==आरम्भिक शब्दरूप==
 
यह बहुत प्राचीन उत्सव है। इसका आरम्भिक शब्दरूप होलाका था।<ref>जैमिनि, 1।3।15-16)</ref>  [[भारत]] में पूर्वी भागों में यह शब्द प्रचलित था। [[जैमिनि]] एवं [[शबर]] का कथन है कि होला का सभी [[आर्य|आर्यो]] द्वारा सम्पादित होना चाहिए। [[काठकगृह्य]]<ref>73,1</ref> में एक सूत्र है 'राका होला के', जिसकी व्याख्या टीकाकार देवपाल ने यों की है-'होला एक कर्म-विशेष है जो स्त्रियों के सौभाग्य के लिए सम्पादित होता है, उस कृत्य में राका (पूर्णचन्द्र) देवता है।'<ref>राका होलाके। काठकगृह्य (73।1)। इस पर देवपाल की टीकायों है: 'होला कर्मविशेष: सौभाग्याय स्त्रीणां प्रातरनुष्ठीयते। तत्र होला के राका देवता। यास्ते राके सुभतय इत्यादि।'</ref> अन्य टीकाकारों ने इसकी व्याख्या अन्य रूपों में की है। होला का उन बीस क्रीड़ाओं में एक है जो सम्पूर्ण [[भारत]] में प्रचलित हैं। इसका उल्लेख [[वात्स्यायन]] के कामसूत्र<ref>कामसूत्र, 1।4।42</ref> में भी हुआ है जिसका अर्थ टीकाकार जयमंगल ने किया है। फाल्गुन की पूर्णिमा पर लोग श्रृंग से एक-दूसरे पर रंगीन जल छोड़ते हैं और सुगंधित चूर्ण बिखेरते हैं। [[हेमाद्रि]]<ref>काल, पृ0 106</ref> ने बृहद्यम का एक श्लोक उद्भृत किया है।  जिसमें होलिका-पूर्णिमा को हुताशनी (आलकज की भाँति) कहा गया है। [[लिंग पुराण]] में आया है- 'फाल्गुन पूर्णिमा को 'फाल्गुनिका' कहा जाता है, यह बाल-क्रीड़ाओं से पूर्ण है और लोगों को विभूति (ऐश्वर्य) देने वाली है।' [[वराह पुराण]] में आया है कि यह 'पटवास-विलासिनी' (चूर्ण से युक्त क्रीड़ाओं वाली) है। <ref>लिंगपुराणे। फाल्गुने पौर्णमासी च सदा बालविकासिनी। ज्ञेया फाल्गुनिका सा च ज्ञेया लोकर्विभूतये।। वाराहपुराणे। फाल्गुने पौर्णिमास्यां तु पटवासविलासिनी। ज्ञेया सा फाल्गुनी लोके कार्या लोकसमृद्धये॥ हे0 (काल, पृ0 642)। इसमें प्रथम का0वि0 (पृ0 352) में भी आया है जिसका अर्थ इस प्रकार है-बालवज्जनविलासिन्यामित्यर्थ: </ref>
 
 
[[चित्र:Holika-Prahlad-1.jpg|thumb|[[प्रह्लाद]] को गोद में बिठाकर बैठी होलिका|220px]]
 
[[चित्र:Holika-Prahlad-1.jpg|thumb|[[प्रह्लाद]] को गोद में बिठाकर बैठी होलिका|220px]]
 
==होलिका==
 
==होलिका==
 
हेमाद्रि<ref>(व्रत, भाग 2, पृ0 174-190)</ref> ने भविष्योत्तर<ref>भविष्योत्तर, 132।1।51</ref> से उद्धरण देकर एक कथा दी है। [[युधिष्ठिर]] ने [[कृष्ण]] से पूछा कि फाल्गुन-पूर्णिमा को प्रत्येक गाँव एवं नगर में एक उत्सव क्यों होता है, प्रत्येक घर में बच्चे क्यों क्रीड़ामय हो जाते हैं और होलाका क्यों जलाते हैं, उसमें किस [[देवता]] की पूजा होती है, किसने इस उत्सव का प्रचार किया, इसमें क्या होता है और यह 'अडाडा' क्यों कही जाती है। [[चित्र:Holi-Holika-Dahan-Mathura.jpg|होलिका दहन, [[मथुरा]]<br /> Holika Dahan, Mathura|thumb|250px|left]] कृष्ण ने युधिष्ठिर से [[राजा रघु]] के विषय में एक किंवदन्ती कही। राजा रघु के पास लोग यह कहने के लिए गये कि 'ढोण्ढा' नामक एक राक्षसी है जिसे [[शिव]] ने वरदान दिया है कि उसे देव, मानव आदि नहीं मार सकते हैं और न वह [[अस्त्र शस्त्र]] या जाड़ा या गर्मी या वर्षा से मर सकती है, किन्तु शिव ने इतना कह दिया है कि वह क्रीड़ायुक्त बच्चों से भय खा सकती है।  पुरोहित ने यह भी बताया कि फाल्गुन की पूर्णिमा को जाड़े की ऋतु समाप्त होती है और ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है, तब लोग हँसें एवं आनन्द मनायें, बच्चे लकड़ी के टुकड़े लेकर बाहर प्रसन्नतापूर्वक निकल पड़ें, लकड़ियाँ एवं घास एकत्र करें, रक्षोघ्न मन्त्रों के साथ उसमें आग लगायें, तालियाँ बजायें, अग्नि की तीन बार प्रदक्षिणा करें, हँसें और प्रचलित भाषा में भद्दे एवं अश्लील गाने गायें, इसी शोरगुल एवं अट्टहास से तथा होम से वह राक्षसी मरेगी। जब राजा ने यह सब किया तो राक्षसी मर गयी और वह दिन अडाडा या होलिका कहा गया। आगे आया है कि दूसरे दिन [[चैत्र]] की [[प्रतिपदा]] पर लोगों को होलिकाभस्म को प्रणाम करना चाहिए, मन्त्रोच्चारण करना चाहिए, घर के प्रांगण में वर्गाकार स्थल के मध्य में काम-पूजा करनी चाहिए। काम-प्रतिमा पर सुन्दर नारी द्वारा चन्दन-लेप लगाना चाहिए और पूजा करने वाले को चन्दन-लेप से मिश्रित आम्र-बौर खाना चाहिए। इसके उपरान्त यथाशक्ति ब्राह्मणों, भाटों आदि को दान देना चाहिए और 'काम देवता मुझ पर प्रसन्न हों' ऐसा कहना चाहिए। इसके आगे [[पुराण]] में आया है- 'जब शुक्ल पक्ष की 15वीं तिथि पर पतझड़ समाप्त हो जाता है और वसन्त ऋतु का प्रात: आगमन होता है तो जो व्यक्ति चन्दन-लेप के साथ आम्र-मंजरी खाता है वह आनन्द से रहता है।'
 
हेमाद्रि<ref>(व्रत, भाग 2, पृ0 174-190)</ref> ने भविष्योत्तर<ref>भविष्योत्तर, 132।1।51</ref> से उद्धरण देकर एक कथा दी है। [[युधिष्ठिर]] ने [[कृष्ण]] से पूछा कि फाल्गुन-पूर्णिमा को प्रत्येक गाँव एवं नगर में एक उत्सव क्यों होता है, प्रत्येक घर में बच्चे क्यों क्रीड़ामय हो जाते हैं और होलाका क्यों जलाते हैं, उसमें किस [[देवता]] की पूजा होती है, किसने इस उत्सव का प्रचार किया, इसमें क्या होता है और यह 'अडाडा' क्यों कही जाती है। [[चित्र:Holi-Holika-Dahan-Mathura.jpg|होलिका दहन, [[मथुरा]]<br /> Holika Dahan, Mathura|thumb|250px|left]] कृष्ण ने युधिष्ठिर से [[राजा रघु]] के विषय में एक किंवदन्ती कही। राजा रघु के पास लोग यह कहने के लिए गये कि 'ढोण्ढा' नामक एक राक्षसी है जिसे [[शिव]] ने वरदान दिया है कि उसे देव, मानव आदि नहीं मार सकते हैं और न वह [[अस्त्र शस्त्र]] या जाड़ा या गर्मी या वर्षा से मर सकती है, किन्तु शिव ने इतना कह दिया है कि वह क्रीड़ायुक्त बच्चों से भय खा सकती है।  पुरोहित ने यह भी बताया कि फाल्गुन की पूर्णिमा को जाड़े की ऋतु समाप्त होती है और ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है, तब लोग हँसें एवं आनन्द मनायें, बच्चे लकड़ी के टुकड़े लेकर बाहर प्रसन्नतापूर्वक निकल पड़ें, लकड़ियाँ एवं घास एकत्र करें, रक्षोघ्न मन्त्रों के साथ उसमें आग लगायें, तालियाँ बजायें, अग्नि की तीन बार प्रदक्षिणा करें, हँसें और प्रचलित भाषा में भद्दे एवं अश्लील गाने गायें, इसी शोरगुल एवं अट्टहास से तथा होम से वह राक्षसी मरेगी। जब राजा ने यह सब किया तो राक्षसी मर गयी और वह दिन अडाडा या होलिका कहा गया। आगे आया है कि दूसरे दिन [[चैत्र]] की [[प्रतिपदा]] पर लोगों को होलिकाभस्म को प्रणाम करना चाहिए, मन्त्रोच्चारण करना चाहिए, घर के प्रांगण में वर्गाकार स्थल के मध्य में काम-पूजा करनी चाहिए। काम-प्रतिमा पर सुन्दर नारी द्वारा चन्दन-लेप लगाना चाहिए और पूजा करने वाले को चन्दन-लेप से मिश्रित आम्र-बौर खाना चाहिए। इसके उपरान्त यथाशक्ति ब्राह्मणों, भाटों आदि को दान देना चाहिए और 'काम देवता मुझ पर प्रसन्न हों' ऐसा कहना चाहिए। इसके आगे [[पुराण]] में आया है- 'जब शुक्ल पक्ष की 15वीं तिथि पर पतझड़ समाप्त हो जाता है और वसन्त ऋतु का प्रात: आगमन होता है तो जो व्यक्ति चन्दन-लेप के साथ आम्र-मंजरी खाता है वह आनन्द से रहता है।'
 
 
==अन्य प्रान्तों में होलिका==
 
==अन्य प्रान्तों में होलिका==
 
आनन्दोल्लास से परिपूर्ण एवं अश्लील गान-नृत्यों में लीन लोग जब अन्य प्रान्तों में होलिका का उत्सव मनाते हैं तब बंगाल में दोलयात्रा का उत्सव होता है। देखिए शूलपाणिकृत 'दोलयात्राविवेक।' यह उत्सव पाँच या तीन दिनों तक चलता है। पूर्णिमा के पूर्व चतुर्दशी को सन्ध्या के समय मण्डप के पूर्व में अग्नि के सम्मान में एक उत्सव होता है। गोविन्द की प्रतिमा का निर्माण होता है। एक वेदिका पर 16 खम्भों से युक्त मण्डप में प्रतिमा रखी जाती है। इसे पंचामृत से नहलाया जाता है, कई प्रकार के कृत्य किये जाते हैं, मूर्ति या प्रतिमा को इधर-उधर सात बार डोलाया जाता है। प्रथम दिन की प्रज्वलित अग्नि उत्सव के अन्त तक रखी जाती है। अन्त में प्रतिमा 21 बार डोलाई या झुलाई जाती है। ऐसा आया है कि इन्द्रद्युम्न राजा ने [[वृन्दावन]] में इस झूले का उत्सव आरम्भ किया था। इस उत्सव के करने से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है।  शूलपाणि ने इसकी तिथि, प्रहर, नक्षत्र आदि के विषय में विवेचन कर निष्कर्ष निकाला है कि दोलयात्रा पूर्णिमा तिथि की उपस्थिति में ही होनी चाहिए, चाहे उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र हो या न हो।  
 
आनन्दोल्लास से परिपूर्ण एवं अश्लील गान-नृत्यों में लीन लोग जब अन्य प्रान्तों में होलिका का उत्सव मनाते हैं तब बंगाल में दोलयात्रा का उत्सव होता है। देखिए शूलपाणिकृत 'दोलयात्राविवेक।' यह उत्सव पाँच या तीन दिनों तक चलता है। पूर्णिमा के पूर्व चतुर्दशी को सन्ध्या के समय मण्डप के पूर्व में अग्नि के सम्मान में एक उत्सव होता है। गोविन्द की प्रतिमा का निर्माण होता है। एक वेदिका पर 16 खम्भों से युक्त मण्डप में प्रतिमा रखी जाती है। इसे पंचामृत से नहलाया जाता है, कई प्रकार के कृत्य किये जाते हैं, मूर्ति या प्रतिमा को इधर-उधर सात बार डोलाया जाता है। प्रथम दिन की प्रज्वलित अग्नि उत्सव के अन्त तक रखी जाती है। अन्त में प्रतिमा 21 बार डोलाई या झुलाई जाती है। ऐसा आया है कि इन्द्रद्युम्न राजा ने [[वृन्दावन]] में इस झूले का उत्सव आरम्भ किया था। इस उत्सव के करने से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है।  शूलपाणि ने इसकी तिथि, प्रहर, नक्षत्र आदि के विषय में विवेचन कर निष्कर्ष निकाला है कि दोलयात्रा पूर्णिमा तिथि की उपस्थिति में ही होनी चाहिए, चाहे उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र हो या न हो।  
होलिकोत्सव के विषय में नि0 सि0<ref>नि0 सि0, पृ0 227</ref>, [[स्मृतिकौस्तुभ]]<ref>(स्मृतिकौस्तुभ, पृ0 516-519), पृ0 चि0 (पृ0 308-319)</ref> आदि निबन्धों में वर्णन आया है।
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होलिकोत्सव के विषय में नि. सि.<ref>नि. सि., पृ. 227</ref>, [[स्मृतिकौस्तुभ]]<ref>(स्मृतिकौस्तुभ, पृ. 516-519), पृ. चि. (पृ. 308-319)</ref> आदि निबन्धों में वर्णन आया है।
==शताब्दियों पूर्व से होलिका उत्सव प्रचलित था==
 
[[जैमिनि]] एवं काठकगृह्य में वर्णित होने के कारण यह कहा जा सकता है कि ईसा की कई शताब्दियों पूर्व से होलाका का उत्सव प्रचलित था।  कामसूत्र एवं [[भविष्य पुराण|भविष्योत्तर पुराण]] इसे [[वसन्त]] से संयुक्त करते हैं, अत: यह उत्सव पूर्णिमान्त गणना के अनुसार वर्ष के अन्त में होता था। अत: होलिका हेमन्त या पतझड़ के अन्त की सूचक है और वसन्त की कामप्रेममय लीलाओं की द्योतक है। मस्तीभरे गाने, नृत्य एवं संगीत वसन्तागमन के उल्लासपूर्ण क्षणों के परिचायक हैं। वसन्त की आनन्दाभिव्यक्ति रंगीन जल एवं लाल रंग, अबीर-गुलाल के पारस्परिक आदान-प्रदान से प्रकट होती है। कुछ प्रदेशों में यह रंग युक्त वातावरण होलिका के दिन ही होता है, किन्तु दक्षिण में यह होलिका के पाँचवें दिन (रंग-पंचमी) मनायी जाती है। कहीं-कहीं रंगों के खेल पहले से आरम्भ कर दिये जाते हैं और बहुत दिनों तक चलते रहते हैं; होलिका के पूर्व ही 'पहुनई' में आये हुए लोग एक-दूसरे पर पंक (कीचड़) भी फेंकते हैं। <ref>वर्षकृत्यदीपक (पृ0 301) में निम्न श्लोक आये हैं- <br />
 
'प्रभाते बिमले जाते ह्यंगे भस्म च कारयेत्।  सर्वागे च ललाटे च क्रीडितव्यं पिशाचवत्॥<br />
 
सिन्दरै: कुंकुमैश्चैव धूलिभिर्धूसरो भवेत्।  गीतं वाद्यं च नृत्यं च कृर्याद्रथ्योपसर्पणम् ॥ <br />
 
ब्राह्मणै: क्षत्रियैर्वैश्यै: शूद्रैश्चान्यैश्च जातिभि:।  एकीभूय प्रकर्तव्या क्रीडा या फाल्गुने सदा।  बालकै: वह गन्तव्यं फाल्गुन्यां च युधिष्ठिर ॥'</ref> कही-कहीं दो-तीन दिनों तक मिट्टी, पंक, रंग, गान आदि से लोग मतवाले होकर दल बना कर होली का हुड़दंग मचाते हैं, सड़कें लाल हो जाती हैं। कहीं-कहीं लोग भद्दे मजाकों, अश्लील गानों से अपनी कामेच्छाओं की बाह्य तृप्ति करते हैं। वास्तव में यह उत्सव प्रेम करने से सम्बन्धित है, किन्तु शिष्ट जनों की नारियाँ इन दिनों बाहर नहीं निकल पातीं, क्योंकि उन्हें भय रहता है कि लोग भद्दी गालियाँ न दे बैठें। श्री गुप्ते ने अपने लेख<ref>हिन्दू हालीडेज एवं सेरीमनीज'(पृ0 92)</ref> में प्रकट किया है कि यह उत्सव ईजिप्ट ([[मिस्र]]) या ग्रीस (यूनान) से लिया गया है। किन्तु यह भ्रामक दृष्टिकोण है। लगता है, उन्होंने भारतीय प्राचीन ग्रन्थों का अवलोकन नहीं किया है, दूसरे, वे इस विषय में भी निश्चित नहीं हैं कि इस उत्सव का उद्गम मिस्त्र से है या यूनान से। उनकी धारणा को गम्भीरता से नहीं लेना चाहिए।
 
  
 
==वीथिका==
 
==वीथिका==

Revision as of 05:57, 4 March 2011

holi bharat ke pramukh char tyoharoan (dipavali, rakshabandhan, holi aur dashahara) mean se ek hai. holi jahaan ek or samajik evan dharmik hai, vahian rangoan ka bhi tyohar hai. aval vriddh, nar- nari sabhi ise b de utsah se manate haian. isamean jatibhed-varnabhed ka koee sthan nahian hai. is avasar par lak diyoan tatha kandoan adi ka dher lagakar holikapoojan kiya jata hai. phir usamean ag lagayi jati hai. poojan ke samay mantr uchcharan kiya jata hai.

holikotsav

is parv ko navanneshti yajnaparv bhi kaha jata hai, kyoanki khet se aye navin ann ko isadin yajn mean havan karake prasad lene ki parampara bhi hai. us ann ko hola kahate hai. isi se isaka nam holikotsav p da. holi ka samay apane ap mean anootha hi hai. faravari- march mean jab holi manaee jati hai, tab sab or chiantamukt vatavaran hota hai- kisan fasal katane ke bad ashvast hota hai. pashuchara to sangrihit kiya ja chuka hota hai. shit rritu apane samapan par hoti hai. din n to bahut garm, n hi ratean bahut thandi hoti haian. holi phalgun mas mean poorn chandrama ke din manaee jati hai. yadyapi yah uttar bharat mean ek saptah v manipur mean chhah din tak manaee jati hai. holi varsh ka aantim tatha janasamany ka sabase b da tyohar hai. sabhi log apasi bhedabhav ko bhulakar ise harsh v ullas ke sath manate haian. holi parasparik saumanasy ekata aur samanata ko bal deti hai. vibhinn deshoan mean isake alag-alag nam aur roop haian. holika ki agni mean purana varsh 'jo holi' ke roop mean jal jata hai aur naya varsh nayi ashaean, akaankshaean lekar prakat hota hai. manav jivan mean nee oorja, nee sphoorti ka vikas hota hai. yah hinduoan ka navavarshotsav hai.

itihas

prachalit manyata ke anusar yah tyohar hiranyakashipu ki bahan holika ke mare jane ki smriti mean bhi manaya jata hai. puranoan mean varnit hai ki hiranyakashipu ne apani bahan holika varadan ke prabhav se nity agnisnan karati aur jalati nahian thi hiranyakashipu ne apani bahan holika se prahlad ko god mean lekar agnisnan karane ko kaha. usane samajha ki aisa karane se prahlad agni mean jal jaega tatha holika bach jaegi. holika ne aisa hi kiya, kiantu holika jal gayi, prahlad bach gaye. holika ko yah smaran hi nahian raha ki agni snan vah akele hi kar sakati hai. tabhi se is tyohar ke manane ki pratha chal p di.

arambhik shabdaroop

yah bahut prachin utsav hai. isaka arambhik shabdaroop holaka tha.[1] bharat mean poorvi bhagoan mean yah shabd prachalit tha. jaimini evan shabar ka kathan hai ki hola ka sabhi aryo dvara sampadit hona chahie. kathakagrihy[2] mean ek sootr hai 'raka hola ke', jisaki vyakhya tikakar devapal ne yoan ki hai-'hola ek karm-vishesh hai jo striyoan ke saubhagy ke lie sampadit hota hai, us krity mean raka (poornachandr) devata hai.'[3] any tikakaroan ne isaki vyakhya any roopoan mean ki hai. hola ka un bis kri daoan mean ek hai jo sampoorn bharat mean prachalit haian. isaka ullekh vatsyayan ke kamasootr[4] mean bhi hua hai jisaka arth tikakar jayamangal ne kiya hai. phalgun ki poornima par log shrriang se ek-doosare par rangin jal chho date haian aur sugandhit choorn bikherate haian. hemadri[5] ne brihadyam ka ek shlok udbhrit kiya hai. jisamean holika-poornima ko hutashani (alakaj ki bhaanti) kaha gaya hai. liang puran mean aya hai- 'phalgun poornima ko 'phalgunika' kaha jata hai, yah bal-kri daoan se poorn hai aur logoan ko vibhooti (aishvary) dene vali hai.' varah puran mean aya hai ki yah 'patavas-vilasini' (choorn se yukt kri daoan vali) hai. [6]

shatabdiyoan poorv se holika utsav

jaimini evan kathakagrihy mean varnit hone ke karan yah kaha ja sakata hai ki eesa ki kee shatabdiyoan poorv se holaka ka utsav prachalit tha. kamasootr evan bhavishyottar puran ise vasant se sanyukt karate haian, at: yah utsav poornimant ganana ke anusar varsh ke ant mean hota tha. at: holika hemant ya patajh d ke ant ki soochak hai aur vasant ki kamapremamay lilaoan ki dyotak hai. mastibhare gane, nrity evan sangit vasantagaman ke ullasapoorn kshanoan ke parichayak haian. vasant ki anandabhivyakti rangin jal evan lal rang, abir-gulal ke parasparik adan-pradan se prakat hoti hai. kuchh pradeshoan mean yah rang yukt vatavaran holika ke din hi hota hai, kintu dakshin mean yah holika ke paanchavean din (rang-panchami) manayi jati hai. kahian-kahian rangoan ke khel pahale se arambh kar diye jate haian aur bahut dinoan tak chalate rahate haian; holika ke poorv hi 'pahunee' mean aye hue log ek-doosare par pank (kich d) bhi pheankate haian. [7] kahi-kahian do-tin dinoan tak mitti, pank, rang, gan adi se log matavale hokar dal bana kar holi ka hu dadang machate haian, s dakean lal ho jati haian. kahian-kahian log bhadde majakoan, ashlil ganoan se apani kamechchhaoan ki bahy tripti karate haian. vastav mean yah utsav prem karane se sambandhit hai, kintu shisht janoan ki nariyaan in dinoan bahar nahian nikal patian, kyoanki unhean bhay rahata hai ki log bhaddi galiyaan n de baithean. shri gupte ne apane lekh[8] mean prakat kiya hai ki yah utsav eejipt (misr) ya gris (yoonan) se liya gaya hai. kintu yah bhramak drishtikon hai. lagata hai, unhoanne bharatiy prachin granthoan ka avalokan nahian kiya hai, doosare, ve is vishay mean bhi nishchit nahian haian ki is utsav ka udgam mistr se hai ya yoonan se. unaki dharana ko gambhirata se nahian lena chahie.

phag utsav

250px|right|thumb|phalain gaanv mean tez jalati huee holi mean se nange badan aur nange paanv nikalata panda phalgun ke mah rangabharani ekadashi se sabhi mandiroan mean phag utsav prarambh hote haian jo dauj tak chalate haian. dauj ko baldev (daooji) mean huranga hota hai. barasana, nandagaanv, jav, bathain, jatipura, anyaur adi mean bhi holi kheli jati hai . yah braj vishesh tyohar hai yoan to puranoan ke anusar isaka sambandh puranakathaoan se hai aur braj mean bhi holi isi din jalaee jati hai. isamean yajn roop mean navin ann ki balean bhooni jati hai. prahlad ki katha ki prerana isase milati haian. holi dahan ke din kosi ke nikat phalain gaanv mean prahlad kund ke pas bhakt prahlad ka mela lagata hai. yahaan tez jalati huee holi mean se nange badan aur nange paanv panda nikalata hai.


[[chitr:Holi Barsana Mathura 1.jpg|latthamar holi, barasana
Lathmar Holi, Barsana|thumb|250px|left]] shrikrishna radha aur gopiyoan–gvaloan ke bich ki holi ke roop mean gulal, rang kesar ki pichakari se khoob khelate haian. holi ka arambh phalgun shukl 9 barasana se hota hai. vahaan ki lathamar holi jag prasiddh hai. dasavian ko aisi hi holi nandagaanv mean hoti hai. isi ke sath poore braj mean holi ki dhoom machati hai. dhoolean di ko pray: holi poorn ho jati hai, isake bad hurange chalate haian, jinamean mahilayean rangoan ke sath lathiyoan, ko doan adi se purushoan ko gherati haian. yah sab dharmik vatavaran hota hai.


holi ya holika anand evan ullas ka aisa utsav hai jo sampoorn desh mean manaya jata hai. utsav manane ke dhang mean kahian-kahian antar paya jata hai. bangal ko chho dakar holika-dahan sarvatr dekha jata hai. bangal mean phalgun poornima par krishna-pratima ka jhoola prachalit hai kintu yah bharat ke adhikaansh sthanoan mean nahian dikhaee p data. is utsav ki avadhi vibhinn prantoan mean vibhinn hai. is avasar par log baans ya dhatu ki pichakari se rangin jal chho date haian ya abir-gulal lagate haian. kahian-kahian ashlil gane gaye jate haian. isamean jo dharmik tattv hai vah hai bangal mean krishna-pooja karana tatha kuchh pradeshoan mean purohit dvara holika ki pooja karavana. log holika dahan ke samay parikrama karate haian, agni mean nariyal pheankate haian, gehooan, jau adi ke danthal pheankate haian aur inake adhajale aansh ka prasad banate haian. kahian-kahian log hatheli se mukh-svar utpann karate haian. [[chitr:Holika-Prahlad-1.jpg|thumb|prahlad ko god mean bithakar baithi holika|220px]]

holika

hemadri[9] ne bhavishyottar[10] se uddharan dekar ek katha di hai. yudhishthir ne krishna se poochha ki phalgun-poornima ko pratyek gaanv evan nagar mean ek utsav kyoan hota hai, pratyek ghar mean bachche kyoan kri damay ho jate haian aur holaka kyoan jalate haian, usamean kis devata ki pooja hoti hai, kisane is utsav ka prachar kiya, isamean kya hota hai aur yah 'adada' kyoan kahi jati hai. [[chitr:Holi-Holika-Dahan-Mathura.jpg|holika dahan, mathura
Holika Dahan, Mathura|thumb|250px|left]] krishna ne yudhishthir se raja raghu ke vishay mean ek kianvadanti kahi. raja raghu ke pas log yah kahane ke lie gaye ki 'dhondha' namak ek rakshasi hai jise shiv ne varadan diya hai ki use dev, manav adi nahian mar sakate haian aur n vah astr shastr ya ja da ya garmi ya varsha se mar sakati hai, kintu shiv ne itana kah diya hai ki vah kri dayukt bachchoan se bhay kha sakati hai. purohit ne yah bhi bataya ki phalgun ki poornima ko ja de ki rritu samapt hoti hai aur grishm rritu ka agaman hota hai, tab log hansean evan anand manayean, bachche lak di ke tuk de lekar bahar prasannatapoorvak nikal p dean, lak diyaan evan ghas ekatr karean, rakshoghn mantroan ke sath usamean ag lagayean, taliyaan bajayean, agni ki tin bar pradakshina karean, hansean aur prachalit bhasha mean bhadde evan ashlil gane gayean, isi shoragul evan attahas se tatha hom se vah rakshasi maregi. jab raja ne yah sab kiya to rakshasi mar gayi aur vah din adada ya holika kaha gaya. age aya hai ki doosare din chaitr ki pratipada par logoan ko holikabhasm ko pranam karana chahie, mantrochcharan karana chahie, ghar ke praangan mean vargakar sthal ke madhy mean kam-pooja karani chahie. kam-pratima par sundar nari dvara chandan-lep lagana chahie aur pooja karane vale ko chandan-lep se mishrit amr-baur khana chahie. isake uparant yathashakti brahmanoan, bhatoan adi ko dan dena chahie aur 'kam devata mujh par prasann hoan' aisa kahana chahie. isake age puran mean aya hai- 'jab shukl paksh ki 15vian tithi par patajh d samapt ho jata hai aur vasant rritu ka prat: agaman hota hai to jo vyakti chandan-lep ke sath amr-manjari khata hai vah anand se rahata hai.'

any prantoan mean holika

anandollas se paripoorn evan ashlil gan-nrityoan mean lin log jab any prantoan mean holika ka utsav manate haian tab bangal mean dolayatra ka utsav hota hai. dekhie shoolapanikrit 'dolayatravivek.' yah utsav paanch ya tin dinoan tak chalata hai. poornima ke poorv chaturdashi ko sandhya ke samay mandap ke poorv mean agni ke samman mean ek utsav hota hai. govind ki pratima ka nirman hota hai. ek vedika par 16 khambhoan se yukt mandap mean pratima rakhi jati hai. ise panchamrit se nahalaya jata hai, kee prakar ke krity kiye jate haian, moorti ya pratima ko idhar-udhar sat bar dolaya jata hai. pratham din ki prajvalit agni utsav ke ant tak rakhi jati hai. ant mean pratima 21 bar dolaee ya jhulaee jati hai. aisa aya hai ki indradyumn raja ne vrindavan mean is jhoole ka utsav arambh kiya tha. is utsav ke karane se vyakti sabhi papoan se mukt ho jata hai. shoolapani ne isaki tithi, prahar, nakshatr adi ke vishay mean vivechan kar nishkarsh nikala hai ki dolayatra poornima tithi ki upasthiti mean hi honi chahie, chahe uttaraphalguni nakshatr ho ya n ho. holikotsav ke vishay mean ni. si.[11], smritikaustubh[12] adi nibandhoan mean varnan aya hai.

vithika

tika tippani aur sandarbh

  1. jaimini, 1.3.15-16)
  2. 73,1
  3. raka holake. kathakagrihy (73.1). is par devapal ki tikayoan hai: 'hola karmavishesh: saubhagyay strinaan prataranushthiyate. tatr hola ke raka devata. yaste rake subhatay ityadi.'
  4. kamasootr, 1.4.42
  5. kal, pri. 106
  6. liangapurane. phalgune paurnamasi ch sada balavikasini. jneya phalgunika sa ch jneya lokarvibhootaye.. varahapurane. phalgune paurnimasyaan tu patavasavilasini. jneya sa phalguni loke karya lokasamriddhaye॥ he. (kal, pri. 642). isamean pratham ka.vi. (pri. 352) mean bhi aya hai jisaka arth is prakar hai-balavajjanavilasinyamityarth:
  7. varshakrityadipak (pri0 301) mean nimn shlok aye haian-
    'prabhate bimale jate hyange bhasm ch karayeth. sarvage ch lalate ch kriditavyan pishachavath॥
    sindarai: kuankumaishchaiv dhoolibhirdhoosaro bhaveth. gitan vadyan ch nrityan ch kriryadrathyopasarpanamh ॥
    brahmanai: kshatriyairvaishyai: shoodraishchanyaishch jatibhi:. ekibhooy prakartavya krida ya phalgune sada. balakai: vah gantavyan phalgunyaan ch yudhishthir ॥'
  8. hindoo halidej evan serimanij'(pri. 92)
  9. (vrat, bhag 2, pri0 174-190)
  10. bhavishyottar, 132.1.51
  11. ni. si., pri. 227
  12. (smritikaustubh, pri. 516-519), pri. chi. (pri. 308-319)

sanbandhit lekh

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