देवगाँव की संधि: Difference between revisions
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*अंग्रेज़ों ने उससे यह वायदा भी लिया कि, वह अपने यहाँ कम्पनी सरकार की अनुमति के बिना किसी भी यूरोपीय अथवा अमेरिकी को नौकरी नहीं देगा। | |||
*व्यावहारिक दृष्टिकोण से इस संधि ने भोंसले को अंग्रेज़ों का आश्रित बना दिया। | *व्यावहारिक दृष्टिकोण से इस संधि ने भोंसले को अंग्रेज़ों का आश्रित बना दिया। | ||
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Latest revision as of 13:58, 6 July 2017
देवगाँव की संधि अथवा 'देवगढ़ की संधि' 17 दिसम्बर, 1803 ई. को रघुजी भोंसले और अंग्रेज़ों के बीच हुई थी। द्वितीय मराठा युद्ध के दौरान आरगाँव की लड़ाई (नवम्बर, 1803) में अंग्रेज़ों ने रघुजी भोंसले को पराजित किया था, उसी के फलस्वरूप उक्त संधि हुई।
- इस संधि के अनुसार बरार के भोंसला राजा ने अंग्रेज़ों को कटक का प्रान्त दे दिया, जिसमें बालासौर के अलावा वरदा नदी के पश्चिम का समस्त भाग शामिल था।
- भोंसला राजा को अपनी राजधानी नागपुर में ब्रिटिश रेजीडेण्ट रखने के लिए मजबूर होना पड़ा। उसने निज़ाम अथवा पेशवा के साथ होने वाले किसी भी झगड़े में अंग्रेज़ों को पंच बनाना स्वीकार कर लिया।
- अंग्रेज़ों ने उससे यह वायदा भी लिया कि, वह अपने यहाँ कम्पनी सरकार की अनुमति के बिना किसी भी यूरोपीय अथवा अमेरिकी को नौकरी नहीं देगा।
- व्यावहारिक दृष्टिकोण से इस संधि ने भोंसले को अंग्रेज़ों का आश्रित बना दिया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 209 |