मसुलीपट्टम की सन्धि: Difference between revisions
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*'''मसुलीपट्टम की सन्धि''' [[23 फ़रवरी]], 1768 ई. में की गई थी। | *'''मसुलीपट्टम की सन्धि''' [[23 फ़रवरी]], 1768 ई. में की गई थी। | ||
*इस सन्धि के तहत [[भारत]] का [[हैदराबाद]] राज्य ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया। | *इस सन्धि के तहत [[भारत]] का [[हैदराबाद]] राज्य [[ब्रिटिश शासन|ब्रिटिश]] नियंत्रण में आ गया। | ||
*1767 में प्रथम मैसूर युद्ध शुरू हुआ, जिसमें [[मैसूर]] के शासक [[हैदर अली]] की विस्तारवादी नीतियाँ रोकने के लिए [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] ने प्रयास किए। | *1767 में [[मैसूर युद्ध प्रथम|प्रथम मैसूर युद्ध]] शुरू हुआ, जिसमें [[मैसूर]] के शासक [[हैदर अली]] की विस्तारवादी नीतियाँ रोकने के लिए [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] ने प्रयास किए। | ||
*यद्यपि शुरू में हैदराबाद का निज़ाम [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के साथ था, लेकिन जल्दी ही वह अंग्रेज़ों से अलग हो गया। | *यद्यपि शुरू में हैदराबाद का निज़ाम [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के साथ था, लेकिन जल्दी ही वह अंग्रेज़ों से अलग हो गया। | ||
*बाद में जब अंग्रेज़ों ने निज़ाम को बालाघाट का शासक मान लिया, तो [[मसुलीपट्टम]] (मछलीपट्टनम) में वह फिर उनके साथ हो गया। | *बाद में जब अंग्रेज़ों ने निज़ाम को बालाघाट का शासक मान लिया, तो [[मसुलीपट्टम]] (मछलीपट्टनम) में वह फिर उनके साथ हो गया। | ||
*1769 में युद्ध की समाप्ति पर अंग्रेज़ों ने हैदराबाद पर मैसूर की सम्प्रभुता को मान्यता दे दी। | *1769 में युद्ध की समाप्ति पर अंग्रेज़ों ने हैदराबाद पर मैसूर की सम्प्रभुता को मान्यता दे दी। | ||
*यह इस बात का एक बड़ा उदाहरण था कि | *यह इस बात का एक बड़ा उदाहरण था कि अंग्रेज़ों की ईस्ट इण्डिया कम्पनी भारत में किस प्रकार छल-कपट और कूटनीति का खेल रही है। | ||
*इस धोखे के कारण निज़ाम 1779 में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ हैदर अली का साथ देने पर मजबूर हुआ। | *इस धोखे के कारण निज़ाम 1779 में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ हैदर अली का साथ देने पर मजबूर हुआ। | ||
*[[लॉर्ड कार्नवालिस]] ने 1788-1789 ई. में कम्पनी के द्वारा दिये गये वचनों से मुकर जाने की कोशिश की। | *[[लॉर्ड कार्नवालिस]] ने 1788-1789 ई. में कम्पनी के द्वारा दिये गये वचनों से मुकर जाने की कोशिश की। | ||
*इसके फलस्वरूप तीसरा मैसूर युद्ध (1790-1792 ई.) आरम्भ हो गया। | *इसके फलस्वरूप [[मैसूर युद्ध तृतीय|तीसरा मैसूर युद्ध]] (1790-1792 ई.) आरम्भ हो गया। | ||
*इसके बाद का युद्ध मैसूर और हैदराबाद, दोनों पर अंग्रेज़ों | *इसके बाद का युद्ध मैसूर और हैदराबाद, दोनों पर अंग्रेज़ों का मज़बूत नियंत्रण होने पर ही समाप्त हुआ। | ||
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Latest revision as of 07:04, 23 April 2012
- मसुलीपट्टम की सन्धि 23 फ़रवरी, 1768 ई. में की गई थी।
- इस सन्धि के तहत भारत का हैदराबाद राज्य ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया।
- 1767 में प्रथम मैसूर युद्ध शुरू हुआ, जिसमें मैसूर के शासक हैदर अली की विस्तारवादी नीतियाँ रोकने के लिए ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने प्रयास किए।
- यद्यपि शुरू में हैदराबाद का निज़ाम अंग्रेज़ों के साथ था, लेकिन जल्दी ही वह अंग्रेज़ों से अलग हो गया।
- बाद में जब अंग्रेज़ों ने निज़ाम को बालाघाट का शासक मान लिया, तो मसुलीपट्टम (मछलीपट्टनम) में वह फिर उनके साथ हो गया।
- 1769 में युद्ध की समाप्ति पर अंग्रेज़ों ने हैदराबाद पर मैसूर की सम्प्रभुता को मान्यता दे दी।
- यह इस बात का एक बड़ा उदाहरण था कि अंग्रेज़ों की ईस्ट इण्डिया कम्पनी भारत में किस प्रकार छल-कपट और कूटनीति का खेल रही है।
- इस धोखे के कारण निज़ाम 1779 में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ हैदर अली का साथ देने पर मजबूर हुआ।
- लॉर्ड कार्नवालिस ने 1788-1789 ई. में कम्पनी के द्वारा दिये गये वचनों से मुकर जाने की कोशिश की।
- इसके फलस्वरूप तीसरा मैसूर युद्ध (1790-1792 ई.) आरम्भ हो गया।
- इसके बाद का युद्ध मैसूर और हैदराबाद, दोनों पर अंग्रेज़ों का मज़बूत नियंत्रण होने पर ही समाप्त हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 302।