ताना भगत आन्दोलन: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''ताना भगत आन्दोलन''' की शुरुआत वर्ष 1914 ईं. में बिहार ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
m (Text replace - " करीब" to " क़रीब")
 
Line 2: Line 2:
{{tocright}}
{{tocright}}
==आन्दोलन की शुरुआत==
==आन्दोलन की शुरुआत==
'[[मुण्डा आन्दोलन]]' की समाप्ति के करीब 13 वर्ष बाद 'ताना भगत आन्दोलन' शुरू हुआ। यह ऐसा धार्मिक आन्दोलन था, जिसके राजनीतिक लक्ष्य थे। यह आदिवासी जनता को संगठित करने के लिए नये 'पंथ' के निर्माण का आन्दोलन था। इस मायने में यह बिरसा मुण्डा आन्दोलन का ही विस्तार था। मुक्ति-संघर्ष के क्रम में [[बिरसा मुण्डा]] ने जनजातीय पंथ की स्थापना के लिए सामुदायिकता के आदर्श और मानदंड निर्धरित किये थे।<ref name="aa">{{cite web |url=http://samvad.net/samvad-archieves-itihas.htm|title=झारखण्ड का इतिहास|accessmonthday= 04 मई|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
'[[मुण्डा आन्दोलन]]' की समाप्ति के क़रीब 13 वर्ष बाद 'ताना भगत आन्दोलन' शुरू हुआ। यह ऐसा धार्मिक आन्दोलन था, जिसके राजनीतिक लक्ष्य थे। यह आदिवासी जनता को संगठित करने के लिए नये 'पंथ' के निर्माण का आन्दोलन था। इस मायने में यह बिरसा मुण्डा आन्दोलन का ही विस्तार था। मुक्ति-संघर्ष के क्रम में [[बिरसा मुण्डा]] ने जनजातीय पंथ की स्थापना के लिए सामुदायिकता के आदर्श और मानदंड निर्धरित किये थे।<ref name="aa">{{cite web |url=http://samvad.net/samvad-archieves-itihas.htm|title=झारखण्ड का इतिहास|accessmonthday= 04 मई|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
====आदर्श तथा मानदण्ड====
====आदर्श तथा मानदण्ड====
ताना भगत आन्दोलन में उन आदर्शों और मानदंडों के आधर पर जनजातीय पंथ को सुनिश्चित आकार प्रदान किया गया। बिरसा ने संघर्ष के दौरान शांतिमय और अहिंसक तरीके विकसित करने के प्रयास किये। ताना भगत आन्दोलन में अहिंसा को संषर्ष के अमोघ अस्त्र के रूप में स्वीकार किया गया। बिरसा आन्दोलन के तहत [[झारखंड]] में ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ संघर्ष का ऐसा स्वरूप विकसित हुआ, जिसको क्षेत्रीयता की सीमा में बांधा नहीं जा सकता था। इस आन्दोलन ने संगठन का ढांचा और मूल रणनीति में क्षेत्रीयता से मुक्त रह कर ऐसा आकार ग्रहण किया कि वह [[महात्मा गाँधी]] के नेतृत्व में जारी आज़ादी के '[[भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन]]' का अविभाज्य अंग बन गया।
ताना भगत आन्दोलन में उन आदर्शों और मानदंडों के आधर पर जनजातीय पंथ को सुनिश्चित आकार प्रदान किया गया। बिरसा ने संघर्ष के दौरान शांतिमय और अहिंसक तरीके विकसित करने के प्रयास किये। ताना भगत आन्दोलन में अहिंसा को संषर्ष के अमोघ अस्त्र के रूप में स्वीकार किया गया। बिरसा आन्दोलन के तहत [[झारखंड]] में ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ संघर्ष का ऐसा स्वरूप विकसित हुआ, जिसको क्षेत्रीयता की सीमा में बांधा नहीं जा सकता था। इस आन्दोलन ने संगठन का ढांचा और मूल रणनीति में क्षेत्रीयता से मुक्त रह कर ऐसा आकार ग्रहण किया कि वह [[महात्मा गाँधी]] के नेतृत्व में जारी आज़ादी के '[[भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन]]' का अविभाज्य अंग बन गया।
==जतरा भगत का योगदान==
==जतरा भगत का योगदान==
प्राप्त ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार जतरा भगत, जो उराँव जाति के थे, उनके नेतृत्व में इस आन्दोलन के लिए जो संगठन नये पंथ के रूप में विकसित हुआ, उसमें करीब 26 हज़ार सदस्य शामिल थे। वह भी वर्ष [[1914]] के दौर में। जतरा भगत का जन्म वर्तमान [[गुमला ज़िला|गुमला ज़िले]] के बिशुनपुर प्रखंड के चिंगारी गांव में [[1888]] में हुआ था। जतरा भगत ने [[1914]] में आदिवासी समाज में पशु बलि, मांस भक्षण, जीव हत्या, शराब सेवन आदि दुर्गुणों को छोड़ कर सात्विक जीवन यापन करने का अभियान छेड़ा। उन्होंने भूत-प्रेत जैसे अंधविश्वासों के ख़िलाफ़ सात्विक एवं निडर जीवन की नयी [[शैली]] का सूत्रपात किया। उस शैली से शोषण और अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ने की नयी दृष्टि आदिवासी समाज में पनपने लगी। तब आन्दोलन का राजनीतिक लक्ष्य स्पष्ट होने लगा था। सात्विक जीवन के लिए एक नये पंथ पर चलने वाले हज़ारों आदिवासी जैसे सामंतों, साहुकारों और ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ संगठित 'अहिंसक सेना' के सदस्य हो गये।<ref name="aa"/>
प्राप्त ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार जतरा भगत, जो उराँव जाति के थे, उनके नेतृत्व में इस आन्दोलन के लिए जो संगठन नये पंथ के रूप में विकसित हुआ, उसमें क़रीब 26 हज़ार सदस्य शामिल थे। वह भी वर्ष [[1914]] के दौर में। जतरा भगत का जन्म वर्तमान [[गुमला ज़िला|गुमला ज़िले]] के बिशुनपुर प्रखंड के चिंगारी गांव में [[1888]] में हुआ था। जतरा भगत ने [[1914]] में आदिवासी समाज में पशु बलि, मांस भक्षण, जीव हत्या, शराब सेवन आदि दुर्गुणों को छोड़ कर सात्विक जीवन यापन करने का अभियान छेड़ा। उन्होंने भूत-प्रेत जैसे अंधविश्वासों के ख़िलाफ़ सात्विक एवं निडर जीवन की नयी [[शैली]] का सूत्रपात किया। उस शैली से शोषण और अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ने की नयी दृष्टि आदिवासी समाज में पनपने लगी। तब आन्दोलन का राजनीतिक लक्ष्य स्पष्ट होने लगा था। सात्विक जीवन के लिए एक नये पंथ पर चलने वाले हज़ारों आदिवासी जैसे सामंतों, साहुकारों और ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ संगठित 'अहिंसक सेना' के सदस्य हो गये।<ref name="aa"/>
====स्वदेशी आन्दोलन से जुड़ाव====
====स्वदेशी आन्दोलन से जुड़ाव====
जतरा भगत के नेतृत्व में ऐलान हुआ कि "[[मालगुज़ारी]] नहीं देंगे, बेगारी नहीं करेंगे और कर नहीं देंगे"। इसके साथ ही जतरा भगत का विद्रोह 'ताना भगत आन्दोलन' के रूप में सुर्खियों में आ गया। आन्दोलन के मूल चरित्र और नीति को समझने में असमर्थ [[अंग्रेज़]] सरकार ने घबराकर जतरा भगत को 1914 में गिरफ्तार कर लिया। उन्हें डेढ़ साल की सजा दी गयी। जेल से छूटने के बाद जतरा का अचानक देहांत हो गया, लेकिन ताना भगत आन्दोलन अपनी अहिंसक नीति के कारण निरंतर विकसित होते हुए [[महात्मा गाँधी]] के '[[स्वदेशी आन्दोलन]]' से जुड़ गया। यह तो [[कांग्रेस]] के इतिहास में भी दर्ज है कि [[1922]] में कांग्रेस के गया सम्मेलन और [[1923]] के नागपुर सत्याग्रह में बड़ी संख्या में ताना भगत शामिल हुए थे। [[1940]] में रामगढ़ कांग्रेस में ताना भगतों ने महात्मा गाँधी को 400 रुपये की थैली दी थी।
जतरा भगत के नेतृत्व में ऐलान हुआ कि "[[मालगुज़ारी]] नहीं देंगे, बेगारी नहीं करेंगे और कर नहीं देंगे"। इसके साथ ही जतरा भगत का विद्रोह 'ताना भगत आन्दोलन' के रूप में सुर्खियों में आ गया। आन्दोलन के मूल चरित्र और नीति को समझने में असमर्थ [[अंग्रेज़]] सरकार ने घबराकर जतरा भगत को 1914 में गिरफ्तार कर लिया। उन्हें डेढ़ साल की सजा दी गयी। जेल से छूटने के बाद जतरा का अचानक देहांत हो गया, लेकिन ताना भगत आन्दोलन अपनी अहिंसक नीति के कारण निरंतर विकसित होते हुए [[महात्मा गाँधी]] के '[[स्वदेशी आन्दोलन]]' से जुड़ गया। यह तो [[कांग्रेस]] के इतिहास में भी दर्ज है कि [[1922]] में कांग्रेस के गया सम्मेलन और [[1923]] के नागपुर सत्याग्रह में बड़ी संख्या में ताना भगत शामिल हुए थे। [[1940]] में रामगढ़ कांग्रेस में ताना भगतों ने महात्मा गाँधी को 400 रुपये की थैली दी थी।

Latest revision as of 14:09, 16 November 2014

ताना भगत आन्दोलन की शुरुआत वर्ष 1914 ईं. में बिहार में हुई थी। यह आन्दोलन लगान की ऊँची दर तथा चौकीदारी कर के विरुद्ध किया गया था। इस आन्दोलन के प्रवर्तक 'जतरा भगत' थे, जिसे कभी बिरसा मुण्डा, कभी जमी तो कभी केसर बाबा के समतुल्य होने की बात कही गयी है। इसके अतिरिक्त इस आन्दोलन के अन्य नेताओं में बलराम भगत, गुरुरक्षितणी भगत आदि के नाम प्रमुख थे।

आन्दोलन की शुरुआत

'मुण्डा आन्दोलन' की समाप्ति के क़रीब 13 वर्ष बाद 'ताना भगत आन्दोलन' शुरू हुआ। यह ऐसा धार्मिक आन्दोलन था, जिसके राजनीतिक लक्ष्य थे। यह आदिवासी जनता को संगठित करने के लिए नये 'पंथ' के निर्माण का आन्दोलन था। इस मायने में यह बिरसा मुण्डा आन्दोलन का ही विस्तार था। मुक्ति-संघर्ष के क्रम में बिरसा मुण्डा ने जनजातीय पंथ की स्थापना के लिए सामुदायिकता के आदर्श और मानदंड निर्धरित किये थे।[1]

आदर्श तथा मानदण्ड

ताना भगत आन्दोलन में उन आदर्शों और मानदंडों के आधर पर जनजातीय पंथ को सुनिश्चित आकार प्रदान किया गया। बिरसा ने संघर्ष के दौरान शांतिमय और अहिंसक तरीके विकसित करने के प्रयास किये। ताना भगत आन्दोलन में अहिंसा को संषर्ष के अमोघ अस्त्र के रूप में स्वीकार किया गया। बिरसा आन्दोलन के तहत झारखंड में ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ संघर्ष का ऐसा स्वरूप विकसित हुआ, जिसको क्षेत्रीयता की सीमा में बांधा नहीं जा सकता था। इस आन्दोलन ने संगठन का ढांचा और मूल रणनीति में क्षेत्रीयता से मुक्त रह कर ऐसा आकार ग्रहण किया कि वह महात्मा गाँधी के नेतृत्व में जारी आज़ादी के 'भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन' का अविभाज्य अंग बन गया।

जतरा भगत का योगदान

प्राप्त ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार जतरा भगत, जो उराँव जाति के थे, उनके नेतृत्व में इस आन्दोलन के लिए जो संगठन नये पंथ के रूप में विकसित हुआ, उसमें क़रीब 26 हज़ार सदस्य शामिल थे। वह भी वर्ष 1914 के दौर में। जतरा भगत का जन्म वर्तमान गुमला ज़िले के बिशुनपुर प्रखंड के चिंगारी गांव में 1888 में हुआ था। जतरा भगत ने 1914 में आदिवासी समाज में पशु बलि, मांस भक्षण, जीव हत्या, शराब सेवन आदि दुर्गुणों को छोड़ कर सात्विक जीवन यापन करने का अभियान छेड़ा। उन्होंने भूत-प्रेत जैसे अंधविश्वासों के ख़िलाफ़ सात्विक एवं निडर जीवन की नयी शैली का सूत्रपात किया। उस शैली से शोषण और अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ने की नयी दृष्टि आदिवासी समाज में पनपने लगी। तब आन्दोलन का राजनीतिक लक्ष्य स्पष्ट होने लगा था। सात्विक जीवन के लिए एक नये पंथ पर चलने वाले हज़ारों आदिवासी जैसे सामंतों, साहुकारों और ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ संगठित 'अहिंसक सेना' के सदस्य हो गये।[1]

स्वदेशी आन्दोलन से जुड़ाव

जतरा भगत के नेतृत्व में ऐलान हुआ कि "मालगुज़ारी नहीं देंगे, बेगारी नहीं करेंगे और कर नहीं देंगे"। इसके साथ ही जतरा भगत का विद्रोह 'ताना भगत आन्दोलन' के रूप में सुर्खियों में आ गया। आन्दोलन के मूल चरित्र और नीति को समझने में असमर्थ अंग्रेज़ सरकार ने घबराकर जतरा भगत को 1914 में गिरफ्तार कर लिया। उन्हें डेढ़ साल की सजा दी गयी। जेल से छूटने के बाद जतरा का अचानक देहांत हो गया, लेकिन ताना भगत आन्दोलन अपनी अहिंसक नीति के कारण निरंतर विकसित होते हुए महात्मा गाँधी के 'स्वदेशी आन्दोलन' से जुड़ गया। यह तो कांग्रेस के इतिहास में भी दर्ज है कि 1922 में कांग्रेस के गया सम्मेलन और 1923 के नागपुर सत्याग्रह में बड़ी संख्या में ताना भगत शामिल हुए थे। 1940 में रामगढ़ कांग्रेस में ताना भगतों ने महात्मा गाँधी को 400 रुपये की थैली दी थी।

ताना भगतों की शाखाएँ

कालांतर में रीति-रिवाजों में भिन्नता के कारण ताना भगतों की कई शाखाएं पनप गयीं। उनकी प्रमुख शाखा को 'सादा भगत' कहा जाता है। इसके अतिरिक्त 'बाछीदान भगत', 'करमा भगत', 'लोदरी भगत', 'नवा भगत', 'नारायण भगत', 'गौरक्षणी भगत' आदि कई शाखाएं हैं।[1]

अधिनियम का निर्माण

1948 में भारत की आज़ाद सरकार ने 'ताना भगत रैयत एग्रिकल्चरल लैंड रेस्टोरेशन एक्ट' पारित किया। यह अधिनियम अपने आप में ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ ताना भगतों के आन्दोलन की व्यापकता और उनकी कुर्बानी का आईना था। इस अधिनियम में 1913 से 1942 तक की अवधि में अंग्रेज़ सरकार द्वारा ताना भगतों की नीलाम की गयी जमीन को वापस दिलाने का प्रावधान किया गया था।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 झारखण्ड का इतिहास (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 04 मई, 2014।

संबंधित लेख