ह्यूम, ए. ओ.: Difference between revisions

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[[1859]] ई. में ए.ओ. ह्यूम ने 'लोकमित्र' नाम के एक समाचार-पत्र के प्रकाशन में सहयोग दिया। [[1870]] से [[1879]] ई. तक इन्होने लेफ्टिनेंट गर्वनर के पद को इसलिए अस्वीकार कर दिया, क्योंकि इस पद पर रहकर वे भारतीयों की सच्चे मन से सेवा नहीं कर सकते थे। [[1885]] ई. के बाद लगभग 22 वर्षों तक उन्होने कांग्रेस में सक्रिय सदस्य की भूमिका निभायी। [[लाला लाजपत राय]] ने ह्यूम के बारे में लिखा है कि "ह्यूम स्वतन्त्रता के पुजारी थे और उनका [[ह्रदय]] [[भारत]] की निर्धनता तथा दुर्दशा पर रोता था।" यहाँ पर यह मानने में कोई भ्रम नहीं रहा कि ह्यूम निष्पक्ष एवं न्यायप्रिय व्यक्ति थे। उन्होने 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' के प्रति अपनी बहुमूल्य तथा महान सेवायें अर्पित की हैं।
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ए.ओ. ह्यूम, जिनका पूरा नाम 'एलेन ऑक्टेवियन ह्यूम' था, एक अवकाश प्राप्त अंग्रेज़ अधिकारी थे। ह्यूम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में उल्लेखनीय भूमिका निभाने वाले अंग्रेज़ राजनीतिज्ञ थे। यह भी उल्लेखनीय है कि भारत के सबसे बड़े राजनीतिक दल 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' की स्थापना भी ह्यूम ने ही 28 दिसम्बर, 1885 ई. में की थी। 1912 ई. में उनकी मृत्यु हो जाने पर कांग्रेस ने ह्यूम को अपना 'जन्मदाता और संस्थापक' घोषित किया था।

कांग्रेस की स्थापना

गोपाल कृष्ण गोखले के अनुसार 1885 ई. में ह्यूम के सिवा और कोई व्यक्ति कांग्रेस की स्थापना नहीं कर सकता था। कांग्रेस के संस्थापक एलेन आक्टेवियन ह्यूम स्कॉटलैण्ड के निवासी थे। 'इण्डियन सिविल सर्विस' (भारतीय प्रशासनिक सेवा) में ह्यूम ने काफ़ी वर्षों तक कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया था। वे 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' के महामंत्री पद पर नियुक्त हुए थे, जिस पर उन्होने 1906 ई. तक कार्य किया। उन्हें 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पिता' के नाम से भी जाना जाता है। उन्होनें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना से पूर्व कलकत्ता विश्वविद्यालय के स्नातकों को एक मर्मस्पर्शी पत्र भी लिखा था, जिसका कुछ अंश इस प्रकार है-

"बिखरे हुए व्यक्ति कितने ही बुद्धिमान तथा अच्छे आशय वाले क्यों न हों, अकेले तो शक्तिहीन ही होते हैं। आवश्यकता है संघ की, संगठन की और कार्यवाही के लिए एक निश्चित और स्पष्ट प्रणाली की। आपके कन्धों पर रखा हुआ जुआ, तब तक विद्यमान रहेगा, जब तक आप इस ध्रुव सत्य को समझ कर इसके अनुसार कार्य करने को उद्यत न होंगें कि आत्म बलिदान और निःस्वार्थ कर्म ही स्थायी सुख और स्वतन्त्रता का अचूक मार्गदर्शन है।"

विभिन्न पदों पर कार्य

1859 ई. में ए.ओ. ह्यूम ने 'लोकमित्र' नाम के एक समाचार-पत्र के प्रकाशन में सहयोग दिया। 1870 से 1879 ई. तक इन्होने लेफ्टिनेंट गर्वनर के पद को इसलिए अस्वीकार कर दिया, क्योंकि इस पद पर रहकर वे भारतीयों की सच्चे मन से सेवा नहीं कर सकते थे। 1885 ई. के बाद लगभग 22 वर्षों तक उन्होने कांग्रेस में सक्रिय सदस्य की भूमिका निभायी। लाला लाजपत राय ने ह्यूम के बारे में लिखा है कि "ह्यूम स्वतन्त्रता के पुजारी थे और उनका ह्रदय भारत की निर्धनता तथा दुर्दशा पर रोता था।" यहाँ पर यह मानने में कोई भ्रम नहीं रहा कि ह्यूम निष्पक्ष एवं न्यायप्रिय व्यक्ति थे। उन्होने 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' के प्रति अपनी बहुमूल्य तथा महान सेवायें अर्पित की हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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