गंडमक की संधि

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 07:23, 23 April 2012 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

गंडमक की संधि द्वितीय अफ़ग़ान युद्ध (1878-1880 ई.) के दौरान मई 1879 ई. में भारतीय ब्रिटिश सरकार के तत्कालीन वाइसराय लॉर्ड लिटन और अफ़ग़ानिस्तान के अपदस्थ अमीर शेरअली के पुत्र याक़ूब ख़ाँ के बीच हुई थी।

  • इस संधि के अंतर्गत याक़ूब ख़ाँ, जिसे अमीर के रूप में मान्यता दी गई थी, अपने विदेशी सम्बन्ध ब्रिटिश निर्देशन से संचालित करने, राजधानी काबुल में ब्रिटिश रेजीडेंट रखने और कुर्रम दर्रे व पिशीन और सीबी ज़िलों को ब्रिटिश नियंत्रण में कर देने के लिए राज़ी हो गया। पिशीन और सीबी ज़िले बोलन दर्रे के निकट स्थित हैं।
  • गंडमक की संधि लॉर्ड लिटन की अफ़ग़ान नीति की सबसे बड़ी उपलब्धि थी और उसने ब्रिटिश भारत को इंग्लैंण्ड के तत्कालीन प्रधानमंत्री लॉर्ड बेकन्सफ़ील्ड के शब्दों में 'वैज्ञानिक सीमा' प्रदान कर दी, किन्तु अंग्रेज़ों की यह विजय अल्पकालीन थी।
  • गंडमक संधि के केवल चार महीने बाद ही 2 सितम्बर, 1879 ई. को अफ़ग़ानों ने फिर सिर उठाया और उन्होंने ब्रिटिश रेजीडेण्ट की हत्या कर गंडमक संधि को रद्द कर दिया।
  • अफ़ग़ानिस्तान में युद्ध फिर से भड़क उठा और वह फिर तभी समाप्त हुआ, जब अंग्रेज़ों ने अपने आश्रित याक़ूब ख़ाँ को अफ़ग़ानों के हाथ समर्पित कर दिया और क़ाबुल में अपना रेजीडेण्ट रखने का विचार तथा संधि के अंतर्गत मिला समग्र अफ़ग़ान क्षेत्र त्याग दिया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 116।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः