मुजफ़्फ़रपुर बमकांड

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मुजफ़्फ़रपुर बमकांड की घटना 30 अप्रैल, 1908 को मुजफ़्फ़रपुर (बिहार) में घटी। इस घटना को क्रांतिकारी खुदीराम बोस और उनके साथी प्रफुल्ल चाकी ने अंजाम दिया। घटना में तत्कालीन ज़िलाधीश किंग्सफ़ोर्ड की हत्या के उदेश्य से बम फेंका गया था, जो असफल रहा। बम प्रहार में ग़लती से पिंगल कैनेडी की पत्नी एवं उसकी पुत्री की मुत्यृ हो गई। इसके फलस्वरूप इस अपराध में 17 वर्षीय युवक खुदीराम बोस को 11 अगस्त, 1908 को फाँसी दे दी गई। बोस के दूसरे साथी प्रफुल्ल चाकी ने ब्रितानी सरकार की गिरफ्तारी से बचने के लिए गोली मारकर मोकामा के पास आत्महत्या कर ली और शहादत दे दी।

क्रांतिकारियों की योजना

उन दिनों किंग्सफ़ोर्ड चीफ़ प्रेंसीडेसी मजिस्ट्रेट था। वह बहुत सख़्त और क्रूर अधिकारी था। वह देशभक्तों, विशेषकर क्रांतिकारियों को बहुत तंग करता था। उन पर वह कई तरह के अत्याचार करता। क्रान्तिकारियों ने उसे मार डालने की ठान ली थी। 'युगान्तर क्रांतिकारी दल' के नेता वीरेन्द्र कुमार घोष ने घोषणा की कि किंग्सफ़ोर्ड को मुजफ़्फ़रपुर में ही मारा जाएगा। इस काम के लिए खुदीराम बोस तथा प्रपुल्ल चाकी को चुना गया। ये दोनों क्रांतिकारी बहुत सूझबूझ वाले थे। इनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। देशभक्तों को तंग करने वालों को मार डालने का काम उन्हें सौंपा गया था।

बम फेंकना

एक दिन वे दोनों मुज़फ्फरपुर पहुँच गए। वहीं एक धर्मशाला में वे आठ दिन रहे। इस दौरान उन्होंने किंग्सफ़ोर्ड की दिनचर्या तथा गतिविधियों पर पूरी नज़र रखी। उनके बंगले के पास ही क्लब था। अंग्रेज़ अधिकारी और उनके परिवार अक्सर सायंकाल वहाँ जाते थे। 30 अप्रैल, 1908 की शाम किंग्सफ़ोर्ड और उसकी पत्नी क्लब में पहुँचे। रात्रि के साढे़ आठ बजे मिसेज कैनेडी और उसकी बेटी अपनी बग्घी में बैठकर क्लब से घर की तरफ़ आ रहे थे। उनकी बग्घी का लाल रंग था और वह बिल्कुल किंग्सफ़ोर्ड की बग्घी से मिलती-जुलती थी। खुदीराम बोस तथा उनके साथी प्रफुल्ल चाकी ने किंग्सफ़ोर्ड की बग्घी समझकर उस पर बम फेंक दिया। देखते ही देखते बग्घी के परखचे उड़ गए। उसमें सवार माँ बेटी दोनों की मौत हो गई। क्रांतिकारी इस विश्वास से भाग निकले कि किंग्सफ़ोर्ड को मारने में वे सफल हो गए हैं।

गिरफ्तारी

खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी 25 मील (लगभग 40 कि.मी.) भागने के बाद एक रेलवे स्टेशन पर पहुँचे। खुदीराम बोस पर पुलिस को इस बम कांड का संदेह हो गया और अंग्रेज़ पुलिस उनके पीछे लगी और वैनी रेलवे स्टेशन पर उन्हें घेर लिया। अपने को पुलिस से घिरा देख प्रफुल्ल चाकी ने खुद को गोली मारकर शहादत दे दी पर खुदीराम पकड़े गए। उनके मन में तनिक भी भय की भावना नहीं थी। खुदीराम बोस को जेल में डाल दिया गया और उन पर हत्या का मुक़दमा चला। अपने बयान में उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने तो किंग्सफ़ोर्ड को मारने का प्रयास किया था। लेकिन उसे इस बात पर बहुत अफ़सोस है कि निर्दोष कैनेडी तथा उनकी बेटी ग़लती से मारे गए।

फाँसी की सज़ा

घटना के सिलसिले में खुदीराम बोस पर मुक़दमा चला। मुक़दमा केवल पाँच दिन ही चला। 8 जून, 1908 को उन्हें अदालत में पेश किया गया और 13 जून को उन्हें प्राण दण्ड की सज़ा सुनाई गई। इतना संगीन मुक़दमा केवल पाँच दिन में ही समाप्त कर दिया गया। यह बात न्याय के इतिहास में एक मज़ाक बना रहेगा। 11 अगस्त, 1908 को इस वीर क्रांतिकारी को फाँसी पर चढा़ दिया गया। उन्होंने अपना जीवन देश की आज़ादी के लिए न्यौछावर कर दिया।


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