श्रीरंगपट्टनम की सन्धि

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श्रीरंगपट्टनम की सन्धि मार्च 1792 ई. को हुई थी। श्रीरंगपट्टनम नगर 15वीं शताब्दी में क़िलाबन्द हुआ और मैसूर के राजा (1610 ई.) तथा टीपू सुल्तान (1761 ई.) की राजधानी बना। लॉर्ड कॉर्नवालिस ने तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध के दौरान 5 फ़रवरी, 1792 ई. को श्रीरंगपट्टम के किले पर अधिकार कर लिया। विवश होकर टीपू सुल्तान को अंग्रेजों से मार्च 1792 ई. में श्रीरंगपट्टम की संधि करनी पड़ी।

  • इस सन्धि के अनुसार टीपू सुल्तान ने अपने दो पुत्रों को बंधक के रूप में अंग्रेज़ों को सौंप दिया और तीन करोड़ रुपये युद्ध के हरजाने के रूप में दिये, जो तीन मित्रों (अंग्रेज़-निज़ाम-मराठा) में बराबर बाँट लिये गये।
  • साथ ही टीपू सुल्तान ने अपने राज्य का आधा भाग भी सौंप दिया, जिसमें से अंग्रेज़ों ने डिंडीगल, बारा महाल, कुर्ग और मालाबार अपने अधिकार में रखकर टीपू के राज्य का समुद्र से संबंध काट दिया और उन पहाड़ी दर्रों को छीन लिया, जो दक्षिण भारत के पठारी भू-भाग के द्वार थे।
  • मराठों को वर्धा (वरदा) और कृष्णा नदियों व निज़ाम को कृष्णा-पनार नदियों के बीच के भू-खण्ड मिले।
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