हिन्दू महासभा: Difference between revisions

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बीसवीं शताब्दी के पहले दो दशकों तक हिन्दुओं का अलग से कोई राजनीतिक दल नहीं था। ब्रिटिश सरकार तथा तत्कालीन [[मुस्लिम]] नेता भी [[कांग्रेस]] को "हिन्दुओं का संगठन" कहते थे। एक-दो अपवाद को छोड़कर प्राय: सभी क्रांतिकारी भी [[हिन्दू]] थे। धार्मिक तथा सामाजिक क्षेत्रों में हिन्दुओं की अनेक संस्थाएँ भी कार्य कर रही थीं। सन 1908-1909 में [[पंजाब]] में 'हिन्दू सभा' की स्थापना हुई थी। [[1915]] में पंडित मदन मोहन मालवीय ने इसे 'अखिल भारतीय महासभा' का स्वरूप प्रदान करने में बहुत योगदान दिया। वे वर्ष [[1923]] से [[1926]] तक इसके अध्यक्ष भी रहे।
बीसवीं शताब्दी के पहले दो दशकों तक हिन्दुओं का अलग से कोई राजनीतिक दल नहीं था। ब्रिटिश सरकार तथा तत्कालीन [[मुस्लिम]] नेता भी [[कांग्रेस]] को "हिन्दुओं का संगठन" कहते थे। एक-दो अपवाद को छोड़कर प्राय: सभी क्रांतिकारी भी [[हिन्दू]] थे। धार्मिक तथा सामाजिक क्षेत्रों में हिन्दुओं की अनेक संस्थाएँ भी कार्य कर रही थीं।सन्1908-1909 में [[पंजाब]] में 'हिन्दू सभा' की स्थापना हुई थी। [[1915]] में पंडित मदन मोहन मालवीय ने इसे 'अखिल भारतीय महासभा' का स्वरूप प्रदान करने में बहुत योगदान दिया। वे वर्ष [[1923]] से [[1926]] तक इसके अध्यक्ष भी रहे।
====कांग्रेस की भूमिका====
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[[1920]] के दशक में 'ख़लीफ़ा आन्दोलन' में कांग्रेस की भूमिका, मोपाला और [[पेशावर]] के मुस्लिम दंगों में कांग्रेस की निकृष्ट वकालत तथा हिन्दुओं की असहाय अवस्था तथा कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति ने अनेक हिन्दुओं को [[कांग्रेस]] से अलग होने और अलग राजनीतिक दल के रूप में प्रवेश करने के लिए बाध्य किया। कांग्रेस, ब्रिटिश सरकार के इस कथन से सहमत थी कि मुस्लिमों के सहयोग के बिना [[भारत]] एक राष्ट्र के रूप में कभी स्वाधीनता प्राप्त नहीं कर सकता। अब कांग्रेस की पूरी ऊर्जा स्वराज्य की बजाय [[हिन्दू]]-[[मुस्लिम]] एकता पर केन्द्रित हो गई थी। एक सत्य यह भी था कि देश के 85 प्रतिशत हिन्दू समाज का प्रतिनिधित्व कहीं नहीं था। सन [[1933]] में हिन्दू महासभा के अध्यक्ष [[भाई परमानन्द]] ने मांग की कि हिन्दुओं को भारत का प्रमुख समुदाय माना जाए।
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हिन्दू महासभा की स्थापना वर्ष 1908-09 में पंजाब में हुई थी। पंडित मदन मोहन मालवीय वर्ष 1923 से 1926 तक इसके अध्यक्ष रहे थे, जिन्होंने 'हिन्दू महासभा' को 'अखिल भारतीय महासभा' का स्वरूप देने में बड़ी सहायता की थी। वर्ष 1933 में 'हिन्दू महासभा' के अध्यक्ष भाई परमानन्द ने मांग की थी कि हिन्दुओं को भारत का प्रमुख समुदाय माना जाए। इस महासभा के कई उद्देश्य थे, जिनमें सबसे प्रमुख उद्देश्य था- "अखण्ड हिन्दुस्तान की स्थापना"।

स्थापना

बीसवीं शताब्दी के पहले दो दशकों तक हिन्दुओं का अलग से कोई राजनीतिक दल नहीं था। ब्रिटिश सरकार तथा तत्कालीन मुस्लिम नेता भी कांग्रेस को "हिन्दुओं का संगठन" कहते थे। एक-दो अपवाद को छोड़कर प्राय: सभी क्रांतिकारी भी हिन्दू थे। धार्मिक तथा सामाजिक क्षेत्रों में हिन्दुओं की अनेक संस्थाएँ भी कार्य कर रही थीं।सन्1908-1909 में पंजाब में 'हिन्दू सभा' की स्थापना हुई थी। 1915 में पंडित मदन मोहन मालवीय ने इसे 'अखिल भारतीय महासभा' का स्वरूप प्रदान करने में बहुत योगदान दिया। वे वर्ष 1923 से 1926 तक इसके अध्यक्ष भी रहे।

कांग्रेस की भूमिका

1920 के दशक में 'ख़लीफ़ा आन्दोलन' में कांग्रेस की भूमिका, मोपाला और पेशावर के मुस्लिम दंगों में कांग्रेस की निकृष्ट वकालत तथा हिन्दुओं की असहाय अवस्था तथा कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति ने अनेक हिन्दुओं को कांग्रेस से अलग होने और अलग राजनीतिक दल के रूप में प्रवेश करने के लिए बाध्य किया। कांग्रेस, ब्रिटिश सरकार के इस कथन से सहमत थी कि मुस्लिमों के सहयोग के बिना भारत एक राष्ट्र के रूप में कभी स्वाधीनता प्राप्त नहीं कर सकता। अब कांग्रेस की पूरी ऊर्जा स्वराज्य की बजाय हिन्दू-मुस्लिम एकता पर केन्द्रित हो गई थी। एक सत्य यह भी था कि देश के 85 प्रतिशत हिन्दू समाज का प्रतिनिधित्व कहीं नहीं था।सन्1933 में हिन्दू महासभा के अध्यक्ष भाई परमानन्द ने मांग की कि हिन्दुओं को भारत का प्रमुख समुदाय माना जाए।

महासभा के उद्देश्य

हिन्दू महासभा के उद्देश्य[1] निम्नलिखित थे-

  1. अखंड हिन्दुस्तान की स्थापना।
  2. भारत की संस्कृति तथा परंपरा के आधार पर भारत में विशुद्ध हिन्दू लोक राज का निर्माण।
  3. विभिन्न जातियों तथा उपजातियो को एक अविछिन्न समाज में संगठित करना।
  4. एक सामाजिक व्यवस्था का निर्माण, जिसमे राष्ट्र के सब घटकों के सामान कर्तव्य तथा अधिकार होंगे।
  5. राष्ट्र के घटकों का मनुष्य के गुणों के आधार पर विश्वास दिला कर विचार-प्रचार और पूजा को पूर्ण राष्ट्र धर्मं के अनुकूल स्वतंत्रता का प्रबंध।
  6. सादा जीवन और उच्च विचार तथा भारतीय नारीत्व के उदात्त प्राचीन आदर्शों की उन्नति करना। स्त्रियों और बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था करना।
  7. हिन्दुस्तान को सैनिक, राजनितिक, भौतिक तथा आर्थिक रूप से शक्तिशाली बनाना।
  8. सभी प्रकार की सामाजिक असमानता को दूर करना।
  9. धन के वितरण में प्रचलित अस्वाभाविक असमानता को दूर करना।
  10. देश का जल्द से जल्द औद्योगीकरण करना।
  11. भारत के जिन लोगों ने हिन्दू धर्म छोड़ दिया है, उनका तथा अन्य लोगों का हिन्दू समाज में स्वागत करना।
  12. गाय की रक्षा करना तथा गौ-वध को पूर्णत: बंद करना।
  13. हिन्दी को राष्ट्र की भाषा तथा देवनागरी को राष्ट्र लिपि बनाना।
  14. अन्तराष्ट्रीय शांति तथा उन्नति के लिए हिन्दुस्तान के हितों को प्राथमिकता देकर अन्य देशों से मैत्री सम्बन्ध बढ़ाना।
  15. भारत को सामाजिक, आर्थिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि से विश्व शांति के रूप में प्रतिस्थापित करना।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अखिल भारत हिन्दू महासभा (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 15 फ़रवरी, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख