दलीप सिंह: Difference between revisions

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Revision as of 12:32, 12 March 2011

दलीप सिंह पंजाब के महाराज रणजीत सिंह का सबसे छोटा पुत्र था। 1843 ई. में वह नाबालिग की अवस्था में अपनी माँ रानी जिदाँ की संरक्षकता में राजसिंहासन पर बैठाया गया।

प्रथम सिक्ख युद्ध

दलीप सिंह की सरकार प्रथम सिक्ख युद्ध (1845-46) में शामिल हुई। जिसमें सिक्खों की हार हुई और उसे सतलुज नदी के बायीं ओर का सारा क्षेत्र एवं जलंधर दोआब अंग्रेज़ों को समर्पित करके डेढ़ करोड़ रुपया हर्जाना देकर संधि करने के लिए बाध्य होना पड़ा। रानी जिदाँ से नाबालिग राजा की संरक्षकता छीन ली गई और उसके सारे अधिकार सिक्खों की परिषद में निहित कर दिये गये।

द्वितीय युद्ध

परिषद ने दलीप सिंह की सरकार को 1848 ई. में ब्रिटिश भारतीय सरकार के विरुद्ध दूसरे युद्ध में फँसा दिया। इस बार भी अंग्रेज़ों के हाथों सिक्खों की पराजय हुई और ब्रिटिश विजेताओं ने दलीपसिंह को अपदस्थ करके पंजाब को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया। दलीप सिंह को पाँच लाख रुपया वार्षिक पेंशन बाँध दी गई और उसके बाद शीघ्र ही माँ के साथ उसे इंग्लैंण्ड भेज दिया गया, जहाँ दलीप सिंह ने ईसाई धर्म को ग्रहण कर लिया और वह नारकाक में कुछ समय तक ज़मींदार रहा। इंग्लैंण्ड प्रवास के दौरान दलीप सिंह ने 1887 ई. में रूस की यात्रा की और वहाँ पर जार को भारत पर हमला करने के लिए राज़ी करने का असफल प्रयास किया। बाद में वह भारत लौट आया और फिर से अपना पुराना सिक्ख धर्म ग्रहण करके शेष जीवन व्यतीत किया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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