बंगाल की दीवानी: Difference between revisions

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*अब यहाँ कम्पनी को राजस्व की वसूली का अधिकार प्राप्त होने का अर्थ यह था कि कम्पनी को व्यावहारिक रूप से प्रान्तीय शासन करने का अधिकार है, क्योंकि राजस्व की वसूली को सामान्य प्रशासन से अलग करना कठिन था।
*अब यहाँ कम्पनी को राजस्व की वसूली का अधिकार प्राप्त होने का अर्थ यह था कि कम्पनी को व्यावहारिक रूप से प्रान्तीय शासन करने का अधिकार है, क्योंकि राजस्व की वसूली को सामान्य प्रशासन से अलग करना कठिन था।
*प्रशासन हाथ में आ जाने के बावजूद कम्पनी की क़ानूनी हैसियत सिर्फ़ दीवान की ही रही।
*प्रशासन हाथ में आ जाने के बावजूद कम्पनी की क़ानूनी हैसियत सिर्फ़ दीवान की ही रही।
*यह हैसियत ब्रिटिश महारानी द्वारा भारतीय शासन अपने हाथ में लेने के समय तक कायम रही।
*यह हैसियत ब्रिटिश महारानी द्वारा भारतीय शासन अपने हाथ में लेने के समय तक क़ायम रही।


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बंगाल की दीवानी 1765 ई. में मुग़ल वंश के बादशाह शाहआलम द्वितीय ने अंग्रेज़ ईस्ट इण्डिया कम्पनी को प्रदान की थी। 1764 ई. में बक्सर के युद्ध में अवध के नवाब के पराजित हो जाने पर कम्पनी ने इलाहाबाद तथा उसके आसपास के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था। कम्पनी ने यह क्षेत्र सम्राट को देकर इसके बदले में 'बंगाल की दीवानी' प्राप्त कर ली।

  • दीवानी प्राप्त करने का अर्थ यह था कि कम्पनी को बंगाल, बिहार और उड़ीसा में राजस्व वसूल करने का अधिकार प्राप्त हो गया।
  • इस सबके बदले में कम्पनी बादशाह शाहआलम द्वितीय को 26 लाख रुपया वार्षिक दिया करती थी।
  • इसके साथ ही मुर्शिदाबाद के नवाब को भी कम्पनी सामान्य प्रशासन के लिए 53 लाख रुपया देती थी।
  • इस प्रकार शेष बचे हुए धन को कम्पनी अपने पास सुरक्षित तथा स्वयं के व्यय के लिये रखती थी।
  • नवाब को दी जाने वाली वार्षिक रकम बाद में घटाकर 32 लाख रुपया कर दी गई।
  • कम्पनी को दीवानी मिलने से उसे प्रान्तीय प्रशासन में पहली बार क़ानूनी हैसियत प्राप्त हो गई।
  • 1757 ई. में प्लासी के युद्ध में षड्यन्त्रों के द्वारा बंगाल पर विजय प्राप्त करने के पश्चात् कम्पनी को वहाँ शासन का अधिकार प्राप्त हो गया।
  • अब यहाँ कम्पनी को राजस्व की वसूली का अधिकार प्राप्त होने का अर्थ यह था कि कम्पनी को व्यावहारिक रूप से प्रान्तीय शासन करने का अधिकार है, क्योंकि राजस्व की वसूली को सामान्य प्रशासन से अलग करना कठिन था।
  • प्रशासन हाथ में आ जाने के बावजूद कम्पनी की क़ानूनी हैसियत सिर्फ़ दीवान की ही रही।
  • यह हैसियत ब्रिटिश महारानी द्वारा भारतीय शासन अपने हाथ में लेने के समय तक क़ायम रही।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 265 |


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