अकबर का कला और साहित्य में योगदान: Difference between revisions
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*अकबर की सरपरस्ती में जो बहुत बड़ा काम हुआ, वह था—'''हमज़ानामा'''। यह [[मुहम्मद|हज़रत मुहम्मद]] के चाचा अमीरहमज़ा के जंगी कारनामों की दास्तान है जो चौदह जिल्दों में तरतीब दी गयी। हर जिल्द में एक सौ चित्र थे। यह सूती कपड़े के टुकड़ों पर चित्रित की गई थी और इसे मुकम्मल सूरत देते हुए पन्द्रह बरस लगे। | *अकबर की सरपरस्ती में जो बहुत बड़ा काम हुआ, वह था—'''हमज़ानामा'''। यह [[मुहम्मद|हज़रत मुहम्मद]] के चाचा अमीरहमज़ा के जंगी कारनामों की दास्तान है जो चौदह जिल्दों में तरतीब दी गयी। हर जिल्द में एक सौ चित्र थे। यह सूती कपड़े के टुकड़ों पर चित्रित की गई थी और इसे मुकम्मल सूरत देते हुए पन्द्रह बरस लगे। | ||
*'''जरीन-कलम़''' का अर्थ है सुनहरी कलम। यह एक किताब थी जो अकबर बादशाह ने कैलीग्राफी़ के माहिर एक कलाकार मुहम्मद हुसैन अल कश्मीरी को दी गई थी। | *'''जरीन-कलम़''' का अर्थ है सुनहरी कलम। यह एक किताब थी जो अकबर बादशाह ने कैलीग्राफी़ के माहिर एक कलाकार मुहम्मद हुसैन अल कश्मीरी को दी गई थी। | ||
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*'''राज कुँवर''' किसी [[हिन्दू]] कहानी को लेकर फ़ारसी में लिखी हुई किताब है जिसके लेखक ने गुमनाम रहना पसंद किया था। इसकी इक्यावन पेण्टिंग [[सलीम]] के [[इलाहाबाद]] वाले तस्वीर खाने में तैयार हुई थीं।<ref>{{cite web |url=http://pustak.org/bs/home.php?bookid=715 |title=अक्षरों की रासलीला |accessmonthday=[[30 अप्रॅल]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतीय साहित्य संग्रह |language=[[हिन्दी]] }}</ref> | *'''राज कुँवर''' किसी [[हिन्दू]] कहानी को लेकर फ़ारसी में लिखी हुई किताब है जिसके लेखक ने गुमनाम रहना पसंद किया था। इसकी इक्यावन पेण्टिंग [[सलीम]] के [[इलाहाबाद]] वाले तस्वीर खाने में तैयार हुई थीं।<ref>{{cite web |url=http://pustak.org/bs/home.php?bookid=715 |title=अक्षरों की रासलीला |accessmonthday=[[30 अप्रॅल]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतीय साहित्य संग्रह |language=[[हिन्दी]] }}</ref> | ||
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[[अबुल फ़ज़ल]] ने [[अरस्तु]] द्वारा उल्लिखित 4 तत्वों [[आग]], वायु, [[जल]], भूमि को सम्राट अकबर की शरीर रचना में समावेश माना। अबुल फ़ज़ल ने योद्धाओं की तुलना अग्नि से, शिल्पकारों एवं व्यापारियों की तुलना वायु से, विद्वानों की तुलना पानी से एवं किसानों की तुलना भूमि से की। शाही कर्मचारियों का वर्गीकरण करते हुए अबुल फ़ज़ल ने उमरा वर्ग की अग्नि से, राजस्व अधिकारियों की वायु से, विधि वेत्ता, धार्मिक अधिकारी, ज्योतिषी, [[कवि]] एवं दार्शनिक की पानी से एवं बादशाह के व्यक्तिगत सेवकों की तुलना भूमि से की है। | |||
शाही कर्मचारियों का वर्गीकरण करते हुए अबुल फ़ज़ल ने उमरा वर्ग की अग्नि से, राजस्व अधिकारियों की वायु से, विधि वेत्ता, धार्मिक अधिकारी, ज्योतिषी, [[कवि]] एवं दार्शनिक की पानी से एवं बादशाह के व्यक्तिगत सेवकों की तुलना भूमि से की है। | |||
अबुल फ़ज़ल ने [[आइन-इ-अकबरी|आइने अकबरी]] में लिखा है कि, ‘बादशाहत एक ऐसी किरण है, जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को प्रकाशित करने में सक्षम है।’ इसे समसामयिक भाषा में फर्रे-इजदी कहा गया है। [[सूफ़ी मत]] में अपनी आस्था जताते हुए अकबर ने [[चिश्ती सम्प्रदाय]] को आश्रय दिया। अकबर ने सभी धर्मों के प्रति अपनी सहिष्णुता की भावना के कारण अपने शासनकाल में [[आगरा]] एवं [[लाहौर]] में [[ईसाई|ईसाईयों]] को गिरिजाघर बनवाने की अनुमति प्रदान की। अकबर ने [[जैन धर्म]] के जैनाचार्य हरिविजय सूरि को जगत गुरु की उपाधि प्रदान की। खरतर-गच्छ सम्प्रदाय के जैनाचार्य जिनचन्द्र सूरि को अकबर ने 200 बीघा भूमि जीवन निर्वाह हेतु प्रदान की। सम्राट पारसी त्यौहार एवं [[संवत्]] में विश्वास करता था। अकबर पर सर्वाधिक प्रभाव [[हिन्दू धर्म]] का पड़ा। अकबर ने [[बल्लभाचार्य]] के पुत्र विट्ठलनाथ को [[गोकुल]] और जैतपुरा की जागीर प्रदान की। अकबर ने [[सिक्ख]] [[गुरु रामदास]] को 500 बीघा भूमि प्रदान की। इसमें एक प्राकृतिक तालाब था। बाद में यहीं पर [[अमृतसर]] नगर बसाया गया और [[स्वर्ण मन्दिर]] का निर्माण हुआ। | अबुल फ़ज़ल ने [[आइन-इ-अकबरी|आइने अकबरी]] में लिखा है कि, ‘बादशाहत एक ऐसी किरण है, जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को प्रकाशित करने में सक्षम है।’ इसे समसामयिक भाषा में फर्रे-इजदी कहा गया है। [[सूफ़ी मत]] में अपनी आस्था जताते हुए अकबर ने [[चिश्ती सम्प्रदाय]] को आश्रय दिया। अकबर ने सभी धर्मों के प्रति अपनी सहिष्णुता की भावना के कारण अपने शासनकाल में [[आगरा]] एवं [[लाहौर]] में [[ईसाई|ईसाईयों]] को गिरिजाघर बनवाने की अनुमति प्रदान की। अकबर ने [[जैन धर्म]] के जैनाचार्य हरिविजय सूरि को जगत गुरु की उपाधि प्रदान की। खरतर-गच्छ सम्प्रदाय के जैनाचार्य जिनचन्द्र सूरि को अकबर ने 200 बीघा भूमि जीवन निर्वाह हेतु प्रदान की। सम्राट पारसी त्यौहार एवं [[संवत्]] में विश्वास करता था। अकबर पर सर्वाधिक प्रभाव [[हिन्दू धर्म]] का पड़ा। अकबर ने [[बल्लभाचार्य]] के पुत्र विट्ठलनाथ को [[गोकुल]] और जैतपुरा की जागीर प्रदान की। अकबर ने [[सिक्ख]] [[गुरु रामदास]] को 500 बीघा भूमि प्रदान की। इसमें एक प्राकृतिक तालाब था। बाद में यहीं पर [[अमृतसर]] नगर बसाया गया और [[स्वर्ण मन्दिर]] का निर्माण हुआ। | ||
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अकबर का कला और साहित्य में योगदान
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पूरा नाम | जलालउद्दीन मुहम्मद अकबर |
जन्म | 15 अक्टूबर सन् 1542 (लगभग)[1] |
जन्म भूमि | अमरकोट, सिन्ध (पाकिस्तान) |
मृत्यु तिथि | 27 अक्टूबर सन् 1605 (उम्र 63 वर्ष) |
मृत्यु स्थान | फ़तेहपुर सीकरी, आगरा |
पिता/माता | हुमायूँ, मरियम मक़ानी |
पति/पत्नी | मरीयम-उज़्-ज़मानी (हरका बाई) |
संतान | जहाँगीर के अलावा 5 पुत्र 7 बेटियाँ |
उपाधि | जलाल-उद-दीन |
राज्य सीमा | उत्तर और मध्य भारत |
शासन काल | 27 जनवरी, 1556 - 27 अक्टूबर, 1605 |
शा. अवधि | 49 वर्ष |
राज्याभिषेक | 14 फ़रबरी 1556 कलानपुर के पास गुरदासपुर |
धार्मिक मान्यता | नया मज़हब बनाया दीन-ए-इलाही |
युद्ध | पानीपत, हल्दीघाटी |
सुधार-परिवर्तन | जज़िया हटाया, राजपूतों से विवाह संबंध |
राजधानी | फ़तेहपुर सीकरी आगरा, दिल्ली |
पूर्वाधिकारी | हुमायूँ |
उत्तराधिकारी | जहाँगीर |
राजघराना | मुग़ल |
वंश | तैमूर और चंगेज़ ख़ाँ का वंश |
मक़बरा | सिकन्दरा, आगरा |
संबंधित लेख | मुग़ल काल |
सोलहवीं शताब्दी के मध्य में भारत में मुसव्वरखानों की हालत बिखरी हुई थी। चाहे कई पुस्तकें बंगाल, मांडू और गोलकुण्डा के कलाकारों के हाथों चित्रित हुई थीं। राजपूत दरबार में संस्कृत और हिन्दी की कई पाण्डुलिपियाँ चित्रित हुई थीं और जैन चित्र उसी तरह गुजरात और राजस्थान में बन रहे थे। उस समय बादशाह अकबर ने कलाकारों के लिए बहुत बड़ा स्थान तैयार करवाया और कलाकार दूर-दूर से आगरा आने लगे, भारत की राजधानी में।
- अकबर के इस बहुत बड़े तस्वीरखाना में से जो पहली किताब तैयार हुई वह थी- 'तोतीनामा'।
- अकबर की सरपरस्ती में जो बहुत बड़ा काम हुआ, वह था—हमज़ानामा। यह हज़रत मुहम्मद के चाचा अमीरहमज़ा के जंगी कारनामों की दास्तान है जो चौदह जिल्दों में तरतीब दी गयी। हर जिल्द में एक सौ चित्र थे। यह सूती कपड़े के टुकड़ों पर चित्रित की गई थी और इसे मुकम्मल सूरत देते हुए पन्द्रह बरस लगे।
- जरीन-कलम़ का अर्थ है सुनहरी कलम। यह एक किताब थी जो अकबर बादशाह ने कैलीग्राफी़ के माहिर एक कलाकार मुहम्मद हुसैन अल कश्मीरी को दी गई थी।
- अम्बरी क़लम़ भी एक किताब थी जो अकबर ने अब्दुल रहीम को दी थी। महाभारत, रामायण, हरिवंश, योगवाशिष्ठ और अथर्ववेद जैसे कई ग्रंथों का फ़ारसी से अनुवाद भी बादशाह अकबर ने कराया था।
- रज़म-नामा महाभारत फ़ारसी अनुवाद का नाम है जिसका अनुवाद विद्वान ब्राह्मणों की मदद से बदायूँनी जैसे इतिहासकारों ने किया था, 1582 में और उसे फ़ारसी के शायर फ़ैज़ी ने शायराना जुबान दी थी।
- राज कुँवर किसी हिन्दू कहानी को लेकर फ़ारसी में लिखी हुई किताब है जिसके लेखक ने गुमनाम रहना पसंद किया था। इसकी इक्यावन पेण्टिंग सलीम के इलाहाबाद वाले तस्वीर खाने में तैयार हुई थीं।[2]
अबुल फ़ज़ल का वर्गीकरण
अबुल फ़ज़ल ने अरस्तु द्वारा उल्लिखित 4 तत्वों आग, वायु, जल, भूमि को सम्राट अकबर की शरीर रचना में समावेश माना। अबुल फ़ज़ल ने योद्धाओं की तुलना अग्नि से, शिल्पकारों एवं व्यापारियों की तुलना वायु से, विद्वानों की तुलना पानी से एवं किसानों की तुलना भूमि से की। शाही कर्मचारियों का वर्गीकरण करते हुए अबुल फ़ज़ल ने उमरा वर्ग की अग्नि से, राजस्व अधिकारियों की वायु से, विधि वेत्ता, धार्मिक अधिकारी, ज्योतिषी, कवि एवं दार्शनिक की पानी से एवं बादशाह के व्यक्तिगत सेवकों की तुलना भूमि से की है।
अबुल फ़ज़ल ने आइने अकबरी में लिखा है कि, ‘बादशाहत एक ऐसी किरण है, जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को प्रकाशित करने में सक्षम है।’ इसे समसामयिक भाषा में फर्रे-इजदी कहा गया है। सूफ़ी मत में अपनी आस्था जताते हुए अकबर ने चिश्ती सम्प्रदाय को आश्रय दिया। अकबर ने सभी धर्मों के प्रति अपनी सहिष्णुता की भावना के कारण अपने शासनकाल में आगरा एवं लाहौर में ईसाईयों को गिरिजाघर बनवाने की अनुमति प्रदान की। अकबर ने जैन धर्म के जैनाचार्य हरिविजय सूरि को जगत गुरु की उपाधि प्रदान की। खरतर-गच्छ सम्प्रदाय के जैनाचार्य जिनचन्द्र सूरि को अकबर ने 200 बीघा भूमि जीवन निर्वाह हेतु प्रदान की। सम्राट पारसी त्यौहार एवं संवत् में विश्वास करता था। अकबर पर सर्वाधिक प्रभाव हिन्दू धर्म का पड़ा। अकबर ने बल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलनाथ को गोकुल और जैतपुरा की जागीर प्रदान की। अकबर ने सिक्ख गुरु रामदास को 500 बीघा भूमि प्रदान की। इसमें एक प्राकृतिक तालाब था। बाद में यहीं पर अमृतसर नगर बसाया गया और स्वर्ण मन्दिर का निर्माण हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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