बनारस की सन्धियाँ

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बनारस की सन्धियाँ सन 1773 और 1775 में की गई थी। इन दो सन्धियों से बंगाल की ब्रिटिश सरकार और अवध के शासक के संबंधों को नियमबद्ध किया गया। 1765 में अवध को इस शर्त पर सुरक्षा प्रदान की गई कि वहां के शासक शुजाउद्दौला सेना की आवश्यक टुकड़ियों का ख़र्च वहन करंगे।

प्रथम सन्धि

बनारस की पहली सन्धि (1773) मुग़ल बादशाह शाह आलम द्वारा युद्धप्रिय मराठों को उनके समर्थन के बदले इलाहबाद और कोरा क्षेत्र सौंपने के कारण हुई। ब्रिटिश गवर्नर वॉरेन हेस्टिंग्ज़ ने शुजा को इलाहाबाद और कोरा वापस दिलाया, और नक़द भुगतान के बदले अफ़ग़ान रोहिल्ला आक्रांताओं के ख़िलाफ़ उनके समर्थन का वादा किया। बंगाल तथा मराठों के बीच अवध को मध्यवर्ती राज्य के रूप में मज़बूत करने के उद्देश्य से किए गए इस समझौते के कारण 1774 में रोहिल्ला युद्ध हुआ, जो बाद में हेस्टिंग्ज़ पर महाभियोग (1788-95) का प्रमुख कारण बना।

द्वितीय सन्धि

बनारस की दूसरी सन्धि को फ़ैज़ाबाद की सन्धि (1775) भी कहा जाता है। शुजा की मृत्यु के बाद इसे अवध के नए वज़ीर पर कंपनी की प्रशासित परिषद द्वारा ज़बरदस्ती लागू किया गया। इससे वज़ीर को ब्रिटिश सेनाओं के इस्तेमाल के बदले ज्यादा रकम अदा करनी पड़ी और बनारस कंपनी को सौंप देना पड़ा। इस समझौते के फलस्वरूप बनारस के राजा चेतसिंह ने 1781 में विद्रोह कर दिया।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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