चंदा साहब: Difference between revisions

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*'''चन्दा साहब''' [[कर्नाटक]] के नवाब दोस्त अली का दामाद था।
'''चन्दा साहब''' [[कर्नाटक]] के नवाब दोस्त अली का दामाद था। [[तंजौर]] के राजा के आदेश पर 1752 ई. में उसे मृत्यु दण्ड दिया गया था।
*[[तंजौर]] के राजा के आदेश पर 1752 ई. में उसे मृत्यु दण्ड दिया गया था।
*1741 ई. में [[मराठा|मराठों]] ने कर्नाटक पर हमला कर दिया और नवाब दोस्त अली की हत्या कर उसके दामाद चन्दा साहब को बंदी बनाकर ले गये।
*1741 ई. में [[मराठा|मराठों]] ने कर्नाटक पर हमला कर दिया और नवाब दोस्त अली की हत्या कर उसके दामाद चन्दा साहब को बंदी बनाकर ले गये।
*सात वर्ष के बाद 1748 ई. में [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने चन्दा साहब को रिहा करवाया।
*सात [[वर्ष]] के बाद 1748 ई. में [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने चन्दा साहब को रिहा करवाया।
*इसी बीच पहला कर्नाटक या इंग्लैंण्ड-फ़्राँस युद्ध छिड़ गया।
*इसी बीच पहला कर्नाटक या इंग्लैंण्ड-फ़्राँस युद्ध छिड़ गया।
*इस युद्ध में [[डूप्ले]] के नेतृत्व में फ़्राँसीसियों के श्रेष्ठ रणकौशल की सब ओर प्रशंसा होने लगी।
*इस युद्ध में [[डूप्ले]] के नेतृत्व में फ़्राँसीसियों के श्रेष्ठ रणकौशल की सब ओर प्रशंसा होने लगी।

Latest revision as of 07:39, 21 April 2012

चन्दा साहब कर्नाटक के नवाब दोस्त अली का दामाद था। तंजौर के राजा के आदेश पर 1752 ई. में उसे मृत्यु दण्ड दिया गया था।

  • 1741 ई. में मराठों ने कर्नाटक पर हमला कर दिया और नवाब दोस्त अली की हत्या कर उसके दामाद चन्दा साहब को बंदी बनाकर ले गये।
  • सात वर्ष के बाद 1748 ई. में अंग्रेज़ों ने चन्दा साहब को रिहा करवाया।
  • इसी बीच पहला कर्नाटक या इंग्लैंण्ड-फ़्राँस युद्ध छिड़ गया।
  • इस युद्ध में डूप्ले के नेतृत्व में फ़्राँसीसियों के श्रेष्ठ रणकौशल की सब ओर प्रशंसा होने लगी।
  • इसलिए चन्दा साहब ने अनवरुद्दीन को गद्दी से उतारने के लिए, जिसे 1743 ई. में निज़ाम ने कर्नाटक का नवाब नियुक्त किया था, डूप्ले के साथ में सैनिक संधि कर ली।
  • दोनों की संयुक्त फ़ौजों ने अगस्त 1749 ई. में आम्बूर के युद्ध में अनवरुद्दीन को हराया और मार डाला तथा उसके पुत्र और भावी उत्तराधिकारी मुहम्मद अली को खदेड़ दिया।
  • मुहम्मद अली ने तिरुचिनापल्ली के क़िले में शरण ली।
  • चन्दा साहब कर्नाटक का नवाब घोषित किया गया तथा अर्काट इसकी राजधानी बनाई गई।
  • इसके बाद चन्दा साहब और डूप्ले ने तिरुचिलापल्ली में मुहम्मद अली को घेर लिया, किन्तु यह घेरा कुशलता के साथ नहीं संचालित किया गया, जिससे मुहम्मद अली को मैसूर और तंजौर के शासकों से सहायता प्राप्त करने का समय मिल गया।
  • उधर मद्रास स्थित अंग्रेज़ों को भी मुहम्मद अली की तरफ़ से हस्तक्षेप करने का मौक़ा मिल गया।
  • युवक राबर्ट क्लाइब ने दो सौ अंग्रेज़ों तथा 300 भारतीय सैनिकों को लेकर अर्काट के क़िले पर अचानक आक्रमण करके अधिकार कर लिया।
  • चन्दा साहब ने अर्काट को पुन: हस्तगत करने के लिए तुरन्त भारी फ़ौज भेजी, लेकिन वह न केवल अपने इस प्रयास में विफल हुआ, बल्कि घमासान युद्ध में पराजित भी हुआ।
  • उसने मजबूर होकर आत्मसमर्पण कर दिया, लेकिन तंजौर के राजा (1752) के आदेश पर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया गया और उसकी हत्या कर दी गई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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