बसई की सन्धि: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==" to "{{संदर्भ ग्रंथ}} ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==") |
No edit summary |
||
(5 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
'''बसई की सन्धि''' 31 दिसम्बर, 1802 में, [[भारत]] में [[पूना]] (पुणे) के [[मराठा]] [[पेशवा | *'''बसई की सन्धि''' अथवा 'बसीन की सन्धि' [[31 दिसम्बर]], 1802 में, [[भारत]] में [[पूना]] (पुणे) के [[मराठा]] [[पेशवा बाजीराव द्वितीय]] और [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के मध्य हुई थी। | ||
*यह 'मराठा महासंघ' को तोड़ने की दिशा में एक निर्णायक क़दम था। इसके फलस्वरूप 1818 ई. में पेशवा के [[पश्चिमी भारत]] के क्षेत्रों का [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] में विलय का मार्ग प्रशस्त हुआ। | |||
*इस समय 'मराठा महासंघ' 1800 ई. में पेशवा के मंत्री [[नाना फड़नवीस]] की मृत्यु के बाद उत्पन्न मतभेदों से जूझ रहा था। | |||
*सैनिक सरदारों, [[दौलतराव शिन्दे|दौलतराव सिंधिया]] तथा जसवन्तराव होल्कर ने अपनी अनुशासित सेनाओं के बल पर पेशवा की गद्दी के लिए दावेदारी पेश की। | |||
*[[अक्टूबर]], 1802 में होल्कर ने सिंधिया और पेशवा को पराजित किया तथा धर्मभाई को पूना की गद्दी पर बैठाया। | |||
बसई की सन्धि के तहत पेशवा अंग्रेज़ों की सेना की छह बटालियनों का ख़र्च वहन करने को राज़ी हुआ, जिसका ख़र्च उठाने के लिए एक इलाका प्रत्यर्पित किया गया। साथ ही सभी [[यूरोप|यूरोपीय]] लोगों को सेवा से हटाने, [[सूरत]] व [[बड़ौदा]] पर दावा ख़त्म करने और अंग्रेज़ों की सलाह से ही अन्य देशों के साथ सम्बन्ध रखने की भी शर्तें मान ली गईं। बदले में आर्थर वेलेजली (जो बाद में वेलिंग्डन के पहले ड्यूक बने) ने मई, 1803 में पेशवा को पूना वापस दिला दिया। इस तरह से अग्रणी [[मराठा]] राज्य अंग्रेज़ों की मदद लेने | *बाजीराव द्वितीय भागकर बसई चला गया और अंग्रेज़ों से मदद की गुहार की। | ||
*'बसई की सन्धि' के तहत पेशवा अंग्रेज़ों की सेना की छह बटालियनों का ख़र्च वहन करने को राज़ी हुआ, जिसका ख़र्च उठाने के लिए एक इलाका प्रत्यर्पित किया गया। | |||
*इसके साथ ही सभी [[यूरोप|यूरोपीय]] लोगों को सेवा से हटाने, [[सूरत]] व [[बड़ौदा]] पर दावा ख़त्म करने और अंग्रेज़ों की सलाह से ही अन्य देशों के साथ सम्बन्ध रखने की भी शर्तें मान ली गईं। | |||
*बदले में आर्थर वेलेजली (जो बाद में वेलिंग्डन के पहले ड्यूक बने) ने [[मई]], 1803 में [[पेशवा]] को [[पूना]] वापस दिला दिया। | |||
*इस तरह से अग्रणी [[मराठा]] राज्य अंग्रेज़ों की मदद लेने लगा था। | |||
*इस [[युद्ध सन्धियाँ|युद्ध सन्धि]] के परिणामस्वरूप अंग्रेज़ों और मराठों के बीच [[आंग्ल मराठा युद्ध द्वितीय|दूसरा मराठा युद्ध]] (1803-05 ई.) हुआ, जिसमें तीन अन्य प्रमुख मराठा शक्तियों की पराजय हुई। | |||
{{प्रचार}} | {{प्रचार}} | ||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति | ||
Line 17: | Line 21: | ||
{{संदर्भ ग्रंथ}} | {{संदर्भ ग्रंथ}} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{युद्ध सन्धियाँ}} | |||
{{औपनिवेशिक काल}} | {{औपनिवेशिक काल}} | ||
[[Category:इतिहास कोश]] | [[Category:इतिहास कोश]] | ||
[[Category:मराठा साम्राज्य]] | [[Category:मराठा साम्राज्य]][[Category:जाट-मराठा काल]] | ||
[[Category:औपनिवेशिक काल]] | [[Category:औपनिवेशिक काल]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Latest revision as of 06:57, 21 April 2012
- बसई की सन्धि अथवा 'बसीन की सन्धि' 31 दिसम्बर, 1802 में, भारत में पूना (पुणे) के मराठा पेशवा बाजीराव द्वितीय और अंग्रेज़ों के मध्य हुई थी।
- यह 'मराठा महासंघ' को तोड़ने की दिशा में एक निर्णायक क़दम था। इसके फलस्वरूप 1818 ई. में पेशवा के पश्चिमी भारत के क्षेत्रों का ईस्ट इण्डिया कम्पनी में विलय का मार्ग प्रशस्त हुआ।
- इस समय 'मराठा महासंघ' 1800 ई. में पेशवा के मंत्री नाना फड़नवीस की मृत्यु के बाद उत्पन्न मतभेदों से जूझ रहा था।
- सैनिक सरदारों, दौलतराव सिंधिया तथा जसवन्तराव होल्कर ने अपनी अनुशासित सेनाओं के बल पर पेशवा की गद्दी के लिए दावेदारी पेश की।
- अक्टूबर, 1802 में होल्कर ने सिंधिया और पेशवा को पराजित किया तथा धर्मभाई को पूना की गद्दी पर बैठाया।
- बाजीराव द्वितीय भागकर बसई चला गया और अंग्रेज़ों से मदद की गुहार की।
- 'बसई की सन्धि' के तहत पेशवा अंग्रेज़ों की सेना की छह बटालियनों का ख़र्च वहन करने को राज़ी हुआ, जिसका ख़र्च उठाने के लिए एक इलाका प्रत्यर्पित किया गया।
- इसके साथ ही सभी यूरोपीय लोगों को सेवा से हटाने, सूरत व बड़ौदा पर दावा ख़त्म करने और अंग्रेज़ों की सलाह से ही अन्य देशों के साथ सम्बन्ध रखने की भी शर्तें मान ली गईं।
- बदले में आर्थर वेलेजली (जो बाद में वेलिंग्डन के पहले ड्यूक बने) ने मई, 1803 में पेशवा को पूना वापस दिला दिया।
- इस तरह से अग्रणी मराठा राज्य अंग्रेज़ों की मदद लेने लगा था।
- इस युद्ध सन्धि के परिणामस्वरूप अंग्रेज़ों और मराठों के बीच दूसरा मराठा युद्ध (1803-05 ई.) हुआ, जिसमें तीन अन्य प्रमुख मराठा शक्तियों की पराजय हुई।
|
|
|
|
|