जनरल अलार: Difference between revisions

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Latest revision as of 12:02, 5 July 2017

जनरल अलार एक फ़्राँसीसी सेनानायक था, जो नेपोलियन के नेतृत्व में लड़ चुका था। बाद में उसे पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह (1798-1839 ई.) ने अपनी सिक्ख सेना को संगठित तथा प्रशिक्षित करने के लिए रख लिया।[1]

  • अलार 1803 ई. में फ़्राँसीसी सेना के घुड़सवार दस्ते में भर्ती हुआ था। इटली, स्पेन और पुर्तग़ाल के युद्धों में उसने सक्रिय भाग लिया।
  • 1822 ई. में अलार लाहौर आ गया और महाराजा रणजीत सिंह के दरबार में नौकरी करने लगा।
  • महाराजा ने अलार को अपनी घुड़सवार सेना को यूरोपीय पद्धति के अनुसार प्रशिक्षण देने का काम सौंप दिया था। इसके अतिरिक्त अलार ने सिक्ख सेना में 'कारबाइन'[2] के उपयोग को शुरू किया।
  • अलार के प्रयासों से अब सिक्ख दस्ते बहुत शक्तिशाली माने जाने लगे। इसके फलस्वरूप महाराजा अलार को अपना राजनीतिक एवं सैनिक सलाहकार मानने लगे।
  • चम्बा की एक भारतीय स्त्री 'बन्नू पान दाई' से अलार ने विवाह कर लिया था।
  • जनरल अलार और बन्नू की एक पुत्री हुई, जिसका नाम 'मारी शार्लोत' रखा गया था, लेकिन कुछ महीनों बाद ही उसकी मृत्यु हो गई। उस समय अलार के घर के साथ जो बाग़ था, वहीं पर उसने अपनी पुत्री की याद में एक मक़बरा बनवाया। क्यूँकि पंजाबी में लड़की को 'कुड़ी' कहते हैं, इसलिए उस जगह को 'कुड़ी बाग़' कहा जाने लगा।
  • कहा जाता है कि जनरल अलार की पेशावर में मौत के बाद जब उसकी देह को पूरे सम्मान के साथ लाहौर लाया गया तो रास्ते में हर बड़े शहर में शवयात्रा के दौरान गोलियां दागकर उसे सलामी दी गयी। लाहौर में शादारा से अनारकली तक के तीन मील के रास्ते में सेना के जवान तैनात थे, जिन्होंने बंदूकें चलाकर शवयात्रा को सम्मान दिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 21 |
  2. एक छोट्टी राइफल

बाहरी कड़ियाँ

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