बोरोबुदुर: Difference between revisions

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'''बोरोबुदुर''' [[बौद्ध धर्म]] से सम्बन्धित 'जावा द्वीप' का सर्वाधिक प्रसिद्ध [[स्तूप]] है, जिसे 750-854 ई. में [[शैलेन्द्र वंश|शैलेन्द्र राजवंश]] के एक शासक ने बनवाया था। इसके निर्माता का नाम ज्ञात नहीं है और न ही इसके निर्माण की तिथि ज्ञात है। बोरोबुदुर स्तूप आज भी शैलेन्द्र राजाओं के वैभवपूर्ण युग के स्मारक के रूप में विद्यमान है।
[[चित्र:Borobudur.jpg|thumb|300px|बोरोबुदुर स्तूप, इण्डोनेशिया]]
'''बोरोबुदुर''' [[बौद्ध धर्म]] से सम्बन्धित 'जावा द्वीप' (इण्डोनेशिया) का सर्वाधिक प्रसिद्ध [[स्तूप]] है, जिसे 750-854 ई. में [[शैलेन्द्र वंश|शैलेन्द्र राजवंश]] के एक शासक ने बनवाया था। इसके निर्माता का नाम ज्ञात नहीं है और न ही इसके निर्माण की तिथि ज्ञात है। बोरोबुदुर स्तूप आज भी शैलेन्द्र राजाओं के वैभवपूर्ण युग के स्मारक के रूप में विद्यमान है।


*बोरोबुदुर स्तूप को संसार का आठवाँ आश्चर्य माना जा सकता है।
*बोरोबुदुर स्तूप को संसार का आठवाँ आश्चर्य माना जा सकता है।

Revision as of 10:23, 11 November 2011

thumb|300px|बोरोबुदुर स्तूप, इण्डोनेशिया बोरोबुदुर बौद्ध धर्म से सम्बन्धित 'जावा द्वीप' (इण्डोनेशिया) का सर्वाधिक प्रसिद्ध स्तूप है, जिसे 750-854 ई. में शैलेन्द्र राजवंश के एक शासक ने बनवाया था। इसके निर्माता का नाम ज्ञात नहीं है और न ही इसके निर्माण की तिथि ज्ञात है। बोरोबुदुर स्तूप आज भी शैलेन्द्र राजाओं के वैभवपूर्ण युग के स्मारक के रूप में विद्यमान है।

  • बोरोबुदुर स्तूप को संसार का आठवाँ आश्चर्य माना जा सकता है।
  • इसकी वास्तुशैली पर भारतीय प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
  • यह स्तूप एक ऊँची पहाड़ी की चोटी पर स्थित है।
  • इसमें 9 खण्ड हैं, जो उत्तरोत्तर एक दूसरे से छोटे बनाये गये हैं।
  • शीर्षस्थ खण्ड पर घंटे की आकृति का एक स्तूप है, जिसका आकार अति विशाल है।
  • सबसे नीचे के चौकोर खण्ड की लम्बाई 131 गज है।
  • बुद्ध की अनेक मूर्तियाँ इसके शिलापट्टों पर उत्कीर्ण हैं।
  • प्रदक्षिणा मार्ग के शिलापट्टों पर बुद्ध के जीवन की अनेक घटनाएँ उत्कीर्ण हैं, जिनमें से कुछ ‘ललितविस्तर’ से ली गई हैं।
  • यह स्तूप जावा और उसके पड़ोस के द्वीपों पर शासन करने वाले भारत के राजाओं की वास्तुशिल्पीय परिकल्पना की भव्यता का उत्कृष्ट उदाहरण है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 298 |


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