लालसिंह: Difference between revisions

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'''लालसिंह''' एक [[सिक्ख]] सरदार था, जिसे 1843 ई. में [[पंजाब]] के महाराज 'दिलीप सिंह' की राजमाता रानी जिन्दा कौर का वज़ीर नियुक्त किया गया था। [[आंग्ल-सिक्ख युद्ध प्रथम|प्रथम आंग्ल-सिक्ख युद्ध]] के समय लालसिंह और तेजा सिंह के विश्वातघात के कारण ही सिक्खों की पूर्णतया हार हुई थी। अपनी विजय के बाद भी [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने लालसिंह को वज़ीर के पद पर रहने दिया, किन्तु [[कश्मीर]] के राजा गुलाब सिंह के ऊपर हमले में उसका हाथ होने पर उसे पद से हटा दिया गया।
'''लालसिंह''' एक [[सिक्ख]] सरदार था, जिसे 1843 ई. में [[पंजाब]] के महाराज 'दिलीप सिंह' की राजमाता रानी ज़िन्दा कौर का वज़ीर नियुक्त किया गया था। [[आंग्ल-सिक्ख युद्ध प्रथम|प्रथम आंग्ल-सिक्ख युद्ध]] के समय लालसिंह और तेजा सिंह के विश्वातघात के कारण ही सिक्खों की पूर्णतया हार हुई थी। अपनी विजय के बाद भी [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने लालसिंह को वज़ीर के पद पर रहने दिया, किन्तु [[कश्मीर]] के राजा गुलाब सिंह के ऊपर हमले में उसका हाथ होने पर उसे पद से हटा दिया गया।


*वज़ीर बनने के दो साल बाद ही 'प्रथम सिक्ख युद्ध' शुरू होने पर लालसिंह ने सिक्ख सेना का नेतृत्व सम्भाल लिया।
*वज़ीर बनने के दो साल बाद ही 'प्रथम सिक्ख युद्ध' शुरू होने पर लालसिंह ने सिक्ख सेना का नेतृत्व सम्भाल लिया।

Latest revision as of 13:17, 6 July 2012

लालसिंह एक सिक्ख सरदार था, जिसे 1843 ई. में पंजाब के महाराज 'दिलीप सिंह' की राजमाता रानी ज़िन्दा कौर का वज़ीर नियुक्त किया गया था। प्रथम आंग्ल-सिक्ख युद्ध के समय लालसिंह और तेजा सिंह के विश्वातघात के कारण ही सिक्खों की पूर्णतया हार हुई थी। अपनी विजय के बाद भी अंग्रेज़ों ने लालसिंह को वज़ीर के पद पर रहने दिया, किन्तु कश्मीर के राजा गुलाब सिंह के ऊपर हमले में उसका हाथ होने पर उसे पद से हटा दिया गया।

  • वज़ीर बनने के दो साल बाद ही 'प्रथम सिक्ख युद्ध' शुरू होने पर लालसिंह ने सिक्ख सेना का नेतृत्व सम्भाल लिया।
  • 1844 ई. में लॉर्ड एलनबरो की जगह लॉर्ड हार्डिंग गवर्नर-जनरल बनकर भारत आया था।
  • हार्डिंग ने मेजर 'ब्राडफ़ुट' को पेशावर से पंजाब तक का नियंत्रण करने का स्पष्ट निर्देश दिया।
  • 1845-1846 ई. में हुए आंग्ल-सिक्ख युद्ध का परिणाम अंग्रेज़ों के पक्ष में रहा।
  • इस युद्ध के अंतर्गत मुदकी, फ़िरोजशाह, बद्धोवाल तथा आलीवाल की लड़ाइयाँ लड़ी गईं।
  • ये चारों लड़ाइयाँ निर्णायंक नहीं थी, किन्तु पाँचवीं लड़ाई-'सबराओ की लड़ाई' (10 फ़रवरी, 1846 ई.) निर्णायक सिद्ध हुई।
  • लालसिंह और तेज़ सिंह के विश्वासघात के कारण ही सिक्खों की पूर्णतया हार हुई, जिन्होंने सिक्खों की कमज़ोरियों का भेद अंग्रेज़ों को दे दिया था।
  • अंग्रेज़ों से पराजय के फलस्वरूप 'प्रथम सिक्ख युद्ध' समाप्त हो गया।
  • 'लाहौर की सन्धि' (1846 ई.) के द्वारा लालसिंह वज़ीर के पद पर ही बना रहा।
  • बाद के दिनों में यह सन्देह किया गया कि, ब्रिटिश कठपुतली कश्मीर के राजा गुलाब सिंह के ऊपर किये गए हमले के पीछे लालसिंह का हाथ था, इसीलिए उसे पदच्युत कर दिया गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 420 |


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