दलीप सिंह: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
Line 5: Line 5:
|पूरा नाम=दलीप सिंह
|पूरा नाम=दलीप सिंह
|अन्य नाम=
|अन्य नाम=
|जन्म= [[6 सितम्बर]] 1838
|जन्म= [[6 सितम्बर]], 1838
|जन्म भूमि=[[लाहौर]]
|जन्म भूमि=[[लाहौर]]
|मृत्यु तिथि=[[22 अक्टूबर]], [[1893]]
|मृत्यु तिथि=[[22 अक्टूबर]], [[1893]]
Line 36: Line 36:
|अद्यतन=
|अद्यतन=
}}
}}
'''दलीप सिंह''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Duleep Singh'', जन्म: [[6 सितम्बर]] 1838, [[लाहौर]]; मृत्यु: [[22 अक्टूबर]], [[1893]], पेरिस) [[पंजाब]] के महाराज [[रणजीत सिंह]] का सबसे छोटे पुत्र थे। इन्हें 1843 ई. में नाबालिग अवस्था में अपनी माँ [[ज़िन्दाँ रानी|रानी ज़िन्दाँ]] की संरक्षकता में राजसिंहासन पर बैठाया गया।
'''दलीप सिंह''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Duleep Singh'', जन्म: [[6 सितम्बर]] 1838, [[लाहौर]]; मृत्यु: [[22 अक्टूबर]], [[1893]], पेरिस) [[पंजाब]] के [[रणजीत सिंह|महाराज रणजीत सिंह]] के सबसे छोटे पुत्र थे। इन्हें 1843 ई. में नाबालिग अवस्था में अपनी माँ [[ज़िन्दाँ रानी|रानी ज़िन्दाँ]] की संरक्षकता में राजसिंहासन पर बैठाया गया था।
====प्रथम सिक्ख युद्ध====
====प्रथम सिक्ख युद्ध====
दलीप सिंह की सरकार प्रथम सिक्ख युद्ध (1845-46) में शामिल हुई। जिसमें [[सिक्ख|सिक्खों]] की हार हुई और उसे [[सतलुज नदी]] के बायीं ओर का सारा क्षेत्र एवं जलंधर दोआब [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] को समर्पित करके डेढ़ करोड़ [[रुपया]] हर्जाना देकर संधि करने के लिए बाध्य होना पड़ा। [[चित्र:Duleep-Singh-1.jpg|thumb|left|दलीप सिंह]] रानी ज़िन्दाँ से नाबालिग राजा की संरक्षकता छीन ली गई और उसके सारे अधिकार सिक्खों की परिषद में निहित कर दिये गये।  
दलीप सिंह की सरकार प्रथम सिक्ख युद्ध (1845-46) में शामिल हुई थी, जिसमें [[सिक्ख|सिक्खों]] की हार हुई और उसे [[सतलुज नदी]] के बायीं ओर का सारा क्षेत्र एवं जलंधर दोआब [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] को समर्पित करके डेढ़ करोड़ [[रुपया]] हर्जाना देकर संधि करने के लिए बाध्य होना पड़ा। [[चित्र:Duleep-Singh-1.jpg|thumb|left|दलीप सिंह]] रानी ज़िन्दाँ से नाबालिग राजा की संरक्षकता छीन ली गई और उसके सारे अधिकार सिक्खों की परिषद में निहित कर दिये गये।  
====द्वितीय युद्ध====
====द्वितीय युद्ध====
परिषद ने दलीप सिंह की सरकार को 1848 ई. में ब्रिटिश भारतीय सरकार के विरुद्ध दूसरे युद्ध में फँसा दिया। इस बार भी अंग्रेज़ों के हाथों सिक्खों की पराजय हुई और ब्रिटिश विजेताओं ने दलीपसिंह को अपदस्थ करके पंजाब को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया। दलीप सिंह की पाँच लाख रुपया वार्षिक पेंशन बाँध दी गई और उसके बाद शीघ्र ही माँ के साथ उसे [[इंग्लैंण्ड]] भेज दिया गया, जहाँ दलीप सिंह ने [[ईसाई धर्म]] को ग्रहण कर लिया और वह नारकाक में कुछ समय तक ज़मींदार रहा। इंग्लैंण्ड प्रवास के दौरान दलीप सिंह ने 1887 ई. में [[रूस]] की यात्रा की और वहाँ पर जार को [[भारत]] पर हमला करने के लिए राज़ी करने का असफल प्रयास किया। बाद में वह भारत लौट आया और फिर से अपना पुराना [[सिक्ख धर्म]] ग्रहण करके शेष जीवन व्यतीत किया।
परिषद ने दलीप सिंह की सरकार को 1848 ई. में ब्रिटिश भारतीय सरकार के विरुद्ध दूसरे युद्ध में फँसा दिया। इस बार भी अंग्रेज़ों के हाथों सिक्खों की पराजय हुई और ब्रिटिश विजेताओं ने दलीपसिंह को अपदस्थ करके [[पंजाब]] को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया। दलीप सिंह की पाँच लाख रुपया वार्षिक पेंशन बाँध दी गई और उसके बाद शीघ्र ही माँ के साथ उसे [[इंग्लैंण्ड]] भेज दिया गया, जहाँ दलीप सिंह ने [[ईसाई धर्म]] को ग्रहण कर लिया और वह नारकाक में कुछ समय तक ज़मींदार रहा। इंग्लैंण्ड प्रवास के दौरान दलीप सिंह ने [[1887]] ई. में [[रूस]] की यात्रा की और वहाँ पर जार को [[भारत]] पर हमला करने के लिए राज़ी करने का असफल प्रयास किया। बाद में वह भारत लौट आया और फिर से अपना पुराना [[सिक्ख धर्म]] ग्रहण करके शेष जीवन व्यतीत किया।




Line 50: Line 50:
[[Category:औपनिवेशिक काल]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:सिक्ख धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]][[Category:अंग्रेज़ी शासन]]
[[Category:औपनिवेशिक काल]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:सिक्ख धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]][[Category:अंग्रेज़ी शासन]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__

Revision as of 05:20, 6 September 2017

पंजाबी उच्चारणानुसार दिलीप सिंह को दलीप सिंह कहा जाता है।
दलीप सिंह
पूरा नाम दलीप सिंह
जन्म 6 सितम्बर, 1838
जन्म भूमि लाहौर
मृत्यु तिथि 22 अक्टूबर, 1893
मृत्यु स्थान पेरिस
पिता/माता रणजीत सिंह और रानी ज़िन्दाँ
अन्य जानकारी इंग्लैंण्ड प्रवास के दौरान दलीप सिंह ने 1887 ई. में रूस की यात्रा की और वहाँ पर जार को भारत पर हमला करने के लिए राज़ी करने का असफल प्रयास किया। बाद में वह भारत लौट आया और फिर से अपना पुराना सिक्ख धर्म ग्रहण करके शेष जीवन व्यतीत किया।

दलीप सिंह (अंग्रेज़ी: Duleep Singh, जन्म: 6 सितम्बर 1838, लाहौर; मृत्यु: 22 अक्टूबर, 1893, पेरिस) पंजाब के महाराज रणजीत सिंह के सबसे छोटे पुत्र थे। इन्हें 1843 ई. में नाबालिग अवस्था में अपनी माँ रानी ज़िन्दाँ की संरक्षकता में राजसिंहासन पर बैठाया गया था।

प्रथम सिक्ख युद्ध

दलीप सिंह की सरकार प्रथम सिक्ख युद्ध (1845-46) में शामिल हुई थी, जिसमें सिक्खों की हार हुई और उसे सतलुज नदी के बायीं ओर का सारा क्षेत्र एवं जलंधर दोआब अंग्रेज़ों को समर्पित करके डेढ़ करोड़ रुपया हर्जाना देकर संधि करने के लिए बाध्य होना पड़ा। thumb|left|दलीप सिंह रानी ज़िन्दाँ से नाबालिग राजा की संरक्षकता छीन ली गई और उसके सारे अधिकार सिक्खों की परिषद में निहित कर दिये गये।

द्वितीय युद्ध

परिषद ने दलीप सिंह की सरकार को 1848 ई. में ब्रिटिश भारतीय सरकार के विरुद्ध दूसरे युद्ध में फँसा दिया। इस बार भी अंग्रेज़ों के हाथों सिक्खों की पराजय हुई और ब्रिटिश विजेताओं ने दलीपसिंह को अपदस्थ करके पंजाब को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया। दलीप सिंह की पाँच लाख रुपया वार्षिक पेंशन बाँध दी गई और उसके बाद शीघ्र ही माँ के साथ उसे इंग्लैंण्ड भेज दिया गया, जहाँ दलीप सिंह ने ईसाई धर्म को ग्रहण कर लिया और वह नारकाक में कुछ समय तक ज़मींदार रहा। इंग्लैंण्ड प्रवास के दौरान दलीप सिंह ने 1887 ई. में रूस की यात्रा की और वहाँ पर जार को भारत पर हमला करने के लिए राज़ी करने का असफल प्रयास किया। बाद में वह भारत लौट आया और फिर से अपना पुराना सिक्ख धर्म ग्रहण करके शेष जीवन व्यतीत किया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख