दिल्ली दरबार, 1911

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 08:05, 1 August 2017 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs) ('सन 1911 का दिल्ली दरबार लॉर्ड हार्डिंग द्वारा आय...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

सन 1911 का दिल्ली दरबार लॉर्ड हार्डिंग द्वारा आयोजित किया गया था। बादशाह जॉर्ज पंचम और उनकी महारानी इस अवसर पर भारत आये थे। उनकी ताज़पोशी का समारोह भी हुआ। इसी दरबार में एक घोषणा के द्वारा बंगाल के विभाजन को भी रद्द कर दिया गया, साथ ही राजधानी को कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) से दिल्ली लाने की घोषणा भी की गई।

जॉर्ज पंचम का राजतिलक

दिसंबर में महाराजा जॉर्ज पंचम एवं महारानी मैरी के भारत के सम्राट एवं सम्राज्ञी बनने पर राजतिलक समारोह हुआ था। व्यवहारिक रूप से प्रत्येक शासक राजकुमार, महाराजा एवं नवाब तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति, सभापतियों को अपना आदर व्यक्त करने पहुंचे। सम्राट्गण अपनी शाही राजतिलक वेशभूषा में आये थे। सम्राट ने आठ मेहराबों युक्त भारत का इम्पीरियल मुकुट पहना, जिसमें छः हज़ार एक सौ सत्तर उत्कृष्ट तराशे हीरे, जिनके साथ नीलम, पन्ना और माणिक्य जड़े थे। साथ ही एक शनील और मिनिवर टोपी भी थी, जिन सब का भार 965 ग्राम था। फिर वे लाल क़िले के एक झरोखे में दर्शन के लिये आये, जहां दस लाख से अधिक लोग दर्शन हेतु उपस्थित थे।

महारानी का हार

'दिल्ली दरबार मुकुट' के नाम से सम्राज्ञी का एक भव्य मुकुट था। महारानी को पटियाला की महारानी की ओर से गले का खूबसूरत हार भेंट किया गया था। यह भारत की सभी स्त्रियों की ओर से महारानी की पहली भारत यात्रा के स्मारक स्वरूप था। सम्राज्ञी की विशेष आग्रह पर यह हार उनकी दरबार की पन्ने युक्त शेष भूषा से मेल खाता बनवाया गया था। 1912 में गेरार्ड कम्पनी ने इस हार में एक छोटा सा बदलाव किया, जिससे कि पूर्व पन्ने का लोलक (पेंडेंट) हटाने योग्य हो गया और उसके स्थान पर एक दूसरा हटने योग्य हीरे का लोलक लगाया गया। यह एक 8.8 कैरेट का मार्क्यूज़ हीरा था, जिसे कुलिनैन सप्तम बुलाया गया। यह कुलिनैन हीरे में से कटे नौ में से एक भाग से बना था। यह हार महारानी द्वारा 1953 में संभाला गया और डचेस ऑफ़ कॉर्नवाल द्वारा एक बॉल में धारण किया गया, जहां वे एक नॉर्वेजियाई परिवार से मिलीं थीं।

पदक वितरण

इस तीसरे दिल्ली दरबार (1911) में लगभग 26,800 पदक दिये गये, जो कि अधिकांशतः ब्रिटिश रेजिमेंट के अधिकारी एवं सैनिकों को दिये गये थे। भारतीय रजवाड़ों के शासकों और उच्च पदस्थ अधिकारियों को भी एक छोटी संख्या में स्वर्ण पदक दिये गये थे।

आज दिल्ली का कोरोनेशन पार्क उत्तरी दिल्ली में खाली पड़ा एक मैदान मात्र है, जिसका रिक्त स्थान दिल्ली के अतीव ट्रैफिक एवं शहरी फैलाव के बावजूद आश्चर्यजनक है। यह अधिकतर जंगली झाड़ियों से ढंका, उपेक्षित पड़ा है। यह मैदान यदा कदा धार्मिक आयोजनों या नगरमहापालिका की सभाओं हेतु प्रयोग में आता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः