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दिल्ली दरबार (अंग्रेज़ी: Delhi Durbar) भारत में औपनिवेशिक काल में राजसी दरबार होता था। यह इंग्लैण्ड के महाराजा या महारानी के राजतिलक की शोभा में सजाया जाता था। ब्रिटिश साम्राज्य के चरम काल में, सन 1877 से 1911 के बीच तीन दिल्ली दरबार लगे। सन 1911 का दरबार एकमात्र ऐसा था, जिसमें सम्राट जॉर्ज पंचम स्वयं पधारे थे।
पहला दिल्ली दरबार
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पहला दरबार लॉर्ड लिटन ने आयोजित किया था, जिसमें महारानी विक्टोरिया को भारत की साम्राज्ञी घोषित किया गया। इस दरबार की शान-शौक़त पर बेशुमार धन खर्च किया गया, जबकि 1876-1878 ई. तक दक्षिण के लोग अकाल से पीड़ित थे, जिसमें हज़ारों की संख्या में व्यक्तियों की जानें गईं। इस समय दरबार के आयोजन को जन-धन की बहुत बड़ी बरबादी समझा गया।
दूसरा दिल्ली दरबार
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दूसरा दरबार लॉर्ड कर्ज़न ने 1903 ई. में आयोजित किया, जिसमें बादशाह एडवर्ड सप्तम की ताज़पोशी की घोषणा की गई। यह दरबार पहले से भी ज़्यादा ख़र्चीला सिद्ध हुआ। इसका कुछ नतीजा नहीं निकला। यह केवल ब्रिटिश सरकार का शक्ति प्रदर्शन ही था।
तीसरा दिल्ली दरबार
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तीसरा दरबार लॉर्ड हार्डिंग के जमाने में 1911 में आयोजित हुआ। बादशाह जॉर्ज पंचम और उसकी महारानी इस अवसर पर भारत आये थे और उनकी ताज़पोशी का समारोह भी हुआ था। इसी दरबार में एक घोषणा के द्वारा बंगाल के विभाजन को भी रद्द कर दिया गया, साथ ही राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली लाने की घोषणा भी की गई।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश' पृष्ठ संख्या-204