वायकोम सत्याग्रह: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
 
Line 19: Line 19:
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन}}{{औपनिवेशिक काल}}
{{भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन}}{{औपनिवेशिक काल}}
[[Category:आंदोलन]][[Category:भारतीय आंदोलन]]
[[Category:भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन]][[Category:औपनिवेशिक काल]][[Category:अंग्रेज़ी शासन]][[Category:आधुनिक काल]][[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन]][[Category:औपनिवेशिक काल]][[Category:अंग्रेज़ी शासन]][[Category:आधुनिक काल]][[Category:इतिहास कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 08:20, 14 January 2020

वायकोम सत्याग्रह (1924-1925 ई.) एक प्रकार का गाँधीवादी आन्दोलन था। इस आन्दोलन का नेतृत्व टी. के. माधवन, के. केलप्पन तथा के. पी. केशवमेनन ने किया। यह आन्दोलन त्रावणकोर के एक मन्दिर के पास वाली सड़क के उपयोग से सम्बन्धित था।

उद्देश्य

'वायकोम सत्याग्रह' का उद्देश्य निम्न जातीय एझवाओं एवं अछूतों द्वारा गाँधी जी के अहिंसावादी तरीके से त्रावणकोर के एक मंदिर के निकट की सड़कों के उपयोग के बारे में अपने-अपने अधिकारों को मनवाना था।

आंदोलन की शुरुआत

केरल में छूआछूत की जड़ें काफ़ी गहरी जमीं हुई थीं। यहाँ सवर्णों से अवर्णों को, जिनमें ‘एझवा’ और ‘पुलैया’ अछूत जातियाँ शामिल थीं, 16 से 32 फीट की दूरी बनाये रखनी होती थी।19वीं सदी के अंत तक केरल में नारायण गुरु, एन. कुमारन, टी. के. माधवन जैसे बुद्धिजीवियों ने छुआछूत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई। सर्वप्रथम हिन्दू मंदिरों में प्रवेश तथा सार्वजनिक सड़कों पर हरिजनों के चलने को लेकर त्रावनकोर के ग्राम ‘वायकोम’ में आंदोलन शुरू हुआ।

समर्थन

आन्दोलन का नेतृत्व एझवाओं के कांग्रेसी नेता टी. के. माधवन, के. केलप्पन तथा के. पी. केशवमेनन ने किया। ग्राम में स्थित एक मंदिर में 30 मार्च, 1924 को केरल कांग्रेसियों के एक दल ने, जिसमें सवर्ण और अवर्ण दोनों सम्मिलित थे, मंदिर में प्रवेश किया। मंदिर में प्रवेश की ख़बर फैलते ही सवर्णों के संगठन ‘नायर सर्विस सोसाइटी’, ‘नायर समाजम’ व ‘केरल हिन्दू सभा’ ने आंदोलन का समर्थन किया। नम्बूदरियों (उच्च ब्राह्मण) के संगठन ‘योगक्षेम’ ने भी इस आंदोलन को समर्थन प्रदान किया।

सत्याग्रहियों की गिरफ़्तारी

30 मार्च, 1924 को के.पी. केशवमेनन के नेतृत्व में सत्याग्रहियों ने मंदिर के पुजारियों तथा त्रावनकोर की सरकार द्वारा मंदिर में प्रवेश को रोकने के लिए लगाई गई बाड़ को पार कर मंदिर की ओर कूच किया। सभी सत्याग्रहियों को गिरफ़्तार किया गया। इस सत्याग्रह के समर्थन में पूरे देश से स्वयं सेवक वायकोम पहुँचने लगे। पंजाब से एक अकाली जत्था तथा ई. वी. रामस्वामी नायकर, जिन्हें ‘पेरियार’ के नाम से जाना जाता था, ने मदुरै से आये एक दल का नेतृत्व किया।

गाँधीजी तथा महारानी में समझौता

सन 1924 में त्रावनकोर के महाराजा की मृत्यु के बाद महारानी ने सभी सत्याग्रहियों को मुक्त कर दिया, किंतु उन्होंने मंदिर की सड़क सबके लिए खोलने की माँग नामंजूर कर दी। मार्च, 1925 ई. में जब महात्मा गाँधी केरल पहुँचे तो उनमें और महारानी में एक समझौता हुआ, जिसके अनुसार अवर्णों को मंदिर के बाहर सड़क पर प्रवेश की अनुमति मिली, लेकिन मंदिर में प्रवेश अब भी वर्जित ही था। बाद में आन्दोलन कमज़ोर पड़ गया, क्योंकि अंग्रेज़ सरकार ने अछूतों के लिए अलग सड़क का निर्माण करा दिया। 'वायकोम सत्याग्रह' मन्दिर प्रवेश का प्रथम आन्दोलन था।


  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख