सिंधिया वंश

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 07:06, 16 November 2011 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs) (''''सिंधिया परिवार''' ग्वालियर का मराठा शासक परिवार, ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

सिंधिया परिवार ग्वालियर का मराठा शासक परिवार, जिसने 18वीं शताब्दी के एक कालखण्ड में उत्तर भारत की राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाई। इस वंश की स्थापना रणोजी सिंधिया ने की थी, जिन्हें 1726 ई. में पेशवा (मराठा राज्य के प्रमुख मंत्री) द्वारा मालवा ज़िले का प्रभारी बनाया गया था। 1750 ई. में मृत्यु होने से पहले रणोजी सिंधिया ने उज्जैन में अपनी राजधानी स्थापित कर ली थी। बाद में सिंधिया राजधानी को ग्वालियर के पहाड़ी दुर्ग में ले आये।

  • रणोजी के उत्तराधिकारियों में महादजी सिंधिया (शासनकाल, 1761-1794 ई.) सम्भवत: सबसे महान उत्तराधिकारी थे।
  • महादजी सिंधिया ने पेशवा से अलग उत्तर भारत में अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था।
  • ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ हुए युद्ध (1775-1782 ई.) में वह पश्चिमोत्तर भारत के मान्यता प्राप्त शासक के रूप में उभरे।
  • फ़्राँसीसी अधिकारियों की सहायता से उन्होंने राजपूतों को हराया और मुग़ल बादशाह शाहआलम को अपने संरक्षण ले लिया।
  • अन्तत: महादजी सिंधिया ने 1793 ई. में पेशवा के प्रमुख सेनानायक मराठा मल्हारराव होल्कर को हराकर पेशवा को भी नियंत्रित कर लिया।
  • इस बीच उनके चचेरे पोते 'दौलत राम' को गम्भीर पराजय का सामना करना पड़ा, जब 1803 ई. में उनका अंग्रेज़ों से टकराव हुआ।
  • चार लड़ाइयों में जनरल ग्रेरार्ड द्वारा हराए जाने पर उन्हें फ़्राँसीसियों से प्रशिक्षित अपनी सेना को तोड़ना पड़ा और एक सन्धि पर हस्ताक्षर करना पड़ा।
  • उन्होंने दिल्ली का नियंत्रण छोड़ दिया, लेकिन 1817 ई. तक राजपूताना को अपने पास रखा।
  • 1818 ई. में सिंधिया अंग्रेज़ों के अधीन हो गये और 1947 ई. तक एक रजवाड़े के रूप में बने रहे।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः