जगत नारायण मुल्ला: Difference between revisions

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'''जगत नारायण मुल्ला''' (जन्म- [[14 दिसम्बर]], [[1864]] ई., [[कश्मीर]]; मृत्यु- [[11 दिसम्बर]], [[1938]] ई.) अपने समय में [[उत्तर प्रदेश]] के प्रसिद्ध वकील और प्रसिद्ध सार्वजनिक कार्यकर्ता थे। उनके [[पिता]] पंडित काली सहाय मुल्ला उत्तर प्रदेश में सरकारी सेवा में थे। इसीलिए जगत् नारायण की शिक्षा उत्तर प्रदेश में ही हुई। उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से क़ानून की परीक्षा उत्तीर्ण की और [[लखनऊ]] में वकालत करने लगे। शीघ्र ही उनकी गणना प्रसिद्ध वकीलों में होने लगी। अपने समय के प्रमुख व्यक्तियों, जैसे-[[पंडित मोतीलाल नेहरू]], बाबू गंगा प्रसाद वर्मा, [[सी. वाई. चिन्तामणि]], बिशन नारायण दर आदि से उनके घनिष्ठ सम्बन्ध थे।
==विभिन्न पद==
==विभिन्न पद==
वकालत के साथ उन्होंने सार्वजनिक कार्यों में भी भाग लेना शुरू किया। 1916 ई. की लखनऊ कांग्रेस की स्वागत-समिति के अध्यक्ष वही थे। लगभग 15 वर्षों तक लखनऊ नगरपालिका के अध्यक्ष रहे। मांटेग्यू चेम्सफ़ोर्ड सुधारों के बाद उत्तर प्रदेश कौंसिल के सदस्य निर्वाचित हुए और प्रदेश के स्वायत्त शासन विभाग के मंत्री बने। 3 वर्ष तक वे [[लखनऊ विश्वविद्यालय]] के उपकुलपति भी रहे।
वकालत के साथ उन्होंने सार्वजनिक कार्यों में भी भाग लेना शुरू किया। 1916 ई. की लखनऊ कांग्रेस की स्वागत-समिति के अध्यक्ष वही थे। लगभग 15 वर्षों तक लखनऊ नगरपालिका के अध्यक्ष रहे। मांटेग्यू चेम्सफ़ोर्ड सुधारों के बाद उत्तर प्रदेश कौंसिल के सदस्य निर्वाचित हुए और प्रदेश के स्वायत्त शासन विभाग के मंत्री बने। 3 वर्ष तक वे [[लखनऊ विश्वविद्यालय]] के उपकुलपति भी रहे।
==हंटर कमेटी के सदस्य==
==हंटर कमेटी के सदस्य==
राजनीति में यद्यपि जगत नारायण मुल्ला नरम विचारों के व्यक्ति थे, पर वे [[लोकमान्य तिलक]] और [[गांधीजी]] का बड़ा सम्मान करते थे। उनका भी विश्वास था कि प्रथम विश्वयुद्ध में विजयी होने के बाद ब्रिटिश सरकार [[भारत]] को स्वशासन के वही अधिकार दे देगी, जो कनाडा और [[दक्षिण अफ़्रीका]] को प्राप्त हैं। पर उनकी यह आशा पूरी नहीं हुई और भारत में [[जलियांवाला बाग़|जलियांवाला बाग़]] के हत्याकाण्ड सहित दमन का नया दौर शुरू हो गया। इन घटनाओं की जाँच के लिए सरकार ने जो ‘हंटर कमेटी’ गठित की थी, उसके तीन भारतीय सदस्यों में एक जगत नारायण मुल्ला भी थे। इन तीनों ने कमेटी की रिपोर्ट में अपनी असहमति दर्ज की थी।
राजनीति में यद्यपि जगत् नारायण मुल्ला नरम विचारों के व्यक्ति थे, पर वे [[लोकमान्य तिलक]] और [[गांधीजी]] का बड़ा सम्मान करते थे। उनका भी विश्वास था कि प्रथम विश्वयुद्ध में विजयी होने के बाद ब्रिटिश सरकार [[भारत]] को स्वशासन के वही अधिकार दे देगी, जो कनाडा और [[दक्षिण अफ़्रीका]] को प्राप्त हैं। पर उनकी यह आशा पूरी नहीं हुई और भारत में [[जलियांवाला बाग़|जलियांवाला बाग़]] के हत्याकाण्ड सहित दमन का नया दौर शुरू हो गया। इन घटनाओं की जाँच के लिए सरकार ने जो ‘हंटर कमेटी’ गठित की थी, उसके तीन भारतीय सदस्यों में एक जगत् नारायण मुल्ला भी थे। इन तीनों ने कमेटी की रिपोर्ट में अपनी असहमति दर्ज की थी।
==निधन==
==निधन==
जीवन के अन्तिम वर्षों में जगत नारायण मुल्ला अस्वस्थ रहने लगे थे। इलाज के लिए स्विट्ज़रलैण्ड तक गए। बाद में 11 दिसम्बर, 1938 को उनका देहान्त हो गया।
जीवन के अन्तिम वर्षों में जगत् नारायण मुल्ला अस्वस्थ रहने लगे थे। इलाज के लिए स्विट्ज़रलैण्ड तक गए। बाद में 11 दिसम्बर, 1938 को उनका देहान्त हो गया।


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Latest revision as of 13:55, 30 June 2017

जगत नारायण मुल्ला
पूरा नाम जगत नारायण मुल्ला
जन्म 14 दिसम्बर, 1864 ई.
जन्म भूमि कश्मीर
मृत्यु 11 दिसम्बर, 1938 ई.
अभिभावक पिता- पंडित काली सहाय मुल्ला
कर्म-क्षेत्र वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता
शिक्षा एल.एल.बी
विद्यालय आगरा विश्वविद्यालय
विशेष योगदान 3 वर्ष तक लखनऊ विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी रहे।
नागरिकता भारतीय

जगत नारायण मुल्ला (जन्म- 14 दिसम्बर, 1864 ई., कश्मीर; मृत्यु- 11 दिसम्बर, 1938 ई.) अपने समय में उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध वकील और प्रसिद्ध सार्वजनिक कार्यकर्ता थे। उनके पिता पंडित काली सहाय मुल्ला उत्तर प्रदेश में सरकारी सेवा में थे। इसीलिए जगत् नारायण की शिक्षा उत्तर प्रदेश में ही हुई। उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से क़ानून की परीक्षा उत्तीर्ण की और लखनऊ में वकालत करने लगे। शीघ्र ही उनकी गणना प्रसिद्ध वकीलों में होने लगी। अपने समय के प्रमुख व्यक्तियों, जैसे-पंडित मोतीलाल नेहरू, बाबू गंगा प्रसाद वर्मा, सी. वाई. चिन्तामणि, बिशन नारायण दर आदि से उनके घनिष्ठ सम्बन्ध थे।

विभिन्न पद

वकालत के साथ उन्होंने सार्वजनिक कार्यों में भी भाग लेना शुरू किया। 1916 ई. की लखनऊ कांग्रेस की स्वागत-समिति के अध्यक्ष वही थे। लगभग 15 वर्षों तक लखनऊ नगरपालिका के अध्यक्ष रहे। मांटेग्यू चेम्सफ़ोर्ड सुधारों के बाद उत्तर प्रदेश कौंसिल के सदस्य निर्वाचित हुए और प्रदेश के स्वायत्त शासन विभाग के मंत्री बने। 3 वर्ष तक वे लखनऊ विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी रहे।

हंटर कमेटी के सदस्य

राजनीति में यद्यपि जगत् नारायण मुल्ला नरम विचारों के व्यक्ति थे, पर वे लोकमान्य तिलक और गांधीजी का बड़ा सम्मान करते थे। उनका भी विश्वास था कि प्रथम विश्वयुद्ध में विजयी होने के बाद ब्रिटिश सरकार भारत को स्वशासन के वही अधिकार दे देगी, जो कनाडा और दक्षिण अफ़्रीका को प्राप्त हैं। पर उनकी यह आशा पूरी नहीं हुई और भारत में जलियांवाला बाग़ के हत्याकाण्ड सहित दमन का नया दौर शुरू हो गया। इन घटनाओं की जाँच के लिए सरकार ने जो ‘हंटर कमेटी’ गठित की थी, उसके तीन भारतीय सदस्यों में एक जगत् नारायण मुल्ला भी थे। इन तीनों ने कमेटी की रिपोर्ट में अपनी असहमति दर्ज की थी।

निधन

जीवन के अन्तिम वर्षों में जगत् नारायण मुल्ला अस्वस्थ रहने लगे थे। इलाज के लिए स्विट्ज़रलैण्ड तक गए। बाद में 11 दिसम्बर, 1938 को उनका देहान्त हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संपादन: 291 |


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