महात्मा गाँधी की धार्मिक खोज

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महात्मा गाँधी की धार्मिक खोज उनकी माता, पोरबंदर तथा राजकोट स्थित घर के प्रभाव से बचपन में ही शुरू हो गई थी। लेकिन दक्षिण अफ़्रीका पहुँचने पर इसे काफ़ी बल मिला। वह ईसाई धर्म पर टॉल्सटाय के लेखन पर मुग्ध थे। उन्होंने क़ुरान के अनुवाद का अध्ययन किया और हिन्दू अभिलेखों तथा दर्शन में डुबकियाँ लगाईं। सापेक्षिक कर्म के अध्ययन, विद्वानों के साथ बातचीत और धर्मशास्त्रीय कृतियों के निजी अध्ययन से वह इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि सभी धर्म सत्य हैं और फिर भी हर एक धर्म अपूर्ण है। [[चित्र:Agha-Khan-Palace-Pune.jpg|thumb|250px|महात्मा गाँधी जी का कमरा, आगा खान पैलेस, पुणे|left]] क्योंकि कभी-कभी उनकी व्याख्या स्तरहीन बुद्धि संकीर्ण हृदय से की गई है और अक्सर दुर्व्याख्या हुई है।

'गीता' अध्ययन

भगवदगीता, जिसका गाँधी ने पहली बार इंग्लैंड में अध्ययन किया था, उनका 'आध्यात्मिक शब्दकोश' बन गया और सम्भवतः उनके जीवन पर इसी का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा। गीता में उल्लिखित संस्कृत के दो शब्दों ने उन्हें सबसे ज़्यादा आकर्षित किया। एक था 'अपरिग्रह' (त्याग), जिसका अर्थ है- "मनुष्य को अपने आध्यात्मिक जीवन को बाधित करने वाली भौतिक वस्तुओं का त्याग कर देना चाहिए और उसे धन-सम्पत्ति के बंधनों से मुक्त हो जाना चाहिए।" दूसरा शब्द है 'समभाव' (समान भाव), जिसने उन्हें दुःख या सुख, जीत या हार, सबमें अडिग रहना तथा सफलता की आशा या असफलता के भय के बिना काम करना सिखाया। ये सिर्फ़ पूर्णता के समोपदेश नहीं थे। जिस दीवानी मुक़दमें के कारण वह 1893 में दक्षिण अफ़्रीका आए थे, उसमें उन्होंने दोनों विरोधियों को न्यायालय से बाहर ही समझौता करने पर राज़ी कर लिया था। उनके अनुसार, एक सच्चे वकील का काम 'विरोधी पक्षों को एकजुट करना' था। जल्दी ही वह मुवक्किलों को अपनी सेवा के ख़रीदार के बजाय मित्र समझने लगे, जो न सिर्फ़ क़ानूनी मामलों में उनकी सलाह लेते थे, बल्कि बच्चे से माँ का दूध छुड़ाने और परिवार के बजट में संतुलन जैसे मामलों पर भी राय लेते थे। जब एक सहयोगी ने रविवार को भी मुवक्किलों के आने पर विरोध किया, तो गाँधी का जवाब था- "विपत्ति में फँसे आदमी के पास रविवार का आराम नहीं होता।"


चित्र:Blockquote-open.gif प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्र को महात्मा जी की हत्या की सूचना इन शब्दों में दी, 'हमारे जीवन से प्रकाश चला गया और आज चारों तरफ़ अंधकार छा गया है। मैं नहीं जानता कि मैं आपको क्या बताऊँ और कैसे बताऊँ। हमारे प्यारे नेता, राष्ट्रपिता बापू अब नहीं रहे।' महात्मा गाँधी वास्तव में भारत के राष्ट्रपिता थे। 27 वर्षों के अल्पकाल में उन्होंने भारत को सदियों की दासता के अंधेरे से निकालकर आज़ादी के उज़ाले में पहुँचा दिया। किन्तु गाँधी जी का योगदान सिर्फ़ भारत की सीमाओं तक सीमित नहीं था। उनका प्रभाव सम्पूर्ण मानव जाति पर पड़ा चित्र:Blockquote-close.gif


क़ानून के पेशे में गाँधी की अधिकतम आय 5,000 रुपये प्रतिवर्ष पहुँच गई थी, लेकिन पैसा कमाने में उनकी अधिक रुचि नहीं थी और उनकी बचत अक्सर सार्वजनिक गतिविधियों पर खर्च हो जाती थी। डरबन में और फिर जोहेन्सबर्ग में, उन्होंने 'सदाव्रत' खोल रखा था। उनका घर युवा सहकर्मियों तथा राजनीतिक सहयोगियों का ठिकाना बन गया था। यह सब उनकी पत्नी को परेशान करता था, जिनके असाधारण धैर्य, सहनशीलता और आत्मबलिदान के बिना गाँधी सार्वजनिक सरोकार के प्रति शायद ही स्वयं को समर्पित कर पाते। जैसे-जैसे वे दोनों परिवार और सम्पत्ति के पारम्परिक बंधनों से मुक्त होते गए, उनके निजी व सामुदायिक जीवन का अंतर सिमटता गया। गाँधी सादा जीवन, शारीरिक श्रम और संयम के प्रति अत्यधिक आकर्षण महसूस करते थे। 1904 में पूँजीवाद के आलोचक जॉन रस्किन के 'अनटू दिस लास्ट' पढ़ने के बाद उन्होंने डरबन के पास फ़ीनिक्स में एक फ़ार्म की स्थापना की, जहाँ वह अपने मित्रों के साथ केवल अपने श्रम के बूते पर जी सकते थे। छः वर्ष के बाद गाँधी की देखरेख में जोहेन्सबर्ग के पास एक नई बस्ती विकसित हुई। रूसी लेखक और नीतिज्ञ के नाम पर इसे 'टॉल्सटाय फ़ार्म' का नाम दिया गया। गाँधी टॉल्सटाय के प्रशंसक थे और उनसे पत्र व्यवहार करते थे। ये दो बस्तियाँ, भारत में अहमदाबाद के पास साबरमती और वर्धा के पास सेवाग्राम में बनीं, जो अधिक प्रसिद्ध आश्रमों की पूर्ववर्ती थीं।

राम-शब्द के उच्चारण से लाखों—करोड़ों हिन्दुओं पर फ़ौरन असर होगा। और 'गॉड' शब्द का अर्थ समझने पर भी उसका उन पर कोई असर न होगा। चिरकाल के प्रयोग से और उनके उपयोग के साथ संयोजित पवित्रता से शब्दों को शक्ति प्राप्त होती है। -महात्मा गाँधी



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