उत्तानपाद: Difference between revisions

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'''उत्तानपाद''' [[स्वयंभुव मनु]] और [[शतरूपा]] के पुत्र थे। अपनी कम आयु में ही कठोर तपस्या द्वारा [[विष्णु|श्रीहरि]] को प्रसन्न करने वाले बालक [[ध्रुव]] राजा उत्तानपाद के ही पुत्र थे।


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*राजा उत्तानपाद की दो पत्नियां थीं- [[सुनीति]] और [[सुरुचि]]।
==उत्तानपाद / Uttanpad==
*सुनीति के पुत्र का नाम [[ध्रुव]] और सुरुचि के पुत्र का नाम [[उत्तम]] था।
*[[स्वायंभुव]] मनु के दो पुत्र थे—
*राजा की आसक्ति सुरुचि पर अधिक थी। इसलिए सुनीति और ध्रुव कि बहुदा उपेक्षा होती थी।
#प्रियव्रत और
*एक दिन जब ध्रुव [[पिता]] उत्तानपाद की गोद में बैठा था तो सुरुचि ने उसे झिड़क कर यह कहते हुए राजा की गोद से उसे उतार दिया कि "तुम मेरी कोख से पैदा नहीं हुए हो।" इससे दु:खी होकर बालक ध्रुव अपनी [[माता]] के साथ तप करने वन चला गया। उधर पत्नी के चले जाने से दु:खी राजा को [[नारद]] ने यह कहकर संतोष दिलाया कि तुम्हारा यह पुत्र बड़े यश का भागी बनेगा।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=99|url=}}</ref>
#उत्तानपाद।
*उत्तानपाद की दो स्त्रियाँ थीं—
#सुरुचि और
#सुनीति
*सुरुचि का पुत्र था उत्तम और  
*सुनीति का [[ध्रुव]]
*राजा उत्तानपाद सुरुचि पर आसक्त थे, एक प्रकार से उसके अधीन थे । वे चाहने पर भी सुनीति के प्रति अपना प्रेम प्रकट नहीं कर सकते थे ।




 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==संबंधित लेख==
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Latest revision as of 08:17, 6 May 2018

उत्तानपाद स्वयंभुव मनु और शतरूपा के पुत्र थे। अपनी कम आयु में ही कठोर तपस्या द्वारा श्रीहरि को प्रसन्न करने वाले बालक ध्रुव राजा उत्तानपाद के ही पुत्र थे।

  • राजा उत्तानपाद की दो पत्नियां थीं- सुनीति और सुरुचि
  • सुनीति के पुत्र का नाम ध्रुव और सुरुचि के पुत्र का नाम उत्तम था।
  • राजा की आसक्ति सुरुचि पर अधिक थी। इसलिए सुनीति और ध्रुव कि बहुदा उपेक्षा होती थी।
  • एक दिन जब ध्रुव पिता उत्तानपाद की गोद में बैठा था तो सुरुचि ने उसे झिड़क कर यह कहते हुए राजा की गोद से उसे उतार दिया कि "तुम मेरी कोख से पैदा नहीं हुए हो।" इससे दु:खी होकर बालक ध्रुव अपनी माता के साथ तप करने वन चला गया। उधर पत्नी के चले जाने से दु:खी राजा को नारद ने यह कहकर संतोष दिलाया कि तुम्हारा यह पुत्र बड़े यश का भागी बनेगा।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 99 |

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