ईद उल फ़ितर: Difference between revisions

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यह ख़ुशी ख़ासतौर से इसलिए भी है कि रमज़ान का महीना जो एक तरह से परीक्षा का महीना है, वह अल्लाह के नेक बंदों ने पूरी अक़ीदत (श्रद्धा), ईमानदारी व लगन से अल्लाह के हुक़्मों पर चलने में गुज़ारा। इस कड़ी आजमाइश के बाद का तोहफ़ा ईद है। पुस्तकों में आया है कि रमज़ान में पूरे रोज़े रखने वाले का तोहफ़ा ईद है। इस दिन अल्लाह की रहमत पूरे जोश पर होती है तथा अपना हुक़्म पूरा करने वाले बंदों को रहमतों की बारिश से भिगो देती है। अल्लाह पाक रमज़ान की इबादतों के बदले अपने नेक बंदों को बख्शे जाने का ऐलान फ़रमा देते हैं। ईद की नमाज़ के जरिए बंदे ख़ुदा का शुक्र अदा करते हैं कि उसने ही हमें रमज़ान का पाक महीना अता किया, फिर उसमें इबादतें करने की तौफ़ीक दी और इसके बाद ईद का तोहफ़ा दिया। तब बंदा अपने माबूद (पूज्य) के दरबार में पहुंचकर उसका शुक्र अदा करता है। सही मायनों में तो ये मन्नतें पूरी होने का दिन है। इन मन्नतों के साथ तो ऊपर वाले के सामने सभी मंगते बनने को तैयार हो जाते हैं। उस रहीमो-करीम (अत्यंत कृपावान) की असीम रहमतों की आस लेकर एक माह तक मुसलसल इम्तिहान देते रहे। कोशिश करते रहे कि उसने जो आदेश दिए हैं उन्हें हर हाल में पूरा करते रहें। चाहे वह रोज़ों की शक्ल में हो, सहरी या इफ़्तार की शक्ल में। तरावीह की शक्ल में या जकात-फ़ित्रे की शक्ल में। इन मंगतों ने अपनी हिम्मत के मुताबिक अमल किया, अब ईद के दिन सारे संसार का पालनहार उनको नवाजेगा।<ref name="eid"/>
यह ख़ुशी ख़ासतौर से इसलिए भी है कि रमज़ान का महीना जो एक तरह से परीक्षा का महीना है, वह अल्लाह के नेक बंदों ने पूरी अक़ीदत (श्रद्धा), ईमानदारी व लगन से अल्लाह के हुक़्मों पर चलने में गुज़ारा। इस कड़ी आजमाइश के बाद का तोहफ़ा ईद है। पुस्तकों में आया है कि रमज़ान में पूरे रोज़े रखने वाले का तोहफ़ा ईद है। इस दिन अल्लाह की रहमत पूरे जोश पर होती है तथा अपना हुक़्म पूरा करने वाले बंदों को रहमतों की बारिश से भिगो देती है। अल्लाह पाक रमज़ान की इबादतों के बदले अपने नेक बंदों को बख्शे जाने का ऐलान फ़रमा देते हैं। ईद की नमाज़ के जरिए बंदे ख़ुदा का शुक्र अदा करते हैं कि उसने ही हमें रमज़ान का पाक महीना अता किया, फिर उसमें इबादतें करने की तौफ़ीक दी और इसके बाद ईद का तोहफ़ा दिया। तब बंदा अपने माबूद (पूज्य) के दरबार में पहुंचकर उसका शुक्र अदा करता है। सही मायनों में तो ये मन्नतें पूरी होने का दिन है। इन मन्नतों के साथ तो ऊपर वाले के सामने सभी मंगते बनने को तैयार हो जाते हैं। उस रहीमो-करीम (अत्यंत कृपावान) की असीम रहमतों की आस लेकर एक माह तक मुसलसल इम्तिहान देते रहे। कोशिश करते रहे कि उसने जो आदेश दिए हैं उन्हें हर हाल में पूरा करते रहें। चाहे वह रोज़ों की शक्ल में हो, सहरी या इफ़्तार की शक्ल में। तरावीह की शक्ल में या जकात-फ़ित्रे की शक्ल में। इन मंगतों ने अपनी हिम्मत के मुताबिक़ अमल किया, अब ईद के दिन सारे संसार का पालनहार उनको नवाजेगा।<ref name="eid"/>





Latest revision as of 09:51, 11 February 2021

ईद उल फ़ितर
अनुयायी मुस्लिम, भारतीय
उद्देश्य इस दिन मुसलमान किसी पाक साफ़ जगह पर जिसे 'ईदगाह' कहते हैं, वहाँ इकट्ठे होकर दो रक्आत नमाज़ शुक्राने की अदा करते हैं।
तिथि रमज़ान के बाद शव्वाल महीने के पहले दिन 'ईद' मनायी जाती है।
उत्सव इस ईद में मुसलमान 30 दिनों के बाद पहली बार दिन में खाना खाते हैं। उपवास की समाप्ति की खुशी के अलावा, इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी।
धार्मिक मान्यता ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त, नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफ़ों का आदान-प्रदान होता है।
संबंधित लेख ईद उल ज़ुहा, मोहर्रम, नमाज़, ईद उल फ़ितर -नज़ीर अकबराबादी
फ़ितरा ईदगाह में नमाज़ पढ़ने के लिए जाने से मुसलमान लोग 'फ़ितरा' अर्थात् 'जान व माल का सदक़ा' जो हर मुसलमान पर फ़र्ज होता है, वह ग़रीबों में बांटा जाता है।
शबे-क़द्र रमज़ान के महीने के आख़री दस दिनों में एक रात ऐसी है जिसे शबे-क़द्र कहते हैं। यह रात हज़ार महीने की इबादत करने से भी अधिक बेहतर होती है। शबे-क़द्र का अर्थ है, वह रात जिसकी क़द्र की जाए।
अन्य जानकारी पहला ईद उल-फ़ितर पैगम्बर मुहम्मद ने सन 624 ईसवी में जंग-ए-बदर के बाद मनाया था।

ईद-उल-फ़ितर मुसलमानों का पवित्र त्योहार है। यह रमज़ान के 30 दिन के पश्चात चांद देख कर दूसरे दिन मनाया जाने वाला एक पर्व विशेष है।[1] रमज़ान के पूरे महीने में मुसलमान रोज़े रखकर अर्थात् भूखे-प्यासे रहकर पूरा महीना अल्लाह की इबादत में गुज़ार देते हैं। इस पूरे महीने को अल्लाह की इबादत में गुज़ार कर जब वे रोज़ों से फ़ारिग हो जाते हैं तो चांद की पहली तारीख़ अर्थात् जिस दिन चांद दिखाई देता है, उस रोज़ को छोड़कर दूसरे दिन ईद का त्योहार अर्थात् ‘बहुत ख़ुशी का दिन’ मनाया जाता है। इस ख़ुशी के दिन को ईद-उल-फ़ितर कहते हैं। thumb|left|ईद पर गले मिलते हुए

ईद-उल-फ़ित्‌र का अर्थ

'ईद-उल-फ़ित्‌र' दरअसल दो शब्द हैं। 'ईद' और 'फ़ित्‌र'। असल में 'ईद' के साथ 'फ़ित्‌र' को जोड़े जाने का एक ख़ास मक़सद है। वह मक़सद है रमज़ान में ज़रूरी की गई रुकावटों को ख़त्म करने का ऐलान। साथ ही छोटे-बड़े, अमीर-ग़रीब सबकी ईद हो जाना। यह नहीं कि पैसे वालों ने, साधन-संपन्न लोगों ने रंगारंग, तड़क-भड़क के साथ त्योहार मना लिया व ग़रीब-गुरबा मुंह देखते रह गए। शब्द 'फ़ित्‌र' के मायने चीरने, चाक करने के हैं और ईद-उल-फ़ित्‌र उन तमाम रुकावटों को भी चाक कर देती है, जो रमज़ान में लगा दी गई थीं। जैसे रमज़ान में दिन के समय खाना-पीना व अन्य कई बातों से रोक दिया जाता है। ईद के बाद आप सामान्य दिनों की तरह दिन में खा-पी सकते हैं।[2]

फ़ितरा

ईद-उल-फ़ित्‌र अथवा 'ईद-उल-फ़ित्र' इस बात का ऐलान है कि अल्लाह की तरफ़ से जो पाबंदियां माहे-रमज़ान में तुम पर लगाई गई थीं, वे अब ख़त्म की जाती हैं। इसी फ़ित्र से 'फ़ितरा' बना है। फ़ित्रा यानी वह रक़म जो खाते-पीते, साधन संपन्न घरानों के लोग आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों को देते हैं। ईद की नमाज़ से पहले इसका अदा करना ज़रूरी होता है। इस तरह अमीर के साथ ही ग़रीब की, साधन संपन्न के साथ साधनविहीन की ईद भी मन जाती है। असल में ईद से पहले यानी रमजान में ज़कात अदा करने की परंपरा है। यह ज़कात भी ग़रीबों, बेवाओं व यतीमों को दी जाती है। इसके साथ फ़ित्रे की रक़म भी उन्हीं का हिस्सा है। इस सबके पीछे सोच यही है कि ईद के दिन कोई ख़ाली हाथ न रहे, क्योंकि यह खुशी का दिन है।[2] [[चित्र:Eid-ul fitr-2.jpg|thumb|left|ईद पर नमाज़ पढ़ते लोग]]

कैसे मनाते हैं?

ईद का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन मुसलमान किसी पाक साफ़ जगह पर जिसे 'ईदगाह' कहते हैं, वहाँ इकट्ठे होकर दो रक्आत नमाज़ शुक्राने की अदा करते हैं। 'ए अल्लाह, आपका शुक्रिया कि आपने हमारी इबादत कबूल की।' इसके शुक्राने में हम दो रक्आत ईद की नमाज़ पढ़ रहे हैं। आप इसे क़बूल भी करें। ईद की नमाज़ का हुक्म भी अल्लाह तआला की तरफ से है। ईदगाह में नमाज़ पढ़ने के लिए जाने से मुसलमान लोग 'फ़ितरा' अर्थात् 'जान व माल का सदक़ा' जो हर मुसलमान पर फ़र्ज होता है, वह ग़रीबों में बांटा जाता है। सदक़ा अल्लाह ने ग़रीबों की इमदाद का एक तरीक़ा सिखा दिया है। ग़रीब आदमी भी इस इमदाद से साफ़ और नये कपड़े पहनकर और अपना मनपसन्द खाना खाकर अपनी ईद मना सकते हैं। अमीर-ग़रीब एक साथ मिलकर नमाज़ पढ़ सकते हैं।

रोज़ा क्या है?

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

क़ुरान शरीफ़ के शब्दों में 'ए ईमान वालों, हमने तुम पर रोज़े पाक कर दिये हैं, जैसा कि तुमने पिछली उम्मतों (अनुयायियों) पर फ़र्ज किए थे ताकि तुम मुत्तफ़िक़ अर्थात् फ़रमाबरदार बन जाओ। यह गिनती के चन्द दिन हैं अगर तुम में से कोई मरीज़ है या सफ़र में है, तो उस वक़्त रोज़े छोड़कर ईद के बाद में अपने रोज़े पूरे कर सकता है। रमज़ान के पूरे महीने में मुस्लिम लोग भूखे-प्यासे रहकर और इन्द्रियों पर नियंत्रण रखकर अल्लाह की इबादत करते हैं। वह शबे-क़द्र की रात को सारी रात जाग कर अल्लाह की इबादत करते हैं।

रमज़ान क्या है?

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

रमज़ान महीने का नाम है, जिस प्रकार हिन्दी महीने चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, अगहन, पौष, माघ, फाल्गुन होते हैं और अंग्रेज़ी महीने जनवरी, फ़रवरी, मार्च, अप्रॅल, मई, जून, जुलाई, अगस्त, सितंबर, अक्टूबर, नवंबर, दिसंबर होते हैं । उसी प्रकार, मुस्लिम महीने, मुहर्रम, सफ़र, रबीउल अव्वल, रबीउल आख़िर, जमादी-उल-अव्वल, जमादी-उल-आख़िर, रजब, शाबान, रमज़ान, शव्वाल, ज़िलक़ाद, ज़िलहिज्ज ये बारह महीने आते हैं।

शबे-क़द्र

रमज़ान के महीने में अल्लाह की तरफ़ से हज़रत मोहम्मद साहब सल्लहो अलहै व सल्लम पर क़ुरान शरीफ़ नाज़िल (उतरा) था। इस महीने की बरकत में अल्लाह ने बताया कि इसमें मेरे बंदे मेरी इबादत करें। इस महीने के आख़री दस दिनों में एक रात ऐसी है जिसे शबे-क़द्र कहते हैं। 21, 23, 25, 27, 29 वें में शबे-क़द्र को तलाश करते हैं। यह रात हज़ार महीने की इबादत करने से भी अधिक बेहतर होती है। शबे-क़द्र का अर्थ है, वह रात जिसकी क़द्र की जाए। यह रात जाग कर अल्लाह की इबादत में गुज़ार दी जाती है।

ख़ुशी का दिन

[[चित्र:Fenni-mathura.jpg|thumb|220px|फ़ेनी बनती हुई, मथुरा]] यह ख़ुशी ख़ासतौर से इसलिए भी है कि रमज़ान का महीना जो एक तरह से परीक्षा का महीना है, वह अल्लाह के नेक बंदों ने पूरी अक़ीदत (श्रद्धा), ईमानदारी व लगन से अल्लाह के हुक़्मों पर चलने में गुज़ारा। इस कड़ी आजमाइश के बाद का तोहफ़ा ईद है। पुस्तकों में आया है कि रमज़ान में पूरे रोज़े रखने वाले का तोहफ़ा ईद है। इस दिन अल्लाह की रहमत पूरे जोश पर होती है तथा अपना हुक़्म पूरा करने वाले बंदों को रहमतों की बारिश से भिगो देती है। अल्लाह पाक रमज़ान की इबादतों के बदले अपने नेक बंदों को बख्शे जाने का ऐलान फ़रमा देते हैं। ईद की नमाज़ के जरिए बंदे ख़ुदा का शुक्र अदा करते हैं कि उसने ही हमें रमज़ान का पाक महीना अता किया, फिर उसमें इबादतें करने की तौफ़ीक दी और इसके बाद ईद का तोहफ़ा दिया। तब बंदा अपने माबूद (पूज्य) के दरबार में पहुंचकर उसका शुक्र अदा करता है। सही मायनों में तो ये मन्नतें पूरी होने का दिन है। इन मन्नतों के साथ तो ऊपर वाले के सामने सभी मंगते बनने को तैयार हो जाते हैं। उस रहीमो-करीम (अत्यंत कृपावान) की असीम रहमतों की आस लेकर एक माह तक मुसलसल इम्तिहान देते रहे। कोशिश करते रहे कि उसने जो आदेश दिए हैं उन्हें हर हाल में पूरा करते रहें। चाहे वह रोज़ों की शक्ल में हो, सहरी या इफ़्तार की शक्ल में। तरावीह की शक्ल में या जकात-फ़ित्रे की शक्ल में। इन मंगतों ने अपनी हिम्मत के मुताबिक़ अमल किया, अब ईद के दिन सारे संसार का पालनहार उनको नवाजेगा।[2]


  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 562, परिशिष्ट 'घ' |
  2. 2.0 2.1 2.2 ईद-उल-फित्र : मुरादें पूरी होने का दिन (हिंदी) वेबदुनिया हिंदी। अभिगमन तिथि: 8 अगस्त, 2013।

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