गणपति उपनिषद: Difference between revisions

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Revision as of 12:04, 10 January 2011

  • अथर्ववेदीय इस उपनिषद में गणपति की ब्रह्म-रूप में उपासना की गयी है।
  • गणपति को वाणी का देवता माना गया है।
  • उन्हें तीन गुणों-सत, रज, तम- से परे माना गया है।
  • गणपति मनुष्य के मूलाधार चक्र में स्थित रहते हैं। इच्छा, क्रिया और ज्ञान आदि शक्तियों के वे एकमात्र आधार हैं। योगी सदैव गणपति की आराधना करते हैं।
  • गणपति की उपासना का बीज मन्त्र 'ॐगम्' (ॐ गणपते नम:) है। इसे महामन्त्र के नाम से जाना जाता हैं गणेश जी की एकदन्त, वक्रतुण्ड और गजानन नाम से पूजा की जाती है।
  • समस्त शुभकर्मों में सबसे पहले गणपति की उपासना का विधान है।
  • गणपति की उपासना से सभी सकंट कट जाते हैं और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।




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