रत्नाकर (डाकू): Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
आदित्य चौधरी (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=रत्नाकर|लेख का नाम=रत्नाकर}} | {{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=रत्नाकर|लेख का नाम=रत्नाकर}} | ||
'''रत्नाकर''' [[महर्षि वाल्मीकि]] का पहला नाम था, जब वह एक डाकू ([[दस्यु]]) का जीवन व्यतीत करते थे। इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प इंसान को रंक से राजा बना सकते हैं और एक अज्ञानी को महान ज्ञानी। [[भारतीय इतिहास]] में आदिकवि महर्षि वाल्मीकि की जीवन कथा भी दृढ़ संकल्प और मजबूत इच्छाशक्ति अर्जित करने की ओर अग्रसर करती है। कभी 'रत्नाकर' के नाम से चोरी और लूटपाट करने वाले वाल्मीकि ने अपने संकल्प से खुद को आदिकवि के स्थान तक पहुँचाया और [[हिन्दू धर्म]] के श्रेष्ठ धार्मिक ग्रंथों में से एक “[[वाल्मीकि रामायण]]” की रचना की। | पौराणिक कथानकों के अनुसार (जो कि सर्वमान्य नहीं है) '''रत्नाकर''' [[महर्षि वाल्मीकि]] का पहला नाम था, जब वह एक डाकू ([[दस्यु]]) का जीवन व्यतीत करते थे। इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प इंसान को रंक से राजा बना सकते हैं और एक अज्ञानी को महान ज्ञानी। [[भारतीय इतिहास]] में आदिकवि महर्षि वाल्मीकि की जीवन कथा भी दृढ़ संकल्प और मजबूत इच्छाशक्ति अर्जित करने की ओर अग्रसर करती है। कभी 'रत्नाकर' के नाम से चोरी और लूटपाट करने वाले वाल्मीकि ने अपने संकल्प से खुद को आदिकवि के स्थान तक पहुँचाया और [[हिन्दू धर्म]] के श्रेष्ठ धार्मिक ग्रंथों में से एक “[[वाल्मीकि रामायण]]” की रचना की। | ||
==पौराणिक कथा== | ==पौराणिक कथा== | ||
एक पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि बनने से पूर्व वाल्मीकि 'रत्नाकर' के नाम से जाने जाते थे तथा परिवार के पालन हेतु लोगों को लूटा करते थे। एक बार उन्हें निर्जन वन में [[नारद मुनि]] मिले, तो रत्नाकर ने उन्हें लूटने का प्रयास किया। तब नारद जी ने रत्नाकर से पूछा कि- "तुम यह निम्न कार्य किसलिए करते हो?" इस पर रत्नाकर ने जवाब दिया कि- "अपने परिवार को पालने के लिए"। इस पर नारद ने प्रश्न किया कि- "तुम जो भी अपराध करते हो और जिस परिवार के पालन के लिए तुम इतने अपराध करते हो, क्या वह तुम्हारे पापों का भागीदार बनने को तैयार होंगे?" इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए रत्नाकर, नारद को पेड़ से बांधकर अपने घर गए। | एक पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि बनने से पूर्व वाल्मीकि 'रत्नाकर' के नाम से जाने जाते थे तथा परिवार के पालन हेतु लोगों को लूटा करते थे। एक बार उन्हें निर्जन वन में [[नारद मुनि]] मिले, तो रत्नाकर ने उन्हें लूटने का प्रयास किया। तब नारद जी ने रत्नाकर से पूछा कि- "तुम यह निम्न कार्य किसलिए करते हो?" इस पर रत्नाकर ने जवाब दिया कि- "अपने परिवार को पालने के लिए"। इस पर नारद ने प्रश्न किया कि- "तुम जो भी अपराध करते हो और जिस परिवार के पालन के लिए तुम इतने अपराध करते हो, क्या वह तुम्हारे पापों का भागीदार बनने को तैयार होंगे?" इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए रत्नाकर, नारद को पेड़ से बांधकर अपने घर गए। |
Revision as of 05:51, 20 February 2016
चित्र:Disamb2.jpg रत्नाकर | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- रत्नाकर |
पौराणिक कथानकों के अनुसार (जो कि सर्वमान्य नहीं है) रत्नाकर महर्षि वाल्मीकि का पहला नाम था, जब वह एक डाकू (दस्यु) का जीवन व्यतीत करते थे। इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प इंसान को रंक से राजा बना सकते हैं और एक अज्ञानी को महान ज्ञानी। भारतीय इतिहास में आदिकवि महर्षि वाल्मीकि की जीवन कथा भी दृढ़ संकल्प और मजबूत इच्छाशक्ति अर्जित करने की ओर अग्रसर करती है। कभी 'रत्नाकर' के नाम से चोरी और लूटपाट करने वाले वाल्मीकि ने अपने संकल्प से खुद को आदिकवि के स्थान तक पहुँचाया और हिन्दू धर्म के श्रेष्ठ धार्मिक ग्रंथों में से एक “वाल्मीकि रामायण” की रचना की।
पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि बनने से पूर्व वाल्मीकि 'रत्नाकर' के नाम से जाने जाते थे तथा परिवार के पालन हेतु लोगों को लूटा करते थे। एक बार उन्हें निर्जन वन में नारद मुनि मिले, तो रत्नाकर ने उन्हें लूटने का प्रयास किया। तब नारद जी ने रत्नाकर से पूछा कि- "तुम यह निम्न कार्य किसलिए करते हो?" इस पर रत्नाकर ने जवाब दिया कि- "अपने परिवार को पालने के लिए"। इस पर नारद ने प्रश्न किया कि- "तुम जो भी अपराध करते हो और जिस परिवार के पालन के लिए तुम इतने अपराध करते हो, क्या वह तुम्हारे पापों का भागीदार बनने को तैयार होंगे?" इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए रत्नाकर, नारद को पेड़ से बांधकर अपने घर गए।
सत्य से परिचय
घर जाकर उन्होंने अपने घर वालों से प्रश्न किया कि- "वह राहगीरों और दूसरे लोगों को लूटकर सभी घरवालों का पालन-पोषण करते हैं। कल को मेरे इस पाप कर्म के लिए जब मुझे दण्ड मिलेगा तो क्या वे मेरे पाप कर्म में भागीदार बनेंगे?" रत्नाकर यह जानकर स्तब्ध रह गए कि परिवार का कोई भी व्यक्ति उनके पाप का भागीदार बनने को तैयार नहीं है। लौटकर उन्होंने नारद के चरण पकड़ लिए। तब नारद मुनि ने कहा कि- "हे रत्नाकर, यदि तुम्हारे परिवार वाले इस कार्य में तुम्हारे भागीदार नहीं बनना चाहते तो फिर क्यों उनके लिए यह पाप करते हो।" इस तरह नारद जी ने इन्हें सत्य के ज्ञान से परिचित करवाया और उन्हें राम-नाम के जप का उपदेश भी दिया, परंतु रत्नाकर 'राम' नाम का उच्चारण नहीं कर पाते थे। तब नारद जी ने विचार करके उनसे 'मरा-मरा' जपने के लिए कहा और 'मरा' रटते-रटते यही 'राम' हो गया और निरंतर जप करते-करते हुए वह ऋषि वाल्मीकि बन गए।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख