वैखानस धर्मसूत्र: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "{{धर्मसूत्र2}} {{धर्मसूत्र}}" to "{{धर्मसूत्र2}} {{संस्कृत साहित्य}} {{धर्मसूत्र}}")
m (Text replace - "==सम्बंधित लिंक==" to "==संबंधित लेख==")
Line 17: Line 17:
**डॉ. कालन्द के द्वारा संपादित तथा अंग्रेज़ी में अनूदित, बिब्लियोथिका इण्डिका, कलकत्ता से सन् 1927 में दो भागों में प्रकाशित संस्करण।
**डॉ. कालन्द के द्वारा संपादित तथा अंग्रेज़ी में अनूदित, बिब्लियोथिका इण्डिका, कलकत्ता से सन् 1927 में दो भागों में प्रकाशित संस्करण।
[[Category:साहित्य कोश]][[Category:सूत्र ग्रन्थ]]
[[Category:साहित्य कोश]][[Category:सूत्र ग्रन्थ]]
==सम्बंधित लिंक==
==संबंधित लेख==
{{धर्मसूत्र2}}
{{धर्मसूत्र2}}
{{संस्कृत साहित्य}}
{{संस्कृत साहित्य}}
{{धर्मसूत्र}}
{{धर्मसूत्र}}
__INDEX__
__INDEX__

Revision as of 19:58, 14 September 2010

  • वैखानस श्रौत एवं गृह्यसूत्रों के प्रसंग में वैखानस (वैष्णव) सम्प्रदाय की विवेचना की जा चुकी है।
  • इस धर्मसूत्र में तीन प्रश्न हैं जिनका विभाजन 51 खण्डों में है। इनमें 365 सूत्र मिलते हैं। प्रवरखण्ड के 68 सूत्र इनसे पृथक हैं।
  • प्रश्न–क्रम से प्रतिपाद्य विषयों का विवरण इस प्रकार हैः–
    • प्रथम प्रश्न– चारों वर्णों और आश्रमों के अधिकारों तथा कर्त्तव्यों का निरूपण।
    • द्वितीय प्रश्न– वानप्रस्थियों से सम्बद्ध अग्नि, जिसमें इसी नाम के अनुष्ठान सम्पन्न होते हैं, का विवरण, सन्यासी के कर्त्तव्यों तथा सन्यास–ग्रहण विधि का निरूपण, सन्यासी के सामान्य आचारों का विधान।
    • तृतीय प्रश्न– गृहस्थ के नियम, निषिद्ध वस्तुएँ तथा कृत्य, वानप्रस्थ के सामान्य धर्म, सन्यासी के सामान्य धर्म, सन्यासी की मृत्यु पर नारायण–बलि, तर्पण इत्यादि। विष्णु के नामों से विहित जातियाँ, व्रात्य।
  • इस धर्मसूत्र में गायत्र, ब्राह्म, प्राजापत्य तथा नैष्ठिक नामों से चार प्रकार के ब्रह्मचारी बतलाए गए हैं। ये हैं– शालीनवृत्ति, वार्तावृत्ति, यायावर तथा घोराचारिक। इनमें से पाकयज्ञ, दर्शपूर्णमास तथा चातुर्मास्यादि यागों के अनुष्ठाता शालीनवृत्ति की श्रेणी में हैं।
  • कृषि से जीविका निर्वाह करने वाले वार्त्ता–वृत्तिपरक माने गए हैं।
  • यायावर अध्ययन–अध्यापन तथा दान–प्रतिग्रह प्रभृति कर्मों से सम्बद्ध हैं।
  • उञ्छवृत्ति के द्वारा जीवन निर्वाह करने वाले घोराचारिक हैं।
  • वानप्रस्थों के भी औदुम्बर, वैरञ्चि, बालखिल्य, फेनप, कालाशिक, उद्दण्ड–संवृत्त, उदग्रफली, उञ्छवृत्ति तथा संदर्शन–वृत्ति इत्यादि बहुसंख्यक प्रभेदों का निरूपण है।
  • मोक्षार्थी भिक्षुओं को भी चार प्रकार निरूपित हैं, ये हैं– कुटीचक, बहूदक, हंस तथा परमहंस।
  • वैखानस धर्मप्रश्न में योग के आठ अंगों और आयुर्वेद के भी आठ अंगों का विवरण है।
  • अन्य धर्मसूत्रों की अपेखा यह अर्वाचीन रचना प्रतीत होती है। इसकी भाषा–शैली विशुद्ध लौकिक संस्कृत है।
  • अभी तक इस पर कोई भी व्याख्या उपलब्ध नहीं हुई है। इसके दो संस्करण प्रकाशित हुए हैं–
    • सन् 1913 में तिरूअनन्तपुरम् (त्रिवेन्द्रम) से टी. गणपति शास्त्री के द्वारा संपादित संस्करण।
    • डॉ. कालन्द के द्वारा संपादित तथा अंग्रेज़ी में अनूदित, बिब्लियोथिका इण्डिका, कलकत्ता से सन् 1927 में दो भागों में प्रकाशित संस्करण।

संबंधित लेख

श्रुतियाँ