आत्मबोधोपनिषद

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 13:51, 30 June 2017 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replacement - " जगत " to " जगत् ")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

'ॠग्वेद' से सम्बन्धित इस उपनिषद में दो अध्याय हैं।

  1. प्रथम अध्याय में 'ॐकार'-रूपी नारायण की उपासना की गयी है।
  2. दूसरे अध्याय में आत्म साक्षात्कार प्राप्त साधकों की अध्यात्म सम्बन्धी अनुभूतियों का उल्लेख है। आत्मानुभूति की इस अवस्था में समस्त लौकिक बन्धनों और भेद-भावों का अस्तित्व समाप्त हो जाता है तथा अहम का नाश होते ही साधक मोक्ष प्राप्त कर लेता है।

प्रथम अध्याय

इसमें साधक प्रार्थना करता है-शंख, चक्र एवं गदा को धारण करने वाले प्रभु! आप नारायण स्वरूप हैं। आपको नमस्कार। 'ॐ नमो नारायणाय' नामक मन्त्र का जाप करने वाला व्यक्ति प्रभु के वैकुण्ठधाम को प्राप्त करता है। हमारा हृदय-रूपी कमल ही 'ब्रह्मपुर' है। यह सदैव दीपक की भांति प्रकाशमान रहता है। कमल नेत्र भगवान विष्णु ब्राह्मणों के शुभचिन्तक हैं। समस्त जीवों में स्थित रहने वाले भगवान नारायण ही कारण-रहित परब्रह्म विराट-रूप पुरुष हैं। वे प्रणव-रूप 'ॐकार' हैं। [1] भगवान विष्णु का ध्यान करने वाला, समस्त शोक-मोह से मुक्त हो जाता हैं। मृत्यु का भय उसे कभी नहीं सताता। हे प्रभु! जिस लोक में सभी प्राणियों की आत्माएं आपकी दिव्य ज्योति में स्थिर रहती हैं, आप उस लोक में मुझे भी स्थान प्रदान करें।

दूसरा अध्याय

इस अध्याय में आत्म साक्षात्कार करने वाला साधक अहंकार से मुक्त हो जाता है। उसके सम्मुख जगत् और ईश्वर का भेद मिट जाता है। वह परात्पर ब्रह्म के ज्ञान-स्वरूप को प्राप्त कर लेता है। वह अजर-अमर हो जाता है। वह शुद्ध, अद्वैत और आत्मतत्त्व हो जाता है। आनन्द का साक्षात प्रतिरूप बन जाता है-मैं पवित्र, अन्तरात्मा हूं तथा मैं ही सनातन विज्ञान का पूर्ण रस 'आत्मतत्त्व' हूं। शोध किया जाने वाला परात्पर आत्मतत्त्व हूं और मैं ही ज्ञान एवं आनन्द की एकमात्र मूर्ति हूं।[2] वास्तव में आत्म साक्षात्कार कर लेने वाला प्राणी संसार के समस्त प्रपंचों से मुक्त हो जाता है। विषय-वासनाओं की उसे इच्छा नहीं रहती। विष और अमृत को देखकर वह विष का परित्याग कर देता है। परमात्मा का साक्षी हो जाने के उपरान्त, शरीर के नष्ट होने पर भी वह नष्ट नहीं होता। वह नित्य, निर्विकार और स्वयं प्रकाश हो जाता है। जैसे दीपक की छोटी-सी ज्योति भी अन्धकार को नष्ट कर देती है। वह सत्य-स्वरूप आनन्दघन बन जाता है।

  • ऋषि का कहना है कि इस आत्मबोध उपनिषद का जो व्यक्ति कुछ क्षण के लिए भी स्मरण करता है, वह जीवनमुक्त होकर आवागमन के चक्र से सदैव के लिए छूट जाता है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अर्थात'ॐ नमो नारायणाय शंखचक्रगदाधराय तस्मात् ॐ नमो नारायणायेति मन्त्रोपास को बैकुण्ठभुवनं गमिष्यति।'
  2. 'शुद्धोऽहमान्तरोऽहंशाश्वतविज्ञानसमरसात्माहम्। शोधितपरतत्त्वोऽहं बोधानन्दैकमूर्तिरेवाहम्॥10॥'


संबंधित लेख

श्रुतियाँ


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः