जैमिनीय श्रौतसूत्र: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
 
Line 18: Line 18:
{{संस्कृत साहित्य}}
{{संस्कृत साहित्य}}
{{श्रौतसूत्र}}
{{श्रौतसूत्र}}
[[Category:साहित्य कोश]][[Category:सूत्र ग्रन्थ]]
[[Category:साहित्य कोश]][[Category:सूत्र ग्रन्थ]][[Category:संस्कृत साहित्य]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 06:39, 14 October 2011

सामवेद की जैमिनीय शाखा अत्यन्त समृद्ध है। इसके गान ग्रन्थ, ब्राह्मण, श्रौतसूत्र परिशेष एवं गृह्यसूत्र आदि सभी ग्रन्थ उपलब्ध हैं। जैमिनीय श्रौतसूत्र तीन खण्डों में विभक्त है– सूत्र कल्प तथा पर्यध्याय जो पुन: 18 अध्यायों में विभाजित हैं। सूत्रखण्ड अत्यन्त लघु है, जिसमें लम्बे–लम्बे वाक्यों से युक्त 26 कण्डिकाओं में ज्योतिष्टोम, अग्न्याधान तथा अग्निचयन से सम्बद्ध सामों का विवरण प्रदत्त है।

सोमयाग

कल्पखण्ड कौथुमीयय मशककल्प के समानान्तर प्रणीत प्रतीत होता है। इसमें अनेक उपख्ण्ड हैं। स्तोत्रकल्प में विभिन्न स्तोत्रों के लिए स्तोत्रों का विवरण है। समस्त सोमयागों के याग–दिवसों और यज्ञानुष्ठान के क्रम का वर्णन भी है। प्रकृतिकल्प (अथवा प्राकृत) में एकाहों, अहीनों तथा सत्रयागों की प्रकृतियों (क्रमश: ज्योतिष्टोम, द्वादशाह तथा गवामयन) में प्रयोज्य सामों का विवरण है। संज्ञाकल्प में परिभाषिक शब्दों की व्याख्या की गई है। 'विकृतिकल्प' में एकाहों, अहीनों और सोमयागों की विकृतियों का सामगान की दृष्टि से निरूपण है।

सामगान

पर्यध्याय या परिशेष खण्ड के 12 अध्यायों में यज्ञीय दिनों का तन्त्र, सामगान के विभिन्न नियमों (आविर्गान, छन्नागान तथा लेशगान), सामगान की विभिन्न विभक्तियों, विभाज्य सामों, ऊहन प्रक्रिया इत्यादि का विवरण है। इस प्रकार जैमिनीय श्रौतसूत्र में सोमयागों के समग्र कर्मकाण्ड की विशद प्रस्तुति दिखलाई देती है।

शैली

परम्परा से यह जैमिनीय प्रणीत माना जाता है। इसकी शैली ब्राह्मण–ग्रन्थों के सदृश है। कौथुमशाखीय श्रौतसूत्रों के व्याख्याकारों ने भी इसे बहुधा उद्धृत किया है। बौधायन श्रौतसूत्र के साथ जैमिनीय श्रौतसूत्र का घनिष्ठ सम्बन्ध प्रतीत होता है। अद्यावधि जैमिनीय शाखानुयायी अपने यागों में बौधायन शाखीय अध्वर्यु को ही स्थान देते हैं। ताण्ड्य को भी जैमिनीय श्रौतसूत्र में उद्धृत किया गया है।

व्याख्याकार

जैमिनीय श्रौतसूत्र पर भवत्रात की वृत्ति प्राचीनतम होने के साथ ही अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भी है। भवत्रात के पिता मातृदत्त हिरण्यकेशियों के श्रौत एवं गृह्यसूत्रों के प्रतिष्ठित व्याख्याकार थे। भवत्रात स्वयं 'वृत्ति' पूर्ण नहीं कर सके थे। यह कार्य जयन्त भारद्वाज ने किया जो उनके भागिनेय, शिष्य और जामाता भी थे। भवत्रात की व्याख्या के अतिरिक्त जैमिनीय श्रौतसूत्र पर कतपय कारिकाग्रन्थ (वैनतेयकारिका–215 कारिकाओं से युक्त तथा 116 कारिकाओं से युक्त अन्य ग्रन्थ) प्रयोग और पद्धतियाँ भी उपलब्ध हैं।

संस्करण

  • ड्यूक गास्ट्रा ने सन् 1906 ई. में डचभाषा में अनुवाद के साथ अग्निष्टोमान्त प्रकरण को प्रकाशित कराया था।
  • प्रेमनिधि शास्त्री ने भवत्रातकृत वृत्ति को सरसवती विहार ग्रन्थमाला, दिल्ली से सन् 1966 ई. में प्रकाकशित कराया है।
  • प्रो. असको परपोला ने सम्पूर्ण जैमिनीय श्रौतसूत्र के सूत्रपाठ की उपलब्धि की सूचना दी है।

संबंधित लेख

श्रुतियाँ