वृषपर्वा: Difference between revisions
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==महाभारत के अनुसार== | |||
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वे कहीं तो पैदल चलते थे, कहीं राक्षस लोग उन्हें कन्धे पर बैठाकर ले चलते। इस प्रकार रास्ते में कैलास पर्वत, मैनाक पर्वत और गन्धमादन की तलहटी को, श्वेतगिरि को तथा ऊपर-ऊपर के पहाड़ों की अनेकों निर्मल नदियों को देखते हुए वे सातवें दिन हिमालय के पवित्र पृष्ठ पर पहुँचे। वहाँ उन्होंने राजर्षि वृषपर्वा का पवित्र आश्रम देखा। पांडवों ने उस आश्रम में पहुँचकर राजर्षि वृषपर्वा को प्रणाम किया। राजर्षि ने पुत्रों के समान उनका अभिनन्दन किया। पांडवों ने वहाँ सात रात निवास किया। आठवें दिन उन्होंने वृषपर्वा जी से आगे जाने की इच्छा प्रकट की। चलते समय वृषपर्वा ने [[पांडव|पांडवों]] को पुत्रों की तरह उपदेश दिया। फिर उनकी आज्ञा लेकर वे उत्तर दिशा को चले।<ref>{{cite web |url=http://mahabhatatastories.blogspot.in/2015/09/blog-post_82.html|title=पाण़्डवों का वृषपर्वा और आर्ष्टिषेण के आश्रमों पर जाना |accessmonthday=17 दिसम्बर|accessyear=2015|last= |first= |authorlink=उषा सिंह|format= |publisher=MAHABHARATA STORIES|language=हिन्दी}}</ref> | |||
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चित्र:Disamb2.jpg वृषपर्वा | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- वृषपर्वा (बहुविकल्पी) |
वृषपर्वा का उल्लेख हिन्दू पौराणिक ग्रन्थ महाभारत में हुआ है। महाभारत के अनुसार ये एक राज ऋषि थे।[1]
महाभारत के अनुसार
जटासुर के मारे जाने पर महाराज युधिष्ठिर श्रीनर-नारायण के आश्रम में आकर रहने लगे थे। इस समय बाद उन्हें अपने भाई अर्जुन का स्मरण हो आया। वे द्रौपदी सहित सब भाइयों को बुलाकर कहने लगे- "अर्जुन ने मुझसे कहा था कि मैं पाँच वर्ष तक स्वर्ग में अस्त्र विद्या सीखने के बाद यहाँ मृत्युलोक में लौट आऊँगा। इसलिये अर्जुन जब अस्त्रविद्या सीखकर यहाँ आवे, उस समय हम लोगों को उससे मिलने के लिये तैयार रहना चाहिये।" इस प्रकार बातचीत करते हुए उन्होंने आगे के लिये प्रस्थान किया।
वे कहीं तो पैदल चलते थे, कहीं राक्षस लोग उन्हें कन्धे पर बैठाकर ले चलते। इस प्रकार रास्ते में कैलास पर्वत, मैनाक पर्वत और गन्धमादन की तलहटी को, श्वेतगिरि को तथा ऊपर-ऊपर के पहाड़ों की अनेकों निर्मल नदियों को देखते हुए वे सातवें दिन हिमालय के पवित्र पृष्ठ पर पहुँचे। वहाँ उन्होंने राजर्षि वृषपर्वा का पवित्र आश्रम देखा। पांडवों ने उस आश्रम में पहुँचकर राजर्षि वृषपर्वा को प्रणाम किया। राजर्षि ने पुत्रों के समान उनका अभिनन्दन किया। पांडवों ने वहाँ सात रात निवास किया। आठवें दिन उन्होंने वृषपर्वा जी से आगे जाने की इच्छा प्रकट की। चलते समय वृषपर्वा ने पांडवों को पुत्रों की तरह उपदेश दिया। फिर उनकी आज्ञा लेकर वे उत्तर दिशा को चले।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस.पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 101 |
- ↑ पाण़्डवों का वृषपर्वा और आर्ष्टिषेण के आश्रमों पर जाना (हिन्दी) MAHABHARATA STORIES। अभिगमन तिथि: 17 दिसम्बर, 2015।
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