अशोक (सारथि): Difference between revisions
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*जब कलिंग सेना के अग्रभाग में [[श्रुतायु|राजा श्रुतायु]] को देखकर भीमसेन उनका सामना करने के लिये आगे बढ़े तो उन्हें आते देख अमेय आत्मबल से सम्पन्न कलिंगराज श्रुतायु ने भीमसेन की छाती में दो [[बाण अस्त्र|बाण]] मारे। | *जब कलिंग सेना के अग्रभाग में [[श्रुतायु|राजा श्रुतायु]] को देखकर भीमसेन उनका सामना करने के लिये आगे बढ़े तो उन्हें आते देख अमेय आत्मबल से सम्पन्न कलिंगराज श्रुतायु ने भीमसेन की छाती में दो [[बाण अस्त्र|बाण]] मारे। | ||
*कलिंगराज के बाणों से आहत हो भीमसेन अंकूश की मार खाये हुए हाथी के समान क्रोध से जल उठे, मानो घी की आहुति पाकर आग प्रज्वलित हो उठी हो। इसी समय भीमसेन के | *कलिंगराज के बाणों से आहत हो भीमसेन अंकूश की मार खाये हुए हाथी के समान क्रोध से जल उठे, मानो घी की आहुति पाकर आग प्रज्वलित हो उठी हो। इसी समय भीमसेन के सारथि अशोक ने एक सुवर्णभूषित रथ लेकर उसे भीम के पास पहुंचा कर उन्हें भी रथ से सम्पन्न कर दिया। | ||
*बलवानों में श्रेष्ठ कुन्तीपुत्र भीम ने क्रुद्ध हो अपने सुदृढ़ धनुष को बलपूर्वक खींचकर लोहे के सात बाणों द्वारा कलिंगराज श्रुतायु को घायल कर दिया। तत्पश्चात् दो [[क्षुर]] नामक बाणों से कलिंगराज के चक्ररक्षक महाबली [[सत्यदेव]] तथा सत्य को [[यमलोक]] पहुंचा दिया। इसके बाद अमेय आत्मबल से सम्पन्न [[भीम]] ने तीन तीखे [[नाराच अस्त्र|नाराचों]] द्वारा रणक्षेत्र में [[केतुमान]] को मारकर उसे यमलोक भेज दिया।<ref>महाभारत भीष्म पर्व, अध्याय 54, श्लोक 63-85</ref> | *बलवानों में श्रेष्ठ कुन्तीपुत्र भीम ने क्रुद्ध हो अपने सुदृढ़ धनुष को बलपूर्वक खींचकर लोहे के सात बाणों द्वारा कलिंगराज श्रुतायु को घायल कर दिया। तत्पश्चात् दो [[क्षुर]] नामक बाणों से कलिंगराज के चक्ररक्षक महाबली [[सत्यदेव]] तथा सत्य को [[यमलोक]] पहुंचा दिया। इसके बाद अमेय आत्मबल से सम्पन्न [[भीम]] ने तीन तीखे [[नाराच अस्त्र|नाराचों]] द्वारा रणक्षेत्र में [[केतुमान]] को मारकर उसे यमलोक भेज दिया।<ref>महाभारत भीष्म पर्व, अध्याय 54, श्लोक 63-85</ref> | ||
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अशोक पौराणिक महाकाव्य महाभारत के उल्लेखानुसार पांडुकुमार महाबली भीमसेन का सारथि था। महाभारत में भीष्म पर्व के अंतर्गत इसका नामोल्लेख हुआ है।
- 'महाभारत भीष्म पर्व' में 'भीष्मवध पर्व' के अंतर्गत 54वें अध्याय में भीमसेन द्वारा कई गजराजों, भानुमान, शक्रदेव और केतुमान के वध का वर्णन हुआ है।
- जब कलिंग सेना के अग्रभाग में राजा श्रुतायु को देखकर भीमसेन उनका सामना करने के लिये आगे बढ़े तो उन्हें आते देख अमेय आत्मबल से सम्पन्न कलिंगराज श्रुतायु ने भीमसेन की छाती में दो बाण मारे।
- कलिंगराज के बाणों से आहत हो भीमसेन अंकूश की मार खाये हुए हाथी के समान क्रोध से जल उठे, मानो घी की आहुति पाकर आग प्रज्वलित हो उठी हो। इसी समय भीमसेन के सारथि अशोक ने एक सुवर्णभूषित रथ लेकर उसे भीम के पास पहुंचा कर उन्हें भी रथ से सम्पन्न कर दिया।
- बलवानों में श्रेष्ठ कुन्तीपुत्र भीम ने क्रुद्ध हो अपने सुदृढ़ धनुष को बलपूर्वक खींचकर लोहे के सात बाणों द्वारा कलिंगराज श्रुतायु को घायल कर दिया। तत्पश्चात् दो क्षुर नामक बाणों से कलिंगराज के चक्ररक्षक महाबली सत्यदेव तथा सत्य को यमलोक पहुंचा दिया। इसके बाद अमेय आत्मबल से सम्पन्न भीम ने तीन तीखे नाराचों द्वारा रणक्षेत्र में केतुमान को मारकर उसे यमलोक भेज दिया।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 40 |
- ↑ महाभारत भीष्म पर्व, अध्याय 54, श्लोक 63-85
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