सुप्रतीक: Difference between revisions
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*भगदत्त का छोड़ा हुआ अस्त्र सबका विनाश करने वाला था। [[कृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] ने अर्जुन को ओट में करके स्वयं ही अपनी छाती पर उसकी चोट सह ली।<ref>[[महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 29 श्लोक 1-18]]</ref> | *भगदत्त का छोड़ा हुआ अस्त्र सबका विनाश करने वाला था। [[कृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] ने अर्जुन को ओट में करके स्वयं ही अपनी छाती पर उसकी चोट सह ली।<ref>[[महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 29 श्लोक 1-18]]</ref> | ||
*श्रीकृष्ण से अर्जुन से कहा- "मैंने तुम्हारी रक्षा के लिये भगदत्त के उस अस्त्र को दूसरे प्रकार से उसके पास से हटा दिया है। [[पार्थ]]! अब वह | *श्रीकृष्ण से अर्जुन से कहा- "मैंने तुम्हारी रक्षा के लिये भगदत्त के उस अस्त्र को दूसरे प्रकार से उसके पास से हटा दिया है। [[पार्थ]]! अब वह महान् असुर उस उत्कृष्ट अस्त्र से वंचित हो गया है। अत: तुम उसे मार डालो।"<ref>[[महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 29 श्लोक 36-51]]</ref> | ||
*महात्मा केशव के ऐसा कहने पर कुन्तीकुमार [[अर्जुन]] उसी समय [[भगदत्त (नरकासुर पुत्र)|भगदत्त]] पर सहसा पैने बाणों की वर्षा करने लगे। | *महात्मा केशव के ऐसा कहने पर कुन्तीकुमार [[अर्जुन]] उसी समय [[भगदत्त (नरकासुर पुत्र)|भगदत्त]] पर सहसा पैने बाणों की वर्षा करने लगे। | ||
*महाबाहु महामना पार्थ ने बिना किसी घबराहट के भगदत्त के पराक्रमी हाथी '''सुप्रतीक''' के कुम्भस्थल में एक [[नाराच अस्त्र|नाराच]] का प्रहार किया। वह नाराच उस हाथी के मस्तक पर पहुँचकर उसी प्रकार लगा, जैसे [[वज्र अस्त्र|वज्र]] पर्वत पर चोट करता है। जैसे सर्प बाँबी में समा जाता है, उसी प्रकार वह बाण हाथी के कुम्भस्थल में पंख सहित घुस गया। | *महाबाहु महामना पार्थ ने बिना किसी घबराहट के भगदत्त के पराक्रमी हाथी '''सुप्रतीक''' के कुम्भस्थल में एक [[नाराच अस्त्र|नाराच]] का प्रहार किया। वह नाराच उस हाथी के मस्तक पर पहुँचकर उसी प्रकार लगा, जैसे [[वज्र अस्त्र|वज्र]] पर्वत पर चोट करता है। जैसे सर्प बाँबी में समा जाता है, उसी प्रकार वह बाण हाथी के कुम्भस्थल में पंख सहित घुस गया। | ||
*वह हाथी बारंबार भगदत्त के हाँकने पर भी उसकी आज्ञा का पालन नहीं करता था, जैसे दुष्टा स्त्री अपने दरिद्र स्वामी की बात नहीं मानती है। | *वह हाथी बारंबार भगदत्त के हाँकने पर भी उसकी आज्ञा का पालन नहीं करता था, जैसे दुष्टा स्त्री अपने दरिद्र स्वामी की बात नहीं मानती है। | ||
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Latest revision as of 11:15, 1 August 2017
सुप्रतीक का उल्लेख हिन्दू पौराणिक ग्रंथ महाभारत में हुआ है। यह भगदत्त के हाथी का नाम था, जो अदभुत पराक्रमी था।[1]
- महाभारत द्रोण पर्व में उल्लेख मिलता है कि जब भगवत्त और अर्जुन का घमासान युद्ध चल रहा था, तब अर्जुन ने भगदत्त के धनुष को काटकर उसके तूणीरों के भी टुकड़े-टुकड़े कर दिये। फिर तुरंत ही बहत्तर बाणों से उसके सम्पूर्ण मर्मस्थानों में गहरी चोट पहुँचायी।
- अर्जुन के उन बाणों से घायल होकर अत्यन्त पीड़ित हो भगदत्त ने वैष्णवास्त्र प्रकट किया। उसने कुपित हो अपने अंकुश को ही वैष्णवास्त्र से अभिमन्त्रित करके पाण्डुनन्दन अर्जुन की छाती पर छोड़ दिया।
- भगदत्त का छोड़ा हुआ अस्त्र सबका विनाश करने वाला था। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ओट में करके स्वयं ही अपनी छाती पर उसकी चोट सह ली।[2]
- श्रीकृष्ण से अर्जुन से कहा- "मैंने तुम्हारी रक्षा के लिये भगदत्त के उस अस्त्र को दूसरे प्रकार से उसके पास से हटा दिया है। पार्थ! अब वह महान् असुर उस उत्कृष्ट अस्त्र से वंचित हो गया है। अत: तुम उसे मार डालो।"[3]
- महात्मा केशव के ऐसा कहने पर कुन्तीकुमार अर्जुन उसी समय भगदत्त पर सहसा पैने बाणों की वर्षा करने लगे।
- महाबाहु महामना पार्थ ने बिना किसी घबराहट के भगदत्त के पराक्रमी हाथी सुप्रतीक के कुम्भस्थल में एक नाराच का प्रहार किया। वह नाराच उस हाथी के मस्तक पर पहुँचकर उसी प्रकार लगा, जैसे वज्र पर्वत पर चोट करता है। जैसे सर्प बाँबी में समा जाता है, उसी प्रकार वह बाण हाथी के कुम्भस्थल में पंख सहित घुस गया।
- वह हाथी बारंबार भगदत्त के हाँकने पर भी उसकी आज्ञा का पालन नहीं करता था, जैसे दुष्टा स्त्री अपने दरिद्र स्वामी की बात नहीं मानती है।
- उस महान् गजराज ने अपने अंगों को निश्चेष्ट करके दोनों दाँत धरती पर टेक दिये और आर्त स्वर से चीत्कार करके प्राण त्याग दिये।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 527 |
- ↑ महाभारत भीष्म पर्व 95.24-86
- ↑ महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 29 श्लोक 1-18
- ↑ महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 29 श्लोक 36-51