उग्रचंडा: Difference between revisions
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Latest revision as of 11:06, 30 June 2018
उग्रचंडा अथवा 'उग्रचंडी' हिन्दू धर्म में मान्य देवी भगवती के ही एक विशेष रूप का नाम है, जिनकी पूजा आश्विन माह में कृष्ण पक्ष की नवमी को होती है। पौराणिक धर्म ग्रंथों में भी इनका उल्लेख हुआ है।[1] देवी उग्रचंडा की भुजाओं की संख्या 18 मानी जाती है।
कथा
- 'कालिकापुराण' के अनुसार दक्ष प्रजापति ने आषाढ़ की पूर्णिमा को एक बारह वर्षों का यज्ञ प्रारम्भ किया था, जिसमें उन्होंने न तो अपनी पुत्री सती को और न ही अपने जामाता भगवान शिव को निमन्त्रण दिया।
- इस पर भी सती पुत्री होने के नाते बिना निमन्त्रण के ही यज्ञ में सम्मिलित होने को चली गईं।
- सती के समक्ष ही दक्ष ने भगवान शिव की कटु शब्दों में निन्दा की और उनका बहुत अपमान किया, जिसे सहन न करने के कारण सती ने वहीं पर यज्ञ की अग्नि में कूदकर आत्मदाह कर लिया।
- देवी सती के आत्मदाह का समाचार पाते ही शंकर अपने गणों सहित वहाँ गये। सती ने 'उग्रचंडी' का रूप धारण कर पति के अनुचरों की सहायता से दक्ष के यज्ञ का विनाश किया।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पौराणिक कोश |लेखक: राणाप्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, आज भवन, संत कबीर मार्ग, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 56 |
- ↑ कालिकापुराण तथा ब्रह्मपुराण-40.2-100