सामवेद: Difference between revisions

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Revision as of 20:14, 14 September 2010

‘साम‘ शब्द का अर्थ है ‘गान‘। सामवेद में संकलित मंत्रों को देवताओं की स्तुति के समय गाया जाता था। सामवेद में कुल 1875 ऋचायें हैं। जिनमें 75 से अतिरिक्त शेष ऋग्वेद से ली गयी हैं। इन ऋचाओं का गान सोमयज्ञ के समय ‘उदगाता‘ करते थे। सामदेव की तीन महत्वपूर्ण शाखायें हैं-

  1. कौथुमीय,
  2. जैमिनीय एवं
  3. राणायनीय।

देवता विषयक विवेचन की दृष्ठि से सामवेद का प्रमुख देवता ‘सविता‘ या ‘सूर्य‘ है, इसमें मुख्यतः सूर्य की स्तुति के मंत्र हैं किन्तु इंद्र सोम का भी इसमें पर्याप्त वर्णन है। भारतीय संगीत के इतिहास के क्षेत्र में सामवेद का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसे भारतीय संगीत का मूल कहा जा सकता है। सामवेद का प्रथम द्रष्टा वेदव्यास के शिष्य जैमिनि को माना जाता है।

  • सामवेद से तात्पर्य है कि वह ग्रन्थ जिसके मन्त्र गाये जा सकते हैं और जो संगीतमय हों।
  • यज्ञ, अनुष्ठान और हवन के समय ये मन्त्र गाये जाते हैं।
  • सामवेद में मूल रूप से 99 मन्त्र हैं और शेष ॠग्वेद से लिये गये हैं।
  • इसमें यज्ञानुष्ठान के उद्गातृवर्ग के उपयोगी मन्त्रों का संकलन है।
  • इसका नाम सामवेद इसलिये पड़ा है कि इसमें गायन-पद्धति के निश्चित मन्त्र ही हैं।
  • इसके अधिकांश मन्त्र ॠग्वेद में उपलब्ध होते हैं, कुछ मन्त्र स्वतन्त्र भी हैं।
  • सामवेद में ॠग्वेद की कुछ ॠचाएं आकलित है।
  • वेद के उद्गाता, गायन करने वाले जो कि सामग (साम गान करने वाले) कहलाते थे। उन्होंने वेदगान में केवल तीन स्वरों के प्रयोग का उल्लेख किया है जो उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित कहलाते हैं।
  • सामगान व्यावहारिक संगीत था। उसका विस्तृत विवरण उपलब्ध नहीं हैं।
  • वैदिक काल में बहुविध वाद्य यंत्रों का उल्लेख मिलता है जिनमें से
  1. तंतु वाद्यों में कन्नड़ वीणा, कर्करी और वीणा,
  2. घन वाद्य यंत्र के अंतर्गत दुंदुभि, आडंबर,
  3. वनस्पति तथा सुषिर यंत्र के अंतर्गतः तुरभ, नादी तथा
  4. बंकुरा आदि यंत्र विशेष उल्लेखनीय हैं।

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