त्रिजट मुनि
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 07:27, 27 July 2012 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replace - "{{लेख प्रगति |आधार=आधार1 |प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}" to "{{लेख प्रगति |आधार= |प्रारम्भि�)
वनगमन से पूर्व राम ने अपनी समस्त धनराशि निर्धन ब्रह्मणों में बांटनी प्रारंभ कर दी, तब त्रिजट की पत्नी ने त्रिजट के पास जाकर कहा- 'फाल, कुदाल छोड़कर तुम बच्चों का हाथ थामो और श्रीराम के पास जाकर देखो, शायद कुछ मिल जाये।' उसने ऐसा ही किया। राम ने उससे परिहास में कहा- 'हे ब्राह्मणदेव, सरयू नदी के उस पार मेरी हज़ारों गायें हैं। आप एक दंड उठाकर फेंकिए, वह जितनी दूर गिरेगा, उतनी दूर तक की समस्त गायें आपकी हो जायेंगी।' ऐसा करने पर मुनि त्रिजट का दंड एक हज़ार गायों से युक्त, गोशाला में गिरा, जो कि सरयू नदी के दूसरे पार थी। वे समस्त गायें मुनि त्रिजट की हो गयीं वे राम को आशीर्वाद देकर अपने आश्रम चले गये।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ बाल्मीकि रामायण, अयोध्या कांड, सर्ग 32, श्लोक 28-44
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज