तैत्तिरीय आरण्यक

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 08:23, 21 May 2017 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replacement - "संगृहीत" to "संग्रहीत")
Jump to navigation Jump to search
  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें

तैत्तिरायरण्यक में दस प्रपाठक हैं। इन्हें सामान्यतया 'अरण' संज्ञा प्राप्त है। प्रत्येक प्रपाठक का नामकरण इनके आद्य पद से किया जाता है, जो क्रमशः इस प्रकार हैं–

  • 'भद्र,
  • सहवै,
  • चिति,
  • युञ्जते,
  • दवे वै,
  • परे,
  • शिक्षा,
  • ब्रह्मविद्या,
  • भृगु तथा
  • नारायणीय।

इनमें से प्रथम प्रपाठक को 'भद्र' नाम से अभिहित किया जाता है, क्योंकि उसका प्रारम्भ 'भद्रं कर्णोभिः क्षृणुयाम देवाः' मन्त्र से हुआ है। सप्तम, अष्टम और नवम प्रपाठकों को मिलाकर तैत्तिरीय उपनिषद् समाप्त हो जाती है। दशम प्रपाठक की प्रसिद्ध 'महानारायणीय उपनिषद्' के रूप में है। इस प्रकार व्यावहारिक दृष्टि से मूल आरण्यक छः प्रपाठकों में ही हैं। प्रपाठकों का अवान्तर विभाजन अनुवाकों में है। प्रथम छः प्रपाठकों की अनुवाक–संख्या इस प्रकार है–32+20+21+42+12+12=139।

  • प्रथम प्रपाठक में आरुणकेतुक नामक अग्नि की उपासना तथा तदर्थ इष्टकाचयन का निरूपण है।
  • द्वितीय प्रपाठक में स्वाध्याय तथा पञ्चमहायज्ञों का वर्णन है। इसी प्रसंग में, सर्वप्रथम यज्ञोपवीत का विधान है। द्वितीय अनुवाक में सन्ध्योपासन–सन्धि है। इस प्रपाठक के अनेक अनुवाकों में कूष्माण्डहोम और उससे सम्बद्ध मन्त्र प्रदत्त हैं। देवयज्ञ, पितृयज्ञ, भूतयज्ञ, मनुष्ययज्ञ तथा ब्रह्मयज्ञ संज्ञक पाँच महायज्ञों के दैनिक अनुष्ठान का अभिप्राय है। अग्नि में होम। यदि पुरोडाशादि उपलब्ध न हो, तो केवल समिधाओं से होम कर देना चाहिए। पितरों के लिए स्वधा तथा वायस आदि के निमित्त बलिहरण क्रमशः पितृयज्ञ तथा भूतयज्ञ हैं। एक ही ऋक् या साम के अध्ययन से स्वाध्यायज्ञ सम्पन्न हो जाता है। 11वें अनुवाक में ब्रह्मयज्ञ की विधि दी गई है।
  • तृतीय और चतुर्थ प्रपाठकों में क्रमशः चातुर्होत्रचिति तथा प्रवर्ग्यहोम में उपादेय मन्त्र संग्रहीत है। चतुर्थ में ही अभिचार–मन्त्रों (छिन्धि, भिन्धि, खट्, फट्, जहि) का उल्लेख है।
  • पंचम प्रपाठक में यज्ञीय संकेत हैं।
  • षष्ठ प्रपाठक में पितृमेधसम्बन्धी मन्त्र संकलित हैं।

ब्राह्मणग्रन्थों के समान इसमें कहीं–कहीं निर्वचन भी मिलते हैं। 'कश्यप' का अर्थ है 'सूर्य'। इसे वर्णव्यत्यय के आधार पर 'पश्यक' से निष्पन्न माना गया है।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 'कश्यपः पश्यको भवति। यत्सर्व परिपश्यति इति सौक्ष्यात्' (1.8.8

संबंधित लेख

श्रुतियाँ

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः