सूफ़ी दोहे -अमीर ख़ुसरो: Difference between revisions

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जिसके कपरे रंग दिए सो धन धन वाके भाग।।
जिसके कपरे रंग दिए सो धन धन वाके भाग।।


खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेलूँ पी के संग।
खुसरो बाज़ी प्रेम की मैं खेलूँ पी के संग।
जीत गयी तो पिया मोरे हारी पी के संग।।
जीत गयी तो पिया मोरे हारी पी के संग।।


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पूत पराए कारने जल जल कोयला होय।।
पूत पराए कारने जल जल कोयला होय।।


खुसरवा दर इश्क बाजी कम जि हिन्दू जन माबाश।
खुसरवा दर इश्क बाज़ी कम जि हिन्दू जन माबाश।
कज़ बराए मुर्दा मा सोज़द जान-ए-खेस रा।।
कज़ बराए मुर्दा मा सोज़द जान-ए-खेस रा।।


उज्जवल बरन अधीन तन एक चित्त दो ध्यान।
उज्ज्वल बरन अधीन तन एक चित्त दो ध्यान।
देखत में तो साधु है पर निपट पाप की खान।।
देखत में तो साधु है पर निपट पाप की खान।।


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खुसरो पाती प्रेम की बिरला बाँचे कोय।
खुसरो पाती प्रेम की बिरला बाँचे कोय।
वेद, कुरान, पोथी पढ़े, प्रेम बिना का होय।।
वेद, क़ुरान, पोथी पढ़े, प्रेम बिना का होय।।


संतों की निंदा करे, रखे पर नारी से हेत।
संतों की निंदा करे, रखे पर नारी से हेत।

Latest revision as of 14:25, 25 August 2012

सूफ़ी दोहे -अमीर ख़ुसरो
कवि अमीर ख़ुसरो
जन्म 1253 ई.
जन्म स्थान एटा, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1325 ई.
मुख्य रचनाएँ मसनवी किरानुससादैन, मल्लोल अनवर, शिरीन ख़ुसरो, मजनू लैला, आईने-ए-सिकन्दरी, हश्त विहिश
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
अमीर ख़ुसरो की रचनाएँ

रैनी चढ़ी रसूल की सो रंग मौला के हाथ।
जिसके कपरे रंग दिए सो धन धन वाके भाग।।

खुसरो बाज़ी प्रेम की मैं खेलूँ पी के संग।
जीत गयी तो पिया मोरे हारी पी के संग।।

चकवा चकवी दो जने इन मत मारो कोय।
ये मारे करतार के रैन बिछोया होय।।

खुसरो ऐसी पीत कर जैसे हिन्दू जोय।
पूत पराए कारने जल जल कोयला होय।।

खुसरवा दर इश्क बाज़ी कम जि हिन्दू जन माबाश।
कज़ बराए मुर्दा मा सोज़द जान-ए-खेस रा।।

उज्ज्वल बरन अधीन तन एक चित्त दो ध्यान।
देखत में तो साधु है पर निपट पाप की खान।।

श्याम सेत गोरी लिए जनमत भई अनीत।
एक पल में फिर जात है जोगी काके मीत।।

पंखा होकर मैं डुली, साती तेरा चाव।
मुझ जलती का जनम गयो तेरे लेखन भाव।।

नदी किनारे मैं खड़ी सो पानी झिलमिल होय।
पी गोरी मैं साँवरी अब किस विध मिलना होय।।

साजन ये मत जानियो तोहे बिछड़त मोहे को चैन।
दिया जलत है रात में और जिया जलत बिन रैन।।

रैन बिना जग दुखी और दुखी चन्द्र बिन रैन।
तुम बिन साजन मैं दुखी और दुखी दरस बिन नैंन।।

अंगना तो परबत भयो, देहरी भई विदेस।
जा बाबुल घर आपने, मैं चली पिया के देस।।

आ साजन मोरे नयनन में, सो पलक ढाप तोहे दूँ।
न मैं देखूँ और न को, न तोहे देखन दूँ।

अपनी छवि बनाई के मैं तो पी के पास गई।
जब छवि देखी पीहू की सो अपनी भूल गई।।

खुसरो पाती प्रेम की बिरला बाँचे कोय।
वेद, क़ुरान, पोथी पढ़े, प्रेम बिना का होय।।

संतों की निंदा करे, रखे पर नारी से हेत।
वे नर ऐसे जाऐंगे, जैसे रणरेही का खेत।।

खुसरो सरीर सराय है क्यों सोवे सुख चैन।
कूच नगारा सांस का, बाजत है दिन रैन।।

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