जाबाल्युपनिषद: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (1 अवतरण)
No edit summary
 
(13 intermediate revisions by 7 users not shown)
Line 1: Line 1:
{{menu}}
{{सामवेदीय उपनिषद}}
==जाबाल्युपनिषद==
              
              
'''पशुपति ब्रह्म क्या है?'''
'''पशुपति ब्रह्म क्या है?'''
Line 7: Line 4:
*[[सामवेद]] से सम्बन्धित इस [[उपनिषद]] में मात्र तेईस मन्त्र हैं इसमें पिप्लाद के पुत्र पैप्पलादि और भगवान [[जाबालि]] के मध्य 'परमतत्त्व' से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर हैं।  
*[[सामवेद]] से सम्बन्धित इस [[उपनिषद]] में मात्र तेईस मन्त्र हैं इसमें पिप्लाद के पुत्र पैप्पलादि और भगवान [[जाबालि]] के मध्य 'परमतत्त्व' से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर हैं।  
*इसमें जिन प्रश्नों को पूछा गया है, उनमें प्रमुख प्रश्न हैं-'यह परमतत्त्व क्या है, जीव क्या है, पशु कौन है, ईश कौन है तथा मोक्ष-प्राप्ति का उपाय क्या है?'
*इसमें जिन प्रश्नों को पूछा गया है, उनमें प्रमुख प्रश्न हैं-'यह परमतत्त्व क्या है, जीव क्या है, पशु कौन है, ईश कौन है तथा मोक्ष-प्राप्ति का उपाय क्या है?'
*जाबालि ने साधना द्वारा जिस ज्ञान को प्राप्त किया था, उसे बताते हुए उन्होंने कहा-'हे पिप्पलाद! स्वयं पशुपति ही अहंकार से ग्रस्त होकर जीव बन जाता है। वह पशु के समान हो जाता है। सर्वज्ञ और पंचतत्त्वों- [[पृथ्वी]], [[जल]], [[अग्नि]], [[वायु देव|वायु]] और आकाश- से सम्पन्न, सर्वेश्वर ईश ही पशुपति है। वही 'ब्रह्म' है, वही 'परमतत्त्व' है।'
*जाबालि ने साधना द्वारा जिस ज्ञान को प्राप्त किया था, उसे बताते हुए उन्होंने कहा-'हे पिप्पलाद! स्वयं पशुपति ही अहंकार से ग्रस्त होकर जीव बन जाता है। वह पशु के समान हो जाता है। सर्वज्ञ और [[पंचतत्त्व|पंचतत्त्वों]]- [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]], [[जल]], [[अग्निदेव|अग्नि]], [[वायु देव|वायु]] और आकाश- से सम्पन्न, सर्वेश्वर ईश ही पशुपति है। वही 'ब्रह्म' है, वही 'परमतत्त्व' है।'
*यह उपनिषद [[शैव मत]] से सम्बन्धित है; क्योंकि [[शिव]] को ही पशुपति कहा गया है। शैव मतावलम्बियों द्वारा मस्तक पर त्रिपुण्ड्र धारण कर ओंकार की साधना से 'पशुपति ब्रह्म' को प्राप्त किया जा सकता है।  
*यह उपनिषद [[शैव मत]] से सम्बन्धित है; क्योंकि [[शिव]] को ही पशुपति कहा गया है। शैव मतावलम्बियों द्वारा मस्तक पर [[त्रिपुण्ड्र]] धारण कर ओंकार की साधना से 'पशुपति ब्रह्म' को प्राप्त किया जा सकता है।  


<br />
<br />
==उपनिषद के अन्य लिंक==
==संबंधित लेख==
{{उपनिषद}}
{{संस्कृत साहित्य}}
[[Category: कोश]]
{{सामवेदीय उपनिषद}}
[[Category:उपनिषद]]
[[Category:दर्शन कोश]]
[[Category: पौराणिक ग्रन्थ]]  
[[Category:उपनिषद]][[Category:संस्कृत साहित्य]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 07:55, 20 December 2012

पशुपति ब्रह्म क्या है?

  • सामवेद से सम्बन्धित इस उपनिषद में मात्र तेईस मन्त्र हैं इसमें पिप्लाद के पुत्र पैप्पलादि और भगवान जाबालि के मध्य 'परमतत्त्व' से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर हैं।
  • इसमें जिन प्रश्नों को पूछा गया है, उनमें प्रमुख प्रश्न हैं-'यह परमतत्त्व क्या है, जीव क्या है, पशु कौन है, ईश कौन है तथा मोक्ष-प्राप्ति का उपाय क्या है?'
  • जाबालि ने साधना द्वारा जिस ज्ञान को प्राप्त किया था, उसे बताते हुए उन्होंने कहा-'हे पिप्पलाद! स्वयं पशुपति ही अहंकार से ग्रस्त होकर जीव बन जाता है। वह पशु के समान हो जाता है। सर्वज्ञ और पंचतत्त्वों- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश- से सम्पन्न, सर्वेश्वर ईश ही पशुपति है। वही 'ब्रह्म' है, वही 'परमतत्त्व' है।'
  • यह उपनिषद शैव मत से सम्बन्धित है; क्योंकि शिव को ही पशुपति कहा गया है। शैव मतावलम्बियों द्वारा मस्तक पर त्रिपुण्ड्र धारण कर ओंकार की साधना से 'पशुपति ब्रह्म' को प्राप्त किया जा सकता है।


संबंधित लेख

श्रुतियाँ