नहीं बिश्रांम लहूँ धरनींधर -रैदास: Difference between revisions

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जाकै सुर नर संत सरन अभिअंतर।। टेक।।
जाकै सुर नर संत सरन अभिअंतर।। टेक।।
जहाँ जहाँ गयौ, तहाँ जनम काछै, तृबिधि ताप तृ भुवनपति पाछै।।1।।
जहाँ जहाँ गयौ, तहाँ जनम काछै, तृबिधि ताप तृ भुवनपति पाछै।।1।।
भये अति छीन खेद माया बस, जस तिन ताप पर नगरि हतै तस।।२।।
भये अति छीन खेद माया बस, जस तिन ताप पर नगरि हतै तस।।2।।
द्वारैं न दसा बिकट बिष कारंन, भूलि पर्यौ मन या बिष्या बन।।३।।
द्वारैं न दसा बिकट बिष कारंन, भूलि पर्यौ मन या बिष्या बन।।3।।
कहै रैदास सुमिरौ बड़ राजा, काटि दिये जन साहिब लाजा।।४।।
कहै रैदास सुमिरौ बड़ राजा, काटि दिये जन साहिब लाजा।।4।।
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नहीं बिश्रांम लहूँ धरनींधर -रैदास
कवि रैदास
जन्म 1398 ई. (लगभग)
जन्म स्थान काशी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1518 ई.
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
रैदास की रचनाएँ

नहीं बिश्रांम लहूँ धरनींधर।
जाकै सुर नर संत सरन अभिअंतर।। टेक।।
जहाँ जहाँ गयौ, तहाँ जनम काछै, तृबिधि ताप तृ भुवनपति पाछै।।1।।
भये अति छीन खेद माया बस, जस तिन ताप पर नगरि हतै तस।।2।।
द्वारैं न दसा बिकट बिष कारंन, भूलि पर्यौ मन या बिष्या बन।।3।।
कहै रैदास सुमिरौ बड़ राजा, काटि दिये जन साहिब लाजा।।4।।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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