ऐसैं मोहिं और कौन पहिंचानै -सूरदास: Difference between revisions
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ऐसैं मोहिं और कौन पहिंचानै। | ऐसैं मोहिं और कौन पहिंचानै। | ||
सुनि री सुंदरि, दीनबंधु बिनु कौन मिताई<ref>मित्रता।</ref> मानै॥ | सुनि री सुंदरि, दीनबंधु बिनु कौन मिताई<ref>मित्रता।</ref> मानै॥ | ||
कहं हौं कृपन<ref>दीन, | कहं हौं कृपन<ref>दीन, ग़रीब।</ref> कुचील<ref>मैले कपड़े पहनने वाला।</ref> कुदरसन,<ref>कुरूप।</ref> कहं जदुनाथ गुसाईं। | ||
भैंट्यौ हृदय लगाइ प्रेम सों उठि अग्रज की नाईं॥ | भैंट्यौ हृदय लगाइ प्रेम सों उठि अग्रज की नाईं॥ | ||
निज आसन बैठारि परम रुचि, निजकर चरन पखारे। | निज आसन बैठारि परम रुचि, निजकर चरन पखारे। |
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ऐसैं मोहिं और कौन पहिंचानै। |
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |