चरन कमल बंदौ हरि राई -सूरदास: Difference between revisions
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चरन कमल बंदौ हरि राई।<ref>राजा।</ref> | चरन कमल बंदौ हरि राई।<ref>राजा।</ref> | ||
जाकी कृपा पंगु<ref>लंगड़ा।</ref> गिरि लंघै,<ref>लांघ जाता है, पार कर जाता है।</ref> आंधर कों सब कछु दरसाई॥ | जाकी कृपा पंगु<ref>लंगड़ा।</ref> गिरि लंघै,<ref>लांघ जाता है, पार कर जाता है।</ref> आंधर कों सब कछु दरसाई॥ | ||
बहिरो सुनै, मूक<ref>गूंगा।</ref> पुनि बोलै, रंक<ref>निर्धन, | बहिरो सुनै, मूक<ref>गूंगा।</ref> पुनि बोलै, रंक<ref>निर्धन, ग़रीब, कंगा</ref> चले सिर छत्र धराई।<ref>राज-छत्र धारण करके।</ref> | ||
सूरदास स्वामी करुनामय, बार-बार बंदौं तेहि<ref>तिनके।</ref> पाई॥<ref>चरण।</ref> | सूरदास स्वामी करुनामय, बार-बार बंदौं तेहि<ref>तिनके।</ref> पाई॥<ref>चरण।</ref> | ||
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |