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'''उशना''' [[पृथुश्रवा]] का [[पौत्र]] तथा [[सुयज्ञ]] का [[पुत्र]] था, जो सर्वश्रेष्ठ धर्मात्मा था।
'''उशना''' [[पृथुश्रवा]] का [[पौत्र]] तथा [[सुयज्ञ]] का [[पुत्र]] था, जो प्रख्यात वैदिक ऋषि तथा राजनीति के आचार्य था। वेद तथा पुराणों में इनका चरित्र चित्रित है। ऋग्वेद में उशना कवि (4।26।1) एवं काव्य (1।51।10; 4।16।2) विशेषण के साथ अभिहित किए गए हैं तथा कुत्स और इंद्र के साथ इनका उल्लेख बहुश: उपलब्ध होता है। ब्राह्मणों (पंचविंश 7।5।20); शांखायन श्रौत सूत्र (14।27।1) के अनुसार देव-दानव-युद्ध के अवसर पर इन्होंने असुरों का पौरोहित्य किया था। पुराणों के अनुसार स्वायंभू मन्वंतर में ये भृगुपूत्र कवि के पुत्र (उपनाम 'काव्य') बतलाए गए हैं।
 
*प्रिय्व्रात राजा की कन्या ऊर्जस्वती इनकी स्त्री थी।
*भागवत (स्कंध 7 अ.5) के अनुसार ये दैत्यों के पुरोहित थे और इनकी अनुपस्थिति में जब वे जंगल में तपस्या करने गए थे तब इनके दोनों पुत्रों-शंड और मर्क-ने हिरण्यकशिपु का पौरोहित्य किया था।
*भृगुवंश में उत्पन्न होने से ये 'भार्गव' भी कहे जाते हैं।
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Latest revision as of 06:15, 10 July 2018

उशना पृथुश्रवा का पौत्र तथा सुयज्ञ का पुत्र था, जो प्रख्यात वैदिक ऋषि तथा राजनीति के आचार्य था। वेद तथा पुराणों में इनका चरित्र चित्रित है। ऋग्वेद में उशना कवि (4।26।1) एवं काव्य (1।51।10; 4।16।2) विशेषण के साथ अभिहित किए गए हैं तथा कुत्स और इंद्र के साथ इनका उल्लेख बहुश: उपलब्ध होता है। ब्राह्मणों (पंचविंश 7।5।20); शांखायन श्रौत सूत्र (14।27।1) के अनुसार देव-दानव-युद्ध के अवसर पर इन्होंने असुरों का पौरोहित्य किया था। पुराणों के अनुसार स्वायंभू मन्वंतर में ये भृगुपूत्र कवि के पुत्र (उपनाम 'काव्य') बतलाए गए हैं।

  • प्रिय्व्रात राजा की कन्या ऊर्जस्वती इनकी स्त्री थी।
  • भागवत (स्कंध 7 अ.5) के अनुसार ये दैत्यों के पुरोहित थे और इनकी अनुपस्थिति में जब वे जंगल में तपस्या करने गए थे तब इनके दोनों पुत्रों-शंड और मर्क-ने हिरण्यकशिपु का पौरोहित्य किया था।
  • भृगुवंश में उत्पन्न होने से ये 'भार्गव' भी कहे जाते हैं।
  • कौटिल्य ने उशना का उल्लेख प्राचीन अर्थशास्त्रवेत्ता आचार्यों में किया है।[1]
  • इस पृथ्वी की रक्षा करते हुए उशना ने सौ अश्वमेध यज्ञों का अनुष्ठान किया था।
  • उशना का पुत्र तितिक्षु[2] हुआ, जो शत्रुओं को संतप्त कर देने वाला था।[3]
  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 148 |
  2. अन्यत्र शिमेयु, रूचक या शितपु पाठ भी मिलता है।
  3. सुयज्ञ

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