ऋतुपर्ण: Difference between revisions
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*इनके पुत्र का नाम सर्वकाम था। | *इनके पुत्र का नाम सर्वकाम था। | ||
*राजा ऋतुपर्ण को अयोध्या के नरेश कहा जाता था। | *राजा ऋतुपर्ण को अयोध्या के नरेश कहा जाता था। | ||
* | *यह अक्षविद्या में अत्यंत निपुण था। जुए में राज्य हार जाने के उपंरात अपने अज्ञातवासकाल में नल बाहुक नाम से इसी के पास सारथि के रूप में रहा था। इसने नल को अपनी अक्षविद्या दी तथा नल ने भी अपनी अश्वविद्या इसे दी। | ||
* | *नलवियुक्ती [[दमयंती]] को जब अपने चर पर्णाद द्वारा पता चला कि [[नल]] ऋतुपर्ण के सारथि के रूप में रह रहा है तो उसने ऋतुपर्ण का संदेशा भेजा, ''नल का कुछ भी पता न लगने के कारण मैं अपना दूसरा स्वयंवर कल सूर्योदय के समय कर रही हूँ, अत: आप समय रहते कुंडनिपुर पधारें।'' | ||
*[[नल]] ने अपनी अश्वविद्या के बल से ऋतुपर्ण को ठीक समय पर कुंडनिपुर पहुँचा दिया तथा वहाँ नल और दमयंती का मिलन हुआ। | |||
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Latest revision as of 07:27, 11 July 2018
ऋतुपर्ण हिन्दू मान्यताओं और पौराणिक महाकाव्य महाभारत के उल्लेखानुसार अयुतायु के पुत्र तथा इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न एक राजा थे।
- इनके पुत्र का नाम सर्वकाम था।
- राजा ऋतुपर्ण को अयोध्या के नरेश कहा जाता था।
- यह अक्षविद्या में अत्यंत निपुण था। जुए में राज्य हार जाने के उपंरात अपने अज्ञातवासकाल में नल बाहुक नाम से इसी के पास सारथि के रूप में रहा था। इसने नल को अपनी अक्षविद्या दी तथा नल ने भी अपनी अश्वविद्या इसे दी।
- नलवियुक्ती दमयंती को जब अपने चर पर्णाद द्वारा पता चला कि नल ऋतुपर्ण के सारथि के रूप में रह रहा है तो उसने ऋतुपर्ण का संदेशा भेजा, नल का कुछ भी पता न लगने के कारण मैं अपना दूसरा स्वयंवर कल सूर्योदय के समय कर रही हूँ, अत: आप समय रहते कुंडनिपुर पधारें।
- नल ने अपनी अश्वविद्या के बल से ऋतुपर्ण को ठीक समय पर कुंडनिपुर पहुँचा दिया तथा वहाँ नल और दमयंती का मिलन हुआ।
- बौधायन श्रौत्रसूत्र [1] के अनुसार ऋतुपर्ण भंगाश्विन का पुत्र तथा शफाल का राजा था। वायु, ब्रह्म तथा हरिवंश इत्यादि पुराणों में ऋतुपर्ण को अयुतायुपुत्र बताया गया है।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 26 |