सोमनाथ माथुर: Difference between revisions
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*'रसपीयूषनिधि' [[भिखारी दास]] जी के 'काव्यनिर्णय' से बड़ा ग्रंथ है। | |||
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Latest revision as of 06:34, 22 May 2012
सोमनाथ माथुर ब्राह्मण थे और भरतपुर के महाराज बदनसिंह के कनिष्ठ पुत्र प्रतापसिंह के यहाँ रहते थे। सोमनाथ ने संवत 1794 में 'रसपीयूषनिधि' नामक रीति का एक विस्तृत ग्रंथ बनाया जिसमें पिंगल, काव्यलक्षण, प्रयोजन, भेद, शब्दशक्ति, ध्वनि, भाव, रस, रीति, गुण, दोष इत्यादि सब विषयों का निरूपण है।
- 'रसपीयूषनिधि' भिखारी दास जी के 'काव्यनिर्णय' से बड़ा ग्रंथ है।
- काव्यांग निरूपण में ये श्रीपति और भिखारी दास के समान ही हैं। विषय को स्पष्ट करने की प्रणाली इनकी बहुत अच्छी है।
विषयनिरूपण के अतिरिक्त कवि कर्म में भी ये सफल हुए हैं।
- कविता में ये अपना उपनाम 'ससिनाथ' भी लिखते थे। इनमें भावुकता और सहृदयता पूरी थी, इससे इनकी भाषा में कृत्रिमता नहीं आने पाई। इनकी अन्योक्ति कल्पना की मार्मिकता और प्रसादपूर्ण व्यंग्य के कारण बहुत प्रसिद्ध है। 'रसपीयूष निधि' के अतिरिक्त खोज में इनके तीन और ग्रंथ मिले हैं,
- इन ग्रंथों के निर्माण काल की ओर ध्यान देने से इनका कविता काल संवत 1790 से 1810 तक ठहरता है।
- रीति ग्रंथ और मुक्तक रचना के अतिरिक्त इस सत्कवि ने प्रबंधकाव्य की ओर भी ध्यान दिया। 'सिंहासन बत्तीसी' के अनुवाद को यदि हम काव्य न मानें तो कम से कम पद्य प्रबंध अवश्य ही कहना पड़ेगा।
- 'माधवविनोद' नाटक 'मालती माधव' के आधार पर लिखा हुआ प्रेम प्रबंध है। कल्पित कथा लिखने की प्रथा हिन्दी के कवियों में प्राय: नहीं के बराबर रही।
- जहाँगीर के समय में संवत 1673 में बना 'पुहकर कवि' का 'रसरत्न' अब तक नाम लेने योग्य कल्पित 'प्रबंध काव्य' था। अत: सोमनाथ का यह प्रयत्न उनके दृष्टि विस्तार का परिचारक है -
दिसि बिदिसन तें उमड़ि मढ़ि लीनो नभ,
छाँड़ि दीने धुरवा जवासे-जूथ जरिगे।
डहडहे भये दु्रम रंचक हवा के गुन,
कहूँ कहूँ मोरवा पुकारि मोद भरिगे
रहि गए चातक जहाँ के तहाँ देखत ही,
सोमनाथ कहै बूँदाबूँदि हू न करिगे।
सोर भयो घोर चारों ओर महिमंडल में,
'आये घन, आये घन' आयकै उघरिगे
प्रीति नयी नित कीजत है, सब सों छल की बतरानि परी है।
सीखी डिठाई कहाँ ससिनाथ, हमैं दिन द्वैक तें जानि परी है
और कहा लहिए, सजनी! कठिनाई गरै अति आनि परी है।
मानत है बरज्यो न कछू अब ऐसी सुजानहिं बानि परी है
झमकतु बदन मतंग कुंभ उत्तंग अंग वर।
बंदन बलित भुसुंड कुंडलित सुंड सिद्धि धार
कंचन मनिमय मुकुट जगमगै सुघर सीस पर।
लोचन तीनि बिसाल चार भुज धयावत सुर नर
ससिनाथ नंद स्वच्छंद, निति कोटि बिघन छरछंदहर।
जय बुद्धि बिलंद अमंद दुति इंदुभाल आनंदकर
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