जौलौ सत्य स्वरूप न सूझत -सूरदास: Difference between revisions

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अपनो ही मुख मलिन मंदमति, देखत दरपन माहीं।
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ता कालिमा मेटिबै कारन, पचतु<ref>परेशान होता है।</ref> पखारतु<ref>धोता है, साफ करता है।</ref> छाहिं॥
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तेल तूल<ref>रुई।</ref> पावक पुट<ref>दीपक से तात्पर्य है।</ref> भरि धरि, बनै न दिया प्रकासत।
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कहत बनाय दीप की बातैं, कैसे कैं तम नासत॥
कहत बनाय दीप की बातैं, कैसे कैं तम नासत॥

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जौलौ सत्य स्वरूप न सूझत -सूरदास
कवि महाकवि सूरदास
जन्म संवत 1535 वि.(सन 1478 ई.)
जन्म स्थान रुनकता
मृत्यु 1583 ई.
मृत्यु स्थान पारसौली
मुख्य रचनाएँ सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य-लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सूरदास की रचनाएँ

जौलौ सत्य स्वरूप न सूझत।
तौलौ मनु मनि कंठ बिसारैं, फिरतु सकल बन बूझत॥[1]
अपनो ही मुख मलिन मंदमति, देखत दरपन माहीं।
ता कालिमा मेटिबै कारन, पचतु[2] पखारतु[3] छाहिं॥
तेल तूल[4] पावक पुट[5] भरि धरि, बनै न दिया प्रकासत।
कहत बनाय दीप की बातैं, कैसे कैं तम नासत॥
सूरदास, जब यह मति आई, वै दिन गये अलेखे।[6]
कह जानै दिनकर की महिमा, अंध नयन बिनु देखे॥

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पूछता फिरता है।
  2. परेशान होता है।
  3. धोता है, साफ़ करता है।
  4. रुई।
  5. दीपक से तात्पर्य है।
  6. वृथा।

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