जौलौ सत्य स्वरूप न सूझत -सूरदास: Difference between revisions
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तौलौ मनु मनि कंठ बिसारैं, फिरतु सकल बन बूझत॥<ref>पूछता फिरता है।</ref> | तौलौ मनु मनि कंठ बिसारैं, फिरतु सकल बन बूझत॥<ref>पूछता फिरता है।</ref> | ||
अपनो ही मुख मलिन मंदमति, देखत दरपन माहीं। | अपनो ही मुख मलिन मंदमति, देखत दरपन माहीं। | ||
ता कालिमा मेटिबै कारन, पचतु<ref>परेशान होता है।</ref> पखारतु<ref>धोता है, | ता कालिमा मेटिबै कारन, पचतु<ref>परेशान होता है।</ref> पखारतु<ref>धोता है, साफ़ करता है।</ref> छाहिं॥ | ||
तेल तूल<ref>रुई।</ref> पावक पुट<ref>दीपक से तात्पर्य है।</ref> भरि धरि, बनै न दिया प्रकासत। | तेल तूल<ref>रुई।</ref> पावक पुट<ref>दीपक से तात्पर्य है।</ref> भरि धरि, बनै न दिया प्रकासत। | ||
कहत बनाय दीप की बातैं, कैसे कैं तम नासत॥ | कहत बनाय दीप की बातैं, कैसे कैं तम नासत॥ |
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जौलौ सत्य स्वरूप न सूझत। |
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |