तबतें बहुरि न कोऊ आयौ -सूरदास: Difference between revisions
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छिन-छिन सुरति करत जदुपति की परत न मन समुझायौ। | छिन-छिन सुरति करत जदुपति की परत न मन समुझायौ। | ||
गोकुलनाथ हमारे हित लगि द्वै आखर<ref> दो अक्षर, छोटी-सी चिट्ठी।</ref> न पठायौ॥ | गोकुलनाथ हमारे हित लगि द्वै आखर<ref> दो अक्षर, छोटी-सी चिट्ठी।</ref> न पठायौ॥ | ||
यहै बिचार करहु धौं सजनी इतौ गहरू<ref> | यहै बिचार करहु धौं सजनी इतौ गहरू<ref>विलम्ब।</ref> क्यों लायौ। | ||
सूर, स्याम अब बेगि मिलौ किन<ref>क्यों नहीं।</ref> मेघनि अंबर छायौ॥ | सूर, स्याम अब बेगि मिलौ किन<ref>क्यों नहीं।</ref> मेघनि अंबर छायौ॥ | ||
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |